गर्भवती बच्चियों के कानूनी अधिकार

Publsihed: 12.Mar.2021, 21:22

अजय सेतिया / बलात्कार की कोई घटना अगर राजनीति का मुद्दा बन जाती है , तो मीडिया में खूब उछाली जाती है, लेकिन जो घटनाएं राजनीति के लिए महत्व की नहीं होती , वे दब कर रह जाती हैं | बलात्कार से गर्भवती होने वाली बच्चियों या महिलाओं का मसला समाज के लिए अधिक चिंता का विषय होना चाहिए , लेकिन देश , सरकार , शासन , प्रशासन और समाज शायद इसे ले कर उतने संवेदनशील अभी भी नहीं हुए है | जब कोई जज नाबालिग के बलात्कारी सरकारी कर्मचारी से यह पूछे कि क्या वह उस लडकी से शादी करेगा , जिस से उस ने बलात्कार किया था , तो समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन की उम्मींद कैसे की जा सकती है | चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने मीडिया में उन की इस टिप्पणी पर मचे बवाल पर कहा है कि मीडिया ने उन की टिप्पणी को “आउट आफ प्रपोषण” पेश किया , अगर ऐसा था , तो सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस को जरुर मीडिया पर कार्रवाई करनी चाहिए थी | अपन ने इस पर लिखा था कि उन्होंने एक साथ दो कानूनों की अवहेलना की थी |

लेकिन अब अपन ताज़ा मुद्दे पर आते हैं , सवाल है कि बलात्कार की शिकार नाबालिग या बालिग़ भी गर्भवती हो जाती है तो उसे गर्भपात का हक है या नहीं | मौजूदा क़ानून के मुताबिक़ अगर गर्भ 12 सप्ताह यानी तीन महीने का है तो डाक्टरी परिक्षण के बाद एक डाक्टर गर्भपात की इजाजत दे सकता है | बारह सप्ताह से 20 सप्ताह यानी पांच महीने के गर्भपात  की इजाजत देने के लिए दो डाक्टरों का पैनल होना जरूरी है | मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा तीन के अंतर्गत गर्भ ठहरने के 20 हफ्ते बाद अदालत की इजाजत के बिना गर्भपात नहीं कराया जा सकता | आतंकवादियों की फांसी रोकने के लिए तो अपन ने रात को अदालते खुलती जरुर देखी हैं , लेकिन ऐसे मामलों में कभी खुलती नहीं दिखी | जब तक अदालत फैसला करे , तब तक सात महीनें हो सकते हैं और फिर इजाजत नहीं दी जा सकती |

हालांकि 1971 के इस क़ानून में संशोधन करने का बिल लोकसभा में पास हो चुका है और राज्यसभा में पास होना बाकी है | संशोधित बिल के अनुसार एक डाक्टर 20 सप्ताह तक के गर्भ को गिराने की संस्तुति कर सकता है और विशेष मेडिकल परिस्थितियों में दो डाक्टरों का पैनल 24 सप्ताह यानी छह माह तक के गर्भपात की इजाजत दे सकता है | अगर किन्ही विशेष परिस्थितियों में होने वाले बच्चे के भ्रूण में असमानताएं हो तो राज्य स्तर का मेडिकल बोर्ड 24 सप्ताह बाद के गर्भ को भी गिराने की इजाजत दे सकता है | इस सम्बन्ध में एक मामला शुक्रवार को सुप्रीमकोर्ट के सामने आया | चौदह साल की एक लडकी इस समय 26 सप्ताह की गर्भवती है | यह मामला हरियाणा के करनाल का है , उसे सही समय पर उस के गर्भपात करवाने के उस के अधिकार की जानकारी दी जानी चाहिए थी , लेकिन यह किस की जिम्मेदारी थी | किसी क़ानून में किसी की जिम्मेदारी तय नहीं की गई | शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीमकोर्ट ने कहा है कि बलात्कार की शिकार पीड़िताओं को गर्भपात से संबंधित जानकारी देने के लिए जिला स्तर पर मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाना चाहिए | अदालत इस मामले में केंद्र से चार हफ्ते में जवाब मांगा है |

26 सप्ताह की गर्भवती जिस 14 वर्षीय बालिका का मामला कोर्ट सुन रहा है , उसे कभी किसी ने नहीं बताया कि गर्भपात उस कानूनी अधिकार है | एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने पीठ के सामने स्वीकार किया कि अगर इस तरह के मामलों को देखने के लिए स्थानीय स्तर पर कोई बोर्ड होता तो बालिका को मदद मिलती | लेकिन अहम सवाल यह है कि खासकर इस मामले में राज्य बाल अधिकार आयोग की क्या भूमिका होनी चाहिए थी | क्या इन आयोगों का काम सिर्फ शिकायतों पर नोटिस जारी करना मात्र रह गया है | क्या डाक्टरों की जिम्मेदारी तय नहीं की जानी चाहिए कि इस तरह का कोई मामला उन के पास आते ही वे राज्य बाल आयोग को सूचित करें | बच्चो से यौन अपराधों के मामले में बने पोक्सो को लागू करने की जिम्मेदारी राज्यों के गृह मंत्रालय और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोगों की है | राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग इस पर गाईड लाईन जारी कर सकता था कि बलात्कार की शिकार नाबालिग अगर गर्भवती होती है तो उसे गर्भपात करवाने के उस के कानूनी अधिकार की जानकारी कौन देगा | क्या ऐसे मामलों में राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग और राज्य बाल अधिकार आयोग को खुद जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए | लेकिन अफ़सोस कि राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग सुर्खियाँ बटोरने वाली बयानबाजी के अलावा कोई रचनात्मक काम नहीं कर रहा | ( इस लेख के लेखक राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग उत्तराखंड के पूर्व अध्यक्ष हैं )

 

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