अजय सेतिया / राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ उठे पूर्वोतर के आन्दोलन से चिंतित है | इस लिए संघ के सरकार्यवाह भैयाजी जोशी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है कि वह पूर्वोतर की आशंकाओं को दूर करें | लेकिन संघ ने पहली बार आंदोलित मुसलमानों को आश्वस्त किया है कि उन की नागरिकता और नागरिक अधिकार देश के बाकी हिन्दुओं की तरह सुरक्षित हैं | पूर्वोतर के सभी राज्यों और देश भर के मुस्लिमों की ओर से बांग्लादेश से आए हिन्दुओ को नागरिकता देने के लिए बने नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ हिंसक विरोध हो रहा है | हालांकि गृह मंत्री ने नागरिकता संशोधन बिल पेश करते हुए पूर्वोतर और भारतीय मुस्लिम नागरिकों की सभी आशंकाओं को दूर करने की कोशिश की थी |
उन्होंने स्पष्ट कहा था कि वह क़ानून पूर्वोत्तर के अधिकांश राज्यों और असम के कुछ ज़िलों में लागू नहीं होगा, क्योंकि इसमें शर्त रखी गई है कि ऐसे व्यक्ति असम, मेघालय, और त्रिपुरा के उन हिस्सों में जहां संविधान की छठीं अनुसूची लागू हो और इनर लाइन परमिट के तहत आने वाले अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और नागालैंड में न रह रहे हों | इसका मतलब हुआ कि इन क्षेत्रों में रहने वाले शरणार्थियों को नागरिकता नहीं मिलेगी | अगर उन्हें नागरिकता मिलेगी तो भी वे इन राज्यों में किसी तरह की ज़मीन या क़ारोबारी अधिकार हासिल नहीं कर पाएंगे |
इस के बावजूद भाजपा की असम , त्रिपुरा और मेघालय की भाजपा के गठबंधन वाली सरकार इन आंदोलनों से मुश्किल में फंस गई है | पूर्वोतर के बाकी राज्यों मिजोरम, अरुणाचल, सिक्किम और मणिपुर में भी असंतोष की चिंगारी पहुंच चुकी है | असंतोष का कारण एनआरसी है , असम में एनआरसी के नतीजों में बताया गया था कि 19 लाख बांग्लादेशी घुसपैठिए अवैध रूप से असम में रह रहे हैं , हालांकि एनआरसी की यह रिपोर्ट खोटपूर्ण थी , क्योंकि उन में कुछ तो ऐसे लोगों के नाम भी शामिल थे जिन की तीसरी चौथी पीढियां भारत में रह रही थीं | लेकिन महत्वपूर्ण यह था कि जिन 19 लाख लोगों की पहचान हुई थी , उनमें से आधे हिन्दू थे | इस नए संशोधन क़ानून का तात्कालिक कारण भी उन हिन्दुओं को भारत की नागरिकता देना है |
इस नए क़ानून के अनुसार 31 दिस्मबर 2014 से भारत में रह रहे उन सभी हिन्दुओं को नागरिकता मिल जाएगी और वे असम के स्थाई नागरिक हो जाएंगे , जबकि असम समझौते में यह सीमा 25 मार्च 1971 तय की गई थी | बांग्लादेशी घुसपैठियों का असर सिर्फ असम या पूर्वोतर के राज्यों पर नहीं है , पूर्वोतर के सभी राज्यों के साथ साथ बंगाल में सर्वाधिक असर है | जहां बंगाल में बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिए कांग्रेस , तृणमूल कांग्रेस और वामपंथियों के वोट बैंक हैं , वही भाजपा की नजर बांग्लादेश के हिन्दू शरणार्थियों पर हैं , जिन्हें इन तीनों दलों ने वोटर भी नही बनने दिया है |
इसी तरह मेघालय में इनर लाईन का संकट का है , जहा बाकी पूर्वोतर राज्य के ज्यादातर जिले 1873 की इनर लाईन परमिट व्यवस्था से सुरक्षित हैं , वहीं मेघालय में इनर लाईन की व्यवस्था नहीं है | मेघालय का आदोलन इनर लाईन व्यवस्था के लिए है | विधानसभा ने इस सम्बन्ध में एक बिल पास कर के पहले ही राष्ट्रपति को भेजा हुआ है | शनिवार तडके गृह मंत्री अमित शाह ने मेघालय के मुख्यमंत्री कोनार्ड संगमा से मुलाक़ात के दौरान मेघालय की समस्या का हल निकालने का वायदा किया है | कोनार्ड संगमा को क्रिसमिस के बाद दिल्ली बुलाया गया है |
तो दूसरी तरफ देश के बाकी हिस्सों में मुसलमानों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं | कुछ राजनीतिक दलों ने अपनी उसी आजमाई हुई रणनीति को फिर से अपनाया है , जो मुसलमानों को डर दिखाने वाली है , ताकि वह उस का वोट बैंक बना रहे | इस बार उन्हें भारत की नागरिकता गवाने का डर दिखाया गया है | कांग्रेस , तृणमूल कांग्रेस, आल इंडिया मुस्लिम मजलिस जैसे राजनीतिक दलों की ओर से मुसलमानों को भारत की नागरिकता खोने का डर दिखाया गया है , तो दूसरी तरफ मुस्लिम उलेमाओं में इस क़ानून से यह आशंका पैदा हो गई है कि भारत को दारूल इस्लाम बनाने का उन का सपना अब कभी पूरा नहीं हो पाएगा | राजनीतिक दलों का स्वार्थ बहुत छोटा है , जबकि इस्लाम का स्वार्थ बहुत बड़ा है , इस लिए देवबंद , जामिया मिल्लिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों को मैदान में उतारा गया है | आप किसी भी मुस्लिम उल्लेमा से पूछेंगे तो वह आप को बता देगा कि इस्लाम की नजर में भारत दारूल हरब है , यानीं दारूल इस्लाम लागू करने के लिए युद्ध की भूमि |
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