चुनाव नतीजे : मेरा देश बदल रहा है 

Publsihed: 11.Mar.2017, 22:25

उत्तर प्रदेश और पंजाब के चुनाव नतीजे बहुत कुछ कहते हैं | देश की राजनीति नई करवट ले चुकी है | हमें उत्तराखंड , गोवा, पजाब और मणिपुर के चुनाव नतीजों को अलग ढंग से देखना होगा | जब कि उत्तरप्रदेश के नतीजों को अलग नजर से देखना होगा | पंजाब और उत्तराखंड की सरकारें बहुत बदनाम हो चुकी थीं | इन दोनों राज्यों की सरकारों से जनता का मोह भंग था | पंजाब में क्योंकि भाजपा खुद सरकार का हिस्सा थी, इस लिए उसे भी जनता के गुस्से का शिकार होना पडा | भाजपा, जैसा कि सोच रही थी, अगर एक साल पहले अकाली दल से अलग हो जाती, तो वह इन चुनावों में भी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की तरह एक बड़ी ताकत बन कर उभरती | आम आदमी पार्टी ने सर्जिकल स्ट्राईक, जम्मू कश्मीर के आतंकवाद , नोटबंदी और जेएनयू पर राष्ट्रविरोधी स्टैंड नहीं लिया होता तो वह पजाब में अकाली दल का विकल्प बन सकती थी | पंजाब में जनता के पास कांग्रेस के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा था | 
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत तो कई बार भ्रष्टाचार करते हुए कैमरे पर पकडे गए थे | भ्रष्टाचार तब तक मुद्दा नहीं था, जब तक किसी मोदी ने यह विशवास नहीं दिलाया था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने की सरकार की दृढ इच्छा है | उत्तराखंड में जहां कांग्रेस सरकार के खिलाफ नकारात्मक वोट पडा, वहीं उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड दोनों राज्यों के चुनाव नतीजों को केंद्र सरकार की उपलब्धियों और ज्वलंत मुद्दों पर विपक्ष की हाल ही की भूमिका से जोड़ कर भी देखना चाहिए | मणिपुर में भाजपा ने पहली बार प्रवेश किया है | लोकसभा चुनाव में भाजपा को सिर्फ 6 प्रतिशत वोट मिला था, लेकिन विधानसभा चुनावों में 35 प्रतिशत वोट मिला है , कांग्रेस पहली बार इस स्थिति में पहुँच गई कि उसे स्पष्ट बहुमत नहीं मिला , वहां भाजपा की मिलीजुली सरकार भी बन सकती है | गोवा में भाजपा को मुख्यमंत्री बदलने का खामियाजा भुगतना पडा, हालांकि सरकार अभी भी भाजपा की बन सकती है |
अब बात उस उत्तरप्रदेश की, जो मेरे देश के बदलने का संकेत दे रहा है | उत्तरप्रदेश बहुत लम्बे समय के बाद दलित और यादव आधारित दो क्षेत्रीय पार्टियों की जातिगत राजनीति से बाहर निकला है | पिछड़ों और दलित राजनीति के नाम पर उत्तरप्रदेश में दो परिवारों के गिरोह पैदा हो गए थे | इन दो परिवारों ने पिछले तीन दशक से उत्तरप्रदेश को जमकर लूटा | दलितों और पिछड़ों को कोई विकल्प नहीं सूझ रहा था, उन के छोटे छोटे हित देश और प्रदेश के बड़े हितों के सामने कमजोर पड जाते थे | 
लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उत्तर प्रदेश और बिहार की जातिवादी राजनीति को मात देने के लिए युवा वर्ग को लुभाने की सफल कोशिश की थी | लेकिन बिहार विधान सभा चुनाव में वह प्रयोग फेल हो गया था | दिल्ली विधानसभा चुनावों में में भी लोकसभा चुनाव वाली रणनीति कामयाब नहीं हुई | तो जहां एक तरफ  राहुल गांधी, नीतीश कुमार, लालू यादव, ममता बेनर्जी, अरविन्द केजरीवाल, नवीन पटनायक यह मान कर चल रहे थे कि मोदी का जादू उतर रहा है , वहां भारतीय जनता पार्टी ने अपनी बिहार और दिल्ली की हार से सबक ले कर उत्तर प्रदेश में चुनावी रणनीति बनाई थी | 
भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम माथुर को जमीनी स्थितियों का अध्ययन करने और चुनाव जीतने का खाका तैयार करके देने की जिम्मेदारी पर साल भर पहले भेज दिया गया था | ओम माथुर गुजरात में चुनावी रणनीति बनाने और सफलतापूर्वक चुनाव लड़वाने की महारत साबित कर चुके हैं | नरेंद्र मोदी और अमित शाह दोनों का माथुर पर पूरा भरोसा था | लोकसभा चुनाव के समय अमित शाह खुद उत्तरप्रदेश के रणनीतिकार थे, जिस में भाजपा को 80 में से 73 सीटें 43 प्रतिशत वोट और 317 विधानसभा सेगमेंट में जीत हासिल हुई थी | ओम माथुर और सुनील बंसल ने पिछले एक-डेढ़ वर्ष में गैर-यादवों को सपा से अलग कर और गैर-जाटवों को बसपा से अलग कर भाजपा से जोड़ने , उन का नया युवा नेतृत्व पैदा करने और पार्टी में पदस्थापित करने का सफलतापूर्वक कार्य किया | भाजपा की इस रणनीति को देख-समझ कर ही सपा और बसपा में भगदड़ मची थी | 
यह तय था कि लोकसभा की जीत दोहराने के लिए जातिवादी राजनीति का चक्रव्यूह नए सिरे से तोड़ने की रणनीति बनाना ही काफी नहीं होगा, अलबत्ता लोकसभा चुनावों में पार्टी को वोट देने वाले युवा वर्ग को अपने साथ जोड़े रखने के लिए केंद्र सरकार को काम कर के दिखाना होगा | बिहार की हार के बाद मोदी ने पार्टी की मीटिंगों में कई बार कहा कि सांसद और पार्टी केंद्र सरकार की योजनाओं का प्रचार करने में फेल रहे हैं | उत्तरप्रदेश में केंद्र सरकार की योजनाओं को न सिर्फ प्रचारित किया गया , बल्कि जिन लोगों को उस से फायदा हुआ, उस के आंकड़े भी प्रचारित किए गए | अमित शाह ने चुनाव नतीजों की एक बड़ी वजह गरीबों को लाभ पहुंचाने वाली  केंद्र सरकार की  93 योजनाएं बताई हैं | इस के साथ ही सर्जिकल स्ट्राईक और नोटबंदी ने जनता में यह विशवास पैदा किया कि मोदी सरकार की आतंकवाद और भ्रष्टाचार से लड़ने की इच्छा शक्ति है |  
भाजपा की रणनीति का तीसरा पहलू धर्म पर आधारित राजनीति के चक्रव्यूह को तोड़ना था | सपा और बसपा की जीत का सब से बड़ा कारण मुस्लिम वोटरों का एकमुश्त भाजपा के खिलाफ वोट होता रहा है | सपा ,कांग्रेस और बसपा ने अजित सिंह को इसी लिए अछूत मान लिया था, क्योंकि मुसलमान वहां वोट देने को तैयार नहीं थे ,जहां जाट वोट देंगे | मुज्जफरनगर के दंगे ने मुसलमानों और जाटो में कड़वाहट भर दी थी | इस लिए भाजपा ने शुरू में ही एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं दे कर  हिन्दू वोटरों को संकेत दे दिया कि वह उन्हें सपा,बसपा और कांग्रेस के चंगुल से बाहर निकाल सकती है | भाजपा ने भले ही विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ा ,राम मंदिर को मुद्दा नहीं बनाया, लेकिन भाजपा ने एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं दे कर जाटों के सामने भी अपने इरादे साफ़ कर दिए थे , नतीजा यह निकला कि अजित सिंह का भी सफाया हो गया | ऊपर से तीन तलाक पर सरकार के स्टैंड ने मुस्लिम महिलाओं के वोट भी जम कर बटोरे | 

 

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