मोदी ने क्या खोया, राहुल ने क्या पाया 

Publsihed: 12.Dec.2017, 21:36

अजय सेतिया / चलो गुजरात का शोर शराबा शांत हुआ | प्रधानमंत्री मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी दिल्ली लौट आए | पूरे चुनाव में राहुल गांधी से कोई बड़ी भूल नहीं हुई | गुजरात ने राहुल से पप्पू का लेबल हटा दिया | राहुल गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान ही कांग्रेस अध्यक्ष बन गए | गुजरात ने कांग्रेस को अल्पसंख्यकवाद के भंवरजाल से निकालने की शुरुआत कर दी  |  यह श्रेय भी राहुल गांधी को जाएगा | अध्यक्ष बनते ही उन ने कांग्रेस को नी दिशा दिखा दी | जो उन की मां की अल्पसंख्यकवाद की दिशा के एकदम उल्ट है | चुनाव के आख़िरी दिन प्रेस कांफ्रेंस कर के राहुल ने खुद को नेता भी साबित किया | कुल मिला कर गुजरात चुनाव ने राहुल को मच्योर नेता की मान्यता दिलाई है | राहुल ने गुजरात में मोदी को पहली बार चुनावी चुनौती का अहसास करवाया है | अब मोदी यह नहीं कह सकते कि 2019 में उन को कोई चुनौती नहीं | दोनों दलों की ओर से मोदी और राहुल ही चुनाव लड़ रहे थे | इस लिए यह 2019 की रिहर्सल थी | दोनों दलों के लोकल नेता मैदान से गायब थे | यहाँ तक की मुख्यमंत्री रुपानी की खुद की हालत खराब बताई जा रही है | इस चुनाव ने कांग्रेस और भाजपा दोनों के स्थानीय नेतृत्व को बोना कर दिया | अपन हमेशा लिखते रहे हैं कि इंदिरा गांधी ने क्षत्रपों को कमजोर किया | कांग्रेस तब से कमजोर होना शुरू हुई | अब तो पंजाब में अमरेन्द्र सिंह को छोड़ दें | जो ताल ठोक कर मुख्यमंत्री के उम्मेंद्वार बने थे | हिमाचल में वीरभद्र सिंह को छोड़ दें | जो खम ठोक कर मुख्यमंत्री पद के उम्मीन्द्वार बने थे | तो बाकी किसी भी राज्य में कांग्रेस में क्षत्रप कहाँ रहे | जो हाईकमान का फैसला बदल-बदलवा सकें | खुद आला कमान ने राजस्थान में अशोक गहलोत को कमजोर करने की कोशिश की | हरियाणा में भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को भी कमजोर करने की कोशिशें हो रही | बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात , मध्यप्रदेश, छतीसगढ़, झारखंड में कौन है कांग्रेस का क्षत्रप | महाराष्ट्र, कर्नाटक , आंध्र , तेलंगाना और तमिलनाडू में भी कौन | राहुल कांग्रेस को खड़ा करना चाहते हैं, तो उन्हें दिल्ली से फैसले लेना छोड़ना होगा | क्षत्रप फिर से खड़े करने होंगे | जो अपने तरीके से पार्टी को खड़ा करें | क्षत्रपों के नहीं रहते हुए , जो हालत पिछले 30-35 साल में कांग्रेस की हुई है | भाजपा की वह हालत तीन साल में होती जा रही है | क्षत्रपों को खड़ा ही नहीं होने दिया जाता | उसी का नतीजा अपन ने यूपी , उत्तराखंड और गुजरात के चुनाव में देखा | जहां नरेंद्र मोदी ही चुनाव लड़ रहे थे | खैर आज गुजरात का चुनावी शोर थम गया | बृहस्पतिवार को दूसरे दौर के वोट पड जाएंगे | शुक्रवार से संसद का सत्र शुरू हो रहा है | अपन को नहीं लगता शुक्र-शनि को सत्र चलेगा | सोमवार को गुजरात के नतीजे आ रहे होंगे | तो उस दिन संसद में सब की साँसे चढ़-उतर रही होंगी | खुदा न खास्ता गुजरात में कांग्रेस जीत गई , जिस की कोई संभावना अपन को नहीं दिखती | तो संसद का सत्र भी हंगामेदार होगा | मोदी का चेहरा उतरा हुआ होगा | वह शायद ही संसद का सामना करने की हालत में होंगें | मंगलवार को अपन संसद के सेंट्रल हाल में कुछ सांसदों, पूर्व सांसदों से गपिया रहे थे | किसी ने चुटकी ली-" भाजपा हार गई तो मोदी चार-पांच दिन बीमार पड जाएंगे |" तभी वहां बैठे एक गवर्नर इस राय से कतई सहमत नहीं हुए | हालांकि उन को पूरी उम्मींद थी कि गुजरात में भाजपा जीत रही है | वह अपनी इस बात से सहमत थे कि कांग्रेस 80 सीटें जीत गईं | तो वह भी मोदी की हार और राहुल की जीत होगी | उन का कहना था कि राहुल नेता के तौर पर खड़े हो जाएंगे | पर वह इस बात से सहमत नहीं थे कि मोदी हार गए तो वह संसद का सामना नहीं कर पाएंगे | उन ने अपन से कहा दिल्ली में कितनी बुरी हार हुई थी | चुनाव में हार जीत होती रहती है | पर अपन उन की इस बात से सहमत नहीं हुए | दिल्ली और गुजरात में बहुत फर्क है , दिल्ली से मोदी की गिरावट शुरू नहीं हुई थी | खुदा न खास्ता गुजरात में हारे तो मोदी की गिरावट शुरू हो जाएगी | वह कांग्रेस मुक्त भारत का नारा लगा रहे हैं | गुजरात में ही कांग्रेस आ गई | तो 2019 से पहले ही उन का सपना टूट जाएगा | इसी लिए अंतिम दौर में वह यूपी से साथ साथ बार बार छोटे राज्य याद करवा रहे थे | जहां पिछले तीन साल में कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई है | मोदी ने यह चुनाव खुद लडा है, भाजपा को नहीं लड़ने दिया | लाल कृष्ण आडवाणी 30 साल से गांधीनगर से सांसद हैं | उन्हें अपनी लोकसभा सीट तक पर मार्गदर्शन के लिए नहीं बुलाया गया | इस लिए गुजरात में भाजपा की हार मोदी की व्यक्तिगत हार होगी | साबित होगा कि मोदी ने भाजपा की जड़ों में मट्ठा डाल दिया है | भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का रुतबा भी घटेगा | भले ही वह अच्छे संगठनकर्ता साबित हुए हैं | वह अपने 24 घंटे भाजपा को देते हैं | सारा महीना दौरों पर रहते हैं | राहुल गांधी की तरह बीच बीच में एक महीना गायब नहीं होते | पर जय शाह के मामले ने संघ परिवार में उन की स्थिति कमजोर की है | नितिन गडकरी पूर्ती कम्पनी के मामले में उठे विवाद के कारण दुबारा अध्यक्ष नहीं बन पाए थे | हालांकि उन के खिलाफ उठाया गया मामला पूरी तरह फर्जी था | जब वह अध्यक्ष नहीं बनाए गए, तो फिर किसी ने वह मामला नहीं उठाया | पर वह सबक है | जब नितिन गडकरी बिना सिर पैर वाले फर्जी मामले में अध्यक्ष नहीं बन पाए | तो अमित शाह का क्या होगा | पर ये सब तब की बाते हैं, जब भाजपा हारे | जिस की अपन को कोई आशंका नहीं दिखती | यानि मोदी अमित शाह तो सुरक्षित होंगें | पर राहुल की चुनौती बड़ी बन कर खडी होगी | 
 

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