दर्जन भर विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा के साथ

Publsihed: 13.Aug.2018, 14:07

अजय सेतिया / लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ करवाना फिर एजेंडे पर आ गया | भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने इस बाबत विधि आयोग को चिठ्ठी लिखी है | अपनी इस धारणा की फिर पुष्टि हो रही है कि दर्जन भर विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा के साथ होंगे | यह बात अपन पिछले तीन चार महीनों से लिख रहे हैं | सवाल यह है कि लोकसभा के चुनाव दिसम्बर में हो रहे हैं या चार विधानसभाओं के चुनाव टल रहे हैं | वैसे चुनाव आयोग को लोकसभा के चुनाव भी दिसम्बर में करवाने का हक है | उस के लिए लोकसभा का भंग होना भी जरूरी नहीं | पर लोकसभा के चुनाव दिसम्बर में होने की बजाए चार विधानसभाओं के चुनाव टलने की सम्भावना ज्यादा है | मोदी क्यों अपना कार्यकाल कम करेंगे | मोदी को याद होगा कि वाजपेयी को अपना कार्यकाल कम करना महंगा पड़ा था | हाँ लोकसभा के चुनाव अप्रेल की बजाए फरवरी में हो सकते हैं | वैसे पांच राज्यों उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, सिक्किम और अरुणांचल प्रदेश के चुनाव लोकसभा के साथ ही होते हैं | मध्यप्रदेश , छतीसगढ़ , राजस्थान, मिजोरम के चुनाव दिसम्बर के बजाए फरवरी या अप्रेल में हों तो आसमान नहीं गिर जाएगा |

अगर चार विधानसभाओं के साथ लोकसभा चुनाव दिसम्बर में ही करवाए जाएं तो उस में तेलंगाना जुड़ सकता है | तेलंगाना ने जल्द चुनाव करवाने का मन बनाया हुआ है | और कोई राज्य साथ चुनाव को शायद ही सहमत हो | पर चुनाव आयोग चाहे तो उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, सिक्किम और अरुणांचल के चुनाव साथ हो सकते हैं | यानि कुल मिलाकर 9 राज्य बनते हैं | चुनाव आयोग को छह महीने पहले तक चुनाव करवाने का अधिकार मिला हुआ है | पर ज्यादा सम्भावना फरवरी से अप्रेल के बीच कभी भी चुनाव होने की है | अगर मोदी और अमित शाह की यही रणनीति बन रही है तो हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव भी साथ होंगे | इन दोनों राज्यों की अवधि सितम्बर अक्टूबर तक है | हरियाणा में भाजपा की हालत पतली बताई जा रही है | वहां भाजपा को मोदी के नाम का फायदा मिल सकता है | महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ रोज रोज की चिक चिक बनी हुई है | वहां भाजपा एक बार फिर शिव सेना के साथ दो दो हाथ करने को तैयार है | बीच बीच में दोनों राज्यों में मुख्यमंत्री बदलने की अटकले भी लगती रहती हैं | भाजपा सषित झारखंड भी साथ जुड़ सकता है , जिस का कार्यकाल नवम्बर 2019 तक है | कश्मीर में भी साथ चुनाव के बारे में सोचा जा सकता है |

यानि विपक्ष के कड़े विरोध के बावजूद मोदी एक दर्जन विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा के साथ करवा सकते है | इस साल अप्रेल में मोदी सरकार के क़ानून विभाग ने विधि आयोग को चिठ्ठी लिखी थी | तब विधी आयोग ने अपनी सिफारिशों में लिखा था कि आधी विधानसभाओं के चुनाव 2019 में साथ हो सकते हैं | बाकी आधी विधानसभाओं के चुनाव 2024 में साथ हो सकते हैं | वैसे 1967 तक लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ साथ ही होते थे | यह परम्परा 1967 में कई राज्यों में सविंद सरकारें बनने और टूटने के कारण टूटी | वैसे मौजूदा संविधान में हमेशा साथ साथ चुनाव करवाया जाना सम्भव नहीं | उस के लिए कम से कम पांच संविधान संशोधन होना जरुरी है | चुने हुए सदनों का कार्यकाल पांच साल निश्चित करना पड़ेगा | कोई सरकार अल्पमत में आ जाए , तो जोड़ तोड़ से उसी एसेम्बली में सरकार बनानी होगी | राज्यपालों की भूमिका खत्म सी हो जाएगी | विधानसभाएं भंग होना बंद हो जाएँगी | अगर मध्यवधि की नौबत आए, तो एसेम्बली या लोकसभा का चुनाव बाकी बचे कार्यकाल के लिए होगा | ताकि फिर अगले चुनाव देश में एक साथ हों | पर यह मौजूदा संसद में सम्भव नहीं | इस संसद से तो मोदी सरकार 10 अगस्त को तीन तलाक बिल भी पास नहीं करवा पाई | विधि आयोग को अमित शाह की चिठ्ठी देश में माहौल बनाने के लिए है | अमित शाह ने अपनी चिठ्ठी में एक देश एक चुनाव के फायदे गिनाए हैं | विपक्ष का एक भी दल एक साथ चुनाव से सहमत नहीं | विधि आयोग की जुलाई में हुई बैठक में यह बात साफ़ हो गई थी |

हाँ अखिलेश यादव ने जरुर इस शर्त पर सहमती जताई कि अगर यूपी विधानसभा के चुनाव अभी साथ हों | इस तरह मायावती के साथ अखिलेश लोकसभा और विधानसभा की सौदेबाजी एक साथ कर सकेंगे | उन्हें भविष्य में मायावती से धोखे का खतरा नहीं रहेगा | सात राष्ट्रीय और 49 क्षेत्रीय दल हैं | पर भाजपा को छोड़ कर कोई और विधि आयोग को भाव ही नहीं दे रहा | अमित शाह की चिठ्ठी का खुलासा राजनीतिक माहौल के लिए किया गया है | जिस पर विपक्ष भडक उठा है | सितम्बर अक्टूबर में साथ साथ चुनाव की गतिविधियाँ और ज्यादा तेज होंगी | विपक्ष विरोध करेगा और भाजपा उस के फायदे गिना कर उसे कटघरे में खड़ा करेगी |

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