किसी की मौत पर शान में गुस्ताखी क्यों

Publsihed: 12.Aug.2020, 16:05

अजय सेतिया / भारतीय संस्कृति किसी की मौत के बाद उस की बुराई करने की कभी नहीं रही | अलबत्ता बुरे आदमी की मौत पर अगर श्रद्धांजली न भी देनी हो तो चुप्पी साधने की परम्परा रही है | रावण की मौत के बाद भगवान राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को आदेश दिया था कि वह रावण के चरणों के पास खड़ा हो कर उन से आशीर्वाद ले | यह है भारतीय हिन्दू संस्कृति | भारतीय संस्कृति पिता के दिए वचन को निभाने के लिए सत्ता त्यागने की रही है | भाई की गद्दी पर खड़ाऊँ रख कर शासन करने की रही है | सत्ता के लिए बाप और भाई का कत्ल करने की नहीं रही | इसी लिए कहा जाता है रघु कुल रित सदा चली आई , प्राण जाए पर वचन न जाहि |

पर इस भारतीय संस्कृति और परम्परा को विदेशी हमलावरों ने अपनी सत्ता की हवस में कुत्सित किया | विदेशी हमलावरों ने यहाँ के धर्मभीरु हिन्दुओं पर तलवार की नौक पर शासन किया | उन के धर्म स्थल तोड़े , मंदिरों को तोड़ कर मस्जिदें बना दी | सत्ता हथियाने के लिए बेटे ने बाप का कत्ल किया | भाई का कत्ल किया | खून की नदियाँ भाई , और फिर कत्लो-गारत करने वालों के वारिस यह कहें कि सभी का खून शामिल है यहाँ की मिट्टी में , किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है , तो यह भीतर तक चुभने वाली बात थी | लेकिन इस बात को भारत के धर्म परिवर्तन कर के मुसलमान बने लोगों ने खूब सराहा | यहाँ की संस्कृति और परम्परा को अपमानित करने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों ने भी तालियाँ बजाई |

गंगा जमुनी तहजीब के नाम पर एक ऐसी तहजीब पैदा की गई , जिस में विदेशियों की मारने काटने वाली संस्कृति को भी अपना लिया गया | हमलावरों की इस तहजीब को बड़े गर्व से इतिहास की किताबों में जगह दी गई | जैसे मारकाट की , जबरी धर्म परिवर्तन की यह तहजीब और संस्कृति भारत की रही हो | इस तहजीब के नाम पर भारतीय संस्कृति और परम्पराओं को अपमानित किया गया | गंगा जमुनी तहजीब का मतलब हिन्दू मान्यताओं का अपमान बन गया , जिसे हिन्दुओं ने एक हजार साल तक ढोया है , अब भी सहिष्युन्ता की दुहाई दे कर गंगा जमुनी तहजीब की घुट्टी पिलाई जाती है कि अपमान सह कर भी चुप्पी साधे रहो | यह मान लो कि सभी का खून शामिल है यहाँ की मिट्टी में , किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है |

हजारों मन्दिरों को तोड़ कर मस्जिदें खडी करने वाले जब भारतीयों को बताते हैं कि सभी का खून शामिल है यहाँ की मिट्टी में , किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है , तो यहाँ के मूल निवासियों का खून खौलता है | आज़ादी के बाद 70 साल का वह दौर बीत गया है , जब अंग्रेजों के बाद फिर से मुगलों का राज आ गया था , उन्हीं का इतिहास पढाया जा रहा था |  वह वक्त चुप रहने का था , इस लिए यहाँ की मिट्टी का जनमानस खून का घूँट पी कर रह जाता था , क्योंकि सत्ता उन्हीं के साथ थी , जो डेढ़ हजार साल से भारतीय संस्कृति पर प्रहार करते चले आ रहे थे | अब तलवार की नौक पर धर्म परिवर्तन नहीं करने वाले सवा सौ करोड़ भारतीय अब अपनी अस्मिता के लिए लड़ने को तैयार हैं , यहाँ कि मिट्टी में सिर्फ उन्हीं का खून है , उन्हीं के पूर्वजों ने यहाँ की मिट्टी के लिए अपना खून बहाया था |

नागरिको के रजिस्टर बनाने और नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ लिखी सिर्फ यह एक लाईन नहीं चुभी थी कि लोग सोशल मीडिया पर मरने वाले की शान में गुस्ताखी करने को उतर आए | हर व्यक्ति अब उस लाईन को अपने अपने ढंग से लिख रहा है , हजारों तुकबन्दिया बन गई हैं , जिन के आखिर में आ रहा है किसी के बाप का हिन्दुस्तान नहीं है | मरने वाले ने देश के निर्वाचित प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लिए लिखा और बोला था _” मेरे शेयरों की कीमत करोड़ों रुपए है , मैं दो कौड़ी के लोगों का नाम क्यों लूं “ , अपन वह अभद्र लाईन नहीं लिख सकते जो मरने वाले ने वाजपेयी के लिए लिखी थी , जो अपने पिटा का कत्ल कर के नहीं , अलबत्ता इस देश की जनता की मोहब्बत से प्रधानमंत्री बने थे |  

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