अब समान नागरिक संहिता का एजेंडा

Publsihed: 14.Sep.2019, 14:03

अजय सेतिया / भारतीय जनता पार्टी अपने तीन एजेंडों के लिए जानी जाती है | इन तीन एजेंडों में से एक अनुच्छेद 370 की समाप्ति था , जिसे संविधान में जोड़ते समय ही संविधान सभा में वायदा किया गया था कि यह अस्थाई है | भाजपा का दूसरा एजेंडे समान नागरिक संहिता का जिक्र तो संविधान के नीति निर्देश सिद्धांतों में भी है , जिस में वायदा किया गया है कि सरकार इसे लागू करने का प्रयास करेगी | सुप्रीमकोर्ट कई बार सरकार को संविधान के निति निर्देश सिद्धांतों की याद दिला चुका है , लेकिन पूर्ववर्ती सरकारों ने समान नागरिक संहिता को अल्पसंख्यक और शरीयत विरोधी बता कर अछूत मुद्दा बनाया हुआ है | जनसंघ के जमाने तक मौजूदा भाजपा का तीसरा बड़ा एजेंडा गौरक्षा के लिए अखिल भारतीय क़ानून बनाना था , जो संविधान के नीति निर्देश सिद्धांतों का हिस्सा है | भाजपा के इन तीनों एजेंडों का संवैधानिक आधार था , लेकिन गैर भाजपा दलों ने इन्हें विवादास्पद मुद्दे बता कर भाजपा को अछूत बनाए रखा | ये तीनों मुद्दे भाजपा को सत्ता तक पहुँचाने में बाधक बने रहे , 1996 में जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा की पहली सरकार बनी थी , तो विश्वासमत पर बहस के समय जी.जी.स्वेल ने गौरक्षा के मुद्दे पर समर्थन देने से इनकार कर दिया था | हालांकि भाजपा ने गौरक्षा को कभी बड़ा मुद्दा नहीं बनाया था , उस की जगह पर भाजपा ने 1989 में तीसरा एजेंडा श्रीरामजन्म भूमि मंदिर निर्माण जोड़ दिया गया | 
भाजपा को सत्ता प्राप्ति के लिए 1998 और 1999 में अपने तीनों मुद्दों को एनडीए के एजेंडे से बाहर करना पडा था | अपने मुद्दों पर अपने बूते सत्ता में आई भाजपा का काडर 2014 से मचल रहा था , क्योंकि मोदी हिंदुत्व की पहचान वाले इन तीनों मुद्दों से किनारा किए हुए थे | अपना मानना है कि 2019 के चुनाव में अगर मोदी के हाथ में कश्मीर का मुद्दा न लगता और यह मुद्दा राष्ट्रीय स्वाभिमान का मुद्दा नहीं बन जाता तो भाजपा बड़ी मुश्किल में थी , क्योंकि भाजपा का मूल हिन्दू वोटर उस से बेहद खफा था | हिन्दू वोट बैंक से तीनों मुद्दों को हल करने के वायदे और कश्मीर की राष्ट्रीयता के बूते मोदी सरकार प्रचंड बहुमत से लौटी है तो अब कोई बहानेबाजी भी नहीं चल सकती | अमित शाह के रूप में दृढ़ इरादे वाला गृहमंत्री बनाया जाना भी भाजपा के तीनों एजेंडों को लागू करने की मंशा को दर्शाता है | भाजपा श्यामा प्रशाद मुखर्जी के कार्यकाल से चला आ रहा पुराना अनुच्छेद 370 खत्म करने का एजेंडा पूरा कर चुकी है | तीन तलाक को आपराधिक बना कर दूसरे एजेंडे समान नागरिक संहिता की तरफ भी कदम बढा चुकी है | 
हालांकि 2016 में खुद मोदी सरकार की ओर से नियुक्त किए गए 21वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के बारे में भाजपाई एजेंडे के खिलाफ टिप्पणी कर दी थी | 31 अगस्त 2018 को सौंपी अपनी रिपोर्ट में विधि आयोग ने कहा था –“ मौजूदा दौर में समान नागरिक संहिता न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय |” लेकिन अब इसी आठ जूलाई को मोदी सरकार के वकील ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा है कि सरकार समान नागरिक संहिता का समर्थन करती है , इस सम्बन्ध में 22वें विधि आयोग को रिपोर्ट बनाने को कहा जाएगा , जिस का गठन जल्द ही होने वाला है | इस बीच 13 सितम्बर को समान नागरिक संहिता के पक्ष में सुप्रीमकोर्ट की एक तल्ख टिप्पणी आ गई है | सुप्रीमकोर्ट ने सरकार को समान नागरिक संहिता की याद दिलाते हुए अफसोस भी जताया कि सुप्रीमकोर्ट के बार बार याद दिलाने के बाद भी इस मकसद को हासिल करने का कोई प्रयास नहीं किया गया | सुप्रीमकोर्ट ने इस सम्बन्ध में गोवा का उदाहरण भी दिया , जहां पुर्तगालियों के जमाने से समान नागरिक संहिता लागू है | कोर्ट ने कहा-"जिन मुस्लिम पुरुषों की शादियां गोवा में पंजीकृत हैं, वे बहुविवाह नहीं कर सकते। इसके अलावा इस्लाम के अनुयायियों के लिए भी मौखिक तलाक का कोई प्रावधान नहीं है।" सुप्रीमकोर्ट ने अपनी तल्ख टिप्पणी करते हुए खा –“अगर गोवा में समान नागरिक संहिता ठीक है , तो बाकी देश के लिए क्यों नहीं |”

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