अजय सेतिया / संसद सत्र के सत्रावसान के समय सदन के नेता और विपक्ष के नेता के भाषण हुआ करते थे | दोनों लोकसभा में स्पीकर का और राज्यसभा में चेयरमैन का आभार व्यक्त किया करते थे | स्पीकर और चेयरमैन सभी सांसदों का आभार व्यक्त किया करते थे | इस तरह आख़िरी दिन सारे गिले शिकवे मिट जाया करते थे | कडवाहट मिट जाया करती थी | यह तब तक जारी रहा जब तक भाजपा विपक्ष में थी | जैसे ही भाजपा सत्ता में आई सत्रावसान की मिठास भी कडवी होने लगी | यह बात वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने के बाद की है | लगातार दो सत्र में यह देखा गया था कि विपक्ष की नेता , जो नेता नहीं थी , सोनिया गांधी ने अपने भाषण में सरकार पर हमले बोले | हमले का निशाना वाजपेयी थे | फिर वाजपेयी ने भी करारे जवाब दिए , तो तय हुआ कि यह परम्परा ही बंद कर दी जाए | तब से समापन भाषण की जिम्मेदारी स्पीकर और चेयरमैन पर आ गई , वे सत्र के दौरान की उपलब्धियां गिना कर समापन करने लगे |
अब तो हालात इतने बिगड़ गए हैं कि राजनीति में कडवाहट घुल गई है | दोनों पक्ष संसद का इस्तेमाल एक दुसरे पर निशाना साधने के लिए ही करते हैं | यह सरकार की हिम्मत पर निर्भर करता है कि वह कितने बिल पास करवा ले | और विपक्ष की भी हिम्मत पर निर्भर करता है कि वह कितने मुद्दों पर बहस करवा कर सरकार को घेर पाती है | मोदी के पहले पांच साल तो राज्यसभा की दहशत में ही बीते , जहां विपक्ष अच्छे खासे बिल को भी अपनी हनक दिखाने के लिए रोक लेता था | जजों की नियुक्ति वाले प्रिजिडियम को भंग कर के सरकारी दखल वाली नियुक्ति व्यवस्था का बिल सर्वसम्मत्ति से पास हुआ था | पर जब सुप्रीमकोर्ट ने उसे लौटा दिया , तो विपक्ष के तेवर बदल गए और मोदी सरकार दुबारा बिल पास करवाने की हिम्मत नहीं कर पाई |
अब राज्यसभा में भी विपक्ष की हनक टूट चुकी है | अमित शाह ने पहली बार लोकसभा में आते ही ऐसा जलवा दिखाया कि अच्छे भले बहुमत वाला विपक्ष अल्पमत में आ गया | कांग्रेस , सपा , टीडीपी , तृणमूल सब टूट गए | इसी लिए तो अब टकराव ज्यादा बढ़ा है , वरना 2019 के लोकसभा चुनाव में सब की कमर टूट गई थी और वह एक दो साल तो उठने की हिम्मत ही नहीं करता | राहुल गांधी तो कांग्रेस अध्यक्ष पद पर रहने की हिम्मत नहीं कर पाए | पर अमित शाह की मार-धाड़ के बाद राहुल गांधी में भी जान आ गई है , वह लोकसभा में विपक्ष के नेता तो नहीं बने | पर सत्ता पक्ष का हमला अभी भी वही झेलते हैं | अधीर रंजन को तो कोई गम्भीरता से लेता ही नहीं , न ही वह गंभीरता वाले कोई काम करते हैं | तल्खियों के बावजूद सरकार धडाधड बिल पास करवा रही है | खासकर अपने एजेंडे को फटाफट निपटा रही है | अमित शाह ने गृह मंत्री बनने के दो सौ दिन पूरे होने से पहले ही भाजपा के सत्तर साल पुराने एजेंडे का एक मुद्दा निपटा लिया | नागरिकता संशोधन बिल का पास होना भाजपा को अमित शाह का बोनस है |
खैर नागरिकता संशोधन बिल नार्थ ईस्ट के लिए तो नई समस्या खडी कर ही गया | मुसलमानों के दारुल हरब में भी हलचल पैदा कर गया है , जिस कारण देवबंद, जामिया मिल्लिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में खलबली मची है | वे सडकों पर उतर आए हैं | नागरिकता संशोधन क़ानून से भारत को दारुल इस्लाम बनाने के रास्ते में बड़ी अडचन खडी होगी | खैर अपन बात कर रहे थे सत्रावसान के समय पैदा होने वाली तल्खियों की | जो वाजपेयी सोनिया के भाषणों से शुरू हुई थी और अब भी जारी है | शीत सत्र ने भी तल्खी की परम्परा बनाए रखी | सता पक्ष की ओर से निशाने पर राहुल गांधी ही थे , जिन्होंने एक दिन पहले यानी 12 दिसम्बर को झारखंड में एक चुनावी सभा में मोदी के मेक इन इंडिया को बदल कर तुकबंदी से रेप इन इंडिया कह दिया था | भाजपा ने उन्हें घेरने की रणनीति बना ली थी , इस लिए सदन की कार्यवाही शुरू होते ही उपनेता राजनाथ सिंह ने राहुल गांधी पर हमला बोलते हुए कहा कि ऐसे व्यक्ति को सदन का सदस्य नहीं रहना चाहिए जो भारत की छवि खराब कर रहा हो | फिर स्मृति ईरानी तो थी ही , बाद का मोर्चा उन्होंने सम्भाला | उधर राज्यसभा में सोनल मानसिंह ने मोर्चा सम्भाला हुआ था | इस तरह तल्खी और हंगामे के बीच एक और सत्र निकल गया |
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