कागज नहीं दिखाना है ,विपक्ष हुआ शर्मसार

Publsihed: 12.Mar.2020, 20:07

अजय सेतिया / राजनीतिक दलों के जिम्मेदार नेता कह रहे थे कि नागरिकता संशोधन क़ानून से मुसलमानों की नागरिकता चली जाएगी | 14 दिसम्बर 2019 को रामलीला मैदान में कांग्रेस परिवार के तीनों नेताओं ने अपने भाषणों में यही कहा था | इसी को आधार बना कर उन्होंने कहा था कि सडकों पर उतरना चाहिए | शाहीन बाग़ का धरना इसी मुद्दे पर तो हो रहा है कि सीएए कारण भारत के मुसलमानों की नागरिकता खतरे में है | झर इतना फैलाया गया था शाहीन बाग़ में बच्चे तक कह रहे थे कि मोदी और अमित शाह उन्हें देश से निकालना चाहते हैं | अमित शाह ने बृहस्पतिवार को जब राज्यसभा में कपिल सिब्बल को चुनौती दी कि वह बताए कि नागरिकता संशोधन क़ानून की किस धारा से किसी की नागरिकता जाएगी , तो कपिल सिब्बल को कहना पड़ा कि नागरिकता संशोधन क़ानून से किसी की नागरिकता नहीं जाएगी |

कपिल सिब्बल ने यह बात कह कर मोदी सरकार की काफी मदद की , अब सोनिया गांधी उन की कैसी क्लास लेगी , यह नहीं कहा जा सकता | लेकिन सच यह है कि कपिल सिब्बल और गुलामनबी आज़ाद ने अमित शाह से सवाल कर के कांग्रेस और खासकर परिवार के तीनों सदस्यों को गलत साबित कर दिया | जब कपिल सिब्बल ने सदन में कहा कि वह यह नहीं कह रहे कि सीएए से किसी की नागरिकता जाएगी , तो अमित शाह ने कहा कि कांग्रेस के सारे नेता यह कह रहे थे | उन्होंने ने ही मुसलमानों को गलत जानकारी दे कर धरने प्रदर्शनों और हिंसा के लिए भडकाया | कपिल सिब्बल को तब तक एहसास हो गया था कि सोनिया गांधी निशाने पर आ चुकी हैं , इस लिए बात को सम्भालने की कोशिश करते हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि सवाल सीएए का नहीं एनपीआर का है |

यानी एक बात तो साफ़ हो गई, कपिल सिब्बल ने मान लिया कि सीएए पर कांग्रेस के सभी नेता झूठी अफवाहें फैला रहे थे | मणिशंकर अय्यर , सलमान खुर्शीद और कांग्रेस के कई और नेता शाहीन बाग़ में धरने का समर्थन गए थे , धरना सीएए के खिलाफ था , जिसे संविधान विरोधी और संविधान की रक्षा का धरना बताया गया था | कपिल सिब्बल ने एनपीआर का सवाल खड़ा कर के अमित शाह को उस पर सफाई देने का मौक़ा दे दिया , जिस से दूध का दूध पानी का पानी हो गया | सोनिया और राहुल गांधी नहीं चाहते थे कि अमित शाह को सीएए और एनपीआर पर पूरी सफाई देने का मौक़ा मिले , इसी लिए तो अमित शाह का पूरा जवाब सुने बिना ही लोकसभा से वाकआउट की रणनीति बनाई थी |

कांग्रेस ने जिस मुद्दे पर तीन महीने से देश में अफवाहों का बाज़ार गर्म कर रखा था और 9 दिन से दंगों पर तुरंत बहस के नाम पर  संसद नहीं चलने दे रही थी , उस की दो दिनों में हवा निकल गई , जब संसद में बहस हुई तो कुछ घंटों में विपक्ष खुद धाराशाही हो गया | अलबत्ता खुद कटघरे में खड़ा हो गया | कपिल सिब्बल का कहना था कि एनपीआर में कुछ नए सवाल जोड़े गए हैं , जिस के जवाब में दस्तावेज मांगे जाएंगे , अगर उन के पास दस्तावेज नहीं हुए तो पूछताछ करने वाला कर्मचारी वहां डाउटफुल यानी संदेहास्पद लिख देगा | एनपीआर को लेकर अमित शाह ने तीन बाते साफ़ की | पहली- सारे सवाल स्वैच्छिक हैं , जिस का वह जवाब न देना चाहे , न दे | दूसरी- किसी को भी “ डी “  यानी डाउटफुल नहीं लिखा जाएगा | तीसरी बात- किसी से कोई दस्तावेज नहीं माँगा जाएगा, जैसा जनसंख्या रजिस्टर 2010 में बना था , उसी तरह 2021 में बनेगा | गुलामनबी आज़ाद को “डी” पर या तो भ्रम बना हुआ था या वह समझ रहे थे कि अमित शाह इस में गोलमोल कर पल्ला झाडेंगे | सो उन ने खड़े हो कर सवाल किया , तो अमित शाह को दो-टूक जवाब से वह भी लाजवाब हो गए | इस तरह दंगों की बहस कांग्रेस को मुद्दा विहीन कर गई |  

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