अजय सेतिया / संविधान में कहीं भी सुप्रीमकोर्ट को सर्वोच्च नहीं ठराया गया , हाँ संविधान की रक्षा की गारंटी बनाए रखना सुप्रीमकोर्ट का अधिकार है , इसलिए संसद की ओर से बनाए गए कानूनों की इस लिहाज से समीक्षा का अधिकार है कि कहीं कोई क़ानून संविधान की मूल भावना के खिलाफ न बन जाए | लेकिन अब जिस तरह की पंचायती सुप्रीमकोर्ट कर रही है , ऐसी कल्पना संविधान निर्माताओं ने नहीं की होगी | जब से पीआईएल शुरू हुई है , कोई भी किसी भी मुद्दे पर सुप्रीमकोर्ट में जा खड़ा होता है और कोर्ट को दखल की दरख्वास्त दे देता है | अब किसानों के मामले में देखिए याचिकाकर्ता एमएल शर्मा ने मंगलवार को सुप्रीमकोर्ट में कहा कि किसानों को यह डर है कि उन की जमीनें बेच दी जाएँगी , इसलिए किसान तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं |
अब कोई भी जज इतना अनजान तो नहीं होता कि उसे क़ानून के नुक्ते न पता हों , इसलिए चीफ जस्टिस ने तुरंत उन्हें कहा- “कौन कहता कि किसानों की जमीने बिक जाएँगी ?” इस के बाद भी शर्मा ने कहा कि अगर एक बार किसान का कारपोरेट घराने से समझौता होता है तो उसे कारपोरेट घराने की शर्तों के मुताबिक़ ही काम करना होगा , नहीं तो उसे हर्जाना भरना होगा | अब यह बात सौ फीसदी झूठ है , क्योंकि क़ानून में तो किसान को समझौते से बाहर आने का भी अधिकार है और कांट्रेक्ट फसल का होने का प्रावधान है , जमीन का नहीं | चीफ जस्टिस यह जानते थे कि याचिकाकर्ता गलत कह रहे हैं , वैसे भी कांट्रेक फार्मिंग करना किसान की मर्जी है , यह क़ानून किसी पर बाध्यकारी नहीं है , किसान को फायदा दिखेगा तो करेगा , फायदा नहीं दिखेगा , तो नहीं करेगा | इसी तरह मंडियों से बाहर फसल बेचना भी बाध्यकारी नहीं है , किसान को फायदा दिखेगा तो मंडी से बाहर सौदा करेगा , फायदा नहीं दिखेगा तो मंदी में ही जाएगा | तीसरे जमाखोरी की इजाजत वाले क़ानून से किसानों का कुछ लेना देना ही नहीं है , अलबत्ता किसानों को भी जमाखोरी की छूट मिलती है |
तो फिर सुप्रीमकोर्ट ने तीनों कानूनों को किस आधार पर निलम्बित किया , क्या सिर्फ अवैध धरने को खत्म करवाने की पंचायती करने के लिए , इस के लिए सरकार तो सुप्रीमकोर्ट में नहीं गई थी | याचिकाकर्ता भी सरकार और किसानों में पंचायती के लिए नहीं गए थे | जबकि याचिकाकर्ता एमएल शर्मा ने तो अदालत में साफ़ साफ़ कह दिया था कि किसान न तो सुप्रीमकोर्ट की बनाई किसी कमेटी के सामने जाएंगे और न ही क़ानून वापस होने तक धरना हटाएंगे | इस पर चीफ जस्टिस ने साफ़ साफ़ कहा था –“ अगर किसान समस्या का समाधान चाहते हैं तो हम यह नहीं सुनना चाहते कि किसान कमेटी के सामने पेश नहीं होंगें |” और आखिर क्या हुआ | सुप्रीमकोर्ट की ओर से कृषि विशेषज्ञों की चार सदस्यीय कमेटी बनते ही कम्युनिस्ट (किसान) नेता दर्शनपाल सिंह ने कहा कि हम ने कल ही कह दिया था कि हम सुप्रीमकोर्ट की किसी कमेटी के सामने पेश नहीं होंगे |
आखिर वही हो रहा है , जो अपन शुरू से लिख रहे हैं , कम्यूनिस्टों की किसान आन्दोलन को शाहीन बाग़ बनाने की रणनीति है | उन्होंने पहले रोहित वेमूला के नाम पर दलितों को भडकाया , फिर नागरिकता छिनने के नाम पर मुसलमानों को भड़काया | और अब किसानों को भडका कर दिल्ली के बार्डर पर ले आए हैं | कम्युनिस्ट नेताओं ने सरकार के खिलाफ तो किसानों को भडकाया ही हुआ है , सुप्रीमकोर्ट के खिलाफ भी भडकाने के लिए जस्टिस लोया से लेकर अयोध्या तक के उदाहरण गिना दिए थे कि सुप्रीमकोर्ट सरकार को सही ठहरा देगी | इसलिए सुप्रीमकोर्ट का फैसला आते ही एक और कम्यूनिस्ट (किसान) नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा, “हमें लगता है कि ये सरकार की शरारत है कि ये सुप्रीम कोर्ट के ज़रिए कमेटी ले आए | कमेटी के सारे सदस्य सरकार को सही ठहराते रहे हैं | तो ऐसी कमेटी के सामने क्या बोलें | हमारा ये आंदोलन चलता रहेगा | कल को ये कमेटी के लोग बदल भी दें तो भी हम कमेटी के सामने नहीं जाएंगे | हमारा ये संघर्ष अनिश्चितकालीन है | हम शांतिपूर्ण तरीक़े से आंदोलन चलाते रहेंगे |” तो साफ़ है कि कम्युनिस्टों को समाधान नहीं , घमासान चाहिए |
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