पत्रकारिता के मसीहा बन कर निकले अर्नब

Publsihed: 11.Nov.2020, 21:50

अजय सेतिया / अपन ने हाईकोर्ट के उन दो जजों एसएस शिंदे और एमएस कार्णिक का नाम जाहिर करते हुए लिखा था कि क्या अर्नब गोस्वामी के मामले में उद्धव सरकार और मुम्बई पुलिस मराठी बनाम गैर मराठी हो गई है | दोनों जज मराठी थे और उन्होंने अर्नब को जमानत देने से इनकार करते हुए सैशन कोर्ट को भी यह कहते हुए चार दिन लटकाने के संकेत दे दिए थे कि वह चार दिन में जमानत का फैसला करें | बुद्धवार को अर्नब को जमानत देते हुए जब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट पर सख्त टिप्पणी की तो अपनी बात सही साबित हो गई कि हाईकोर्ट ने भेदभावपूर्ण फैसला किया था |

 

सुप्रीमकोर्ट ने न सिर्फ अर्नब गोस्वामी को जमानत दी बल्कि कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए उन्हें तुरंत रिहा करने के आदेश भी दिए | शाम चार बज कर बीस मिनट पर यह खबर आई और रात 8.27 पर भारत माता की जय और बंदे मातरम के नारे लगाते हुए अर्नब गोस्वामी जेल से बाहर निकल आए | उन पत्रकारों को जरुर मिर्ची लगी होगी , जिन के चेहरे भारत तेरे टुकड़े होंगे और लाल सलाम के नारे सुन कर खिल जाते हैं , लेकिन भारत माता की जय के नारे को व्यक्तिगत पसंद बता कर खारिज कर देते हैं | रात 10.55  अपने न्यूज रूम में पहुंच कर पत्नकारों की अपनी टीम के सामने पेश हुए तो उन्होंने सीधे सवाल किया कि क्या इस लड़ाई में वे सब साथ हैं ? सभी पत्रकारों ने अपनी प्रतिबद्धता दिखाई तो एलान किया कि रिपब्लिक कभी भी राष्ट्रवादी पत्रकारिता से समझौता नहीं करेगा | जेल से निकल कर अर्नब ने उद्धव ठाकरे को सीधी चुनौती देते हुए कहा है कि आप हार गए हैं | जैसी आशंका अपन को बनी हुई है कि उद्दव ठाकरे किसी और मामले में अर्नब गोस्वामी को गिरफ्तार कर सकते हैं , अर्नब ने भी यह आशंका जताई है | 

 

अर्नब गोस्वामी राष्ट्रवादी पत्रकारिता के हीरो बन कर जेल से निकले हैं | जेल के बाहर सैंकड़ों की भीड़ उन का स्वागत करने के लिए खडी थी , जिन्होंने भारत माता की जय के नारों का गर्मजोशी से जवाब दिया | पत्रकारिता को राष्ट्रहित के साथ जोड़ कर अर्नब गोस्वामी ने आज़ादी से पूर्व की पत्रकारिता को पुनर्जीवित किया है, जिस से टुकड़े टुकड़े गैंग वाले वामपंथी पत्रकार सदमे में होंगे ही |

 

सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने खुद महाराष्ट्र सरकार पर भी सवाल उठाए | ये सवाल पत्रकारिता की स्वतंत्रता से जुड़े हैं | अब उन पत्रकारों को शर्म आनी चाहिए जो सोशल मीडिया पर पत्रकारिता  के सर्टिफिकेट बांटते हुए लिख रहे थे कि वह पत्रकार नहीं है | वामपंथी और कांग्रेसी हितों की पत्रकारिता करने वाले सिर्फ खुद को पत्रकार मानते हैं , स्वतंत्र पत्रकार को उन्होंने कभी पत्रकार नहीं माना | वे भाजपा बीट पर काम करने वाले उन पत्रकारों को भी पत्रकार नहीं मानते , जो भाजपा की सकारत्मक खबर लिख दें , वे कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों पर सवाल उठाने वालों को भी पत्रकार नहीं मानते | जस्टिस चंद्रचूड़ ने हालांकि टिप्पणी उद्धव सरकार पर की है , लेकिन ये सर्टिफिकेट बांटने वाले पत्रकारों पर भी फिट बैठती है | जस्टिस चंद्रचूड ने कहा,‘‘उनकी जो भी विचारधारा हो, विचारधारा में मतभेद हो सकते हैं और अगर विचारधारा अलग तो चैनल न देखें | लेकिन अगर संवैधानिक न्यायालय आज इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा तो हम निर्विवाद रूप से बर्बादी की ओर बढ़ रहे होंगे।’’

 

जस्टिस चंद्रचूड की इस टिप्पणी का मतलब है कि महाराष्ट्र सरकार और महाराष्ट्र पुलिस ने लोकतंत्र और लोकतंत्र के चौथे खम्भे पर हमला किया है | आत्महत्या के लिए उकसाने के बंद हो चुके मामले को खोलने को उचित ठहरा कर अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी को जायज ठहराने वाले पत्रकारों के मुहं पर भी सुप्रीमकोर्ट ने यह कहते हुए तमाचा मारा है कि गोस्वामी को हिरासत में ले कर पूछताछ करने की कोई जरूरत नहीं थी | जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने राज्य सरकार से जानना चाहा कि क्या गोस्वामी को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ की कोई जरूरत थी , क्योंकि यह व्यक्तिगत आजादी से संबंधित मामला है | इस तरह से किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत आजादी पर बंदिश लगाया जाना न्याय का मखौल होगा | पीठ ने कहा कि सवाल यह है कि क्या आप इन आरोपों के कारण व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत आजादी से वंचित कर देंगे |

 

अर्नब गोस्वामी की गैरकानूनी गिरफ्तारी के बाद वे मीडिया संस्थान भी बेनकाब हुए जो कुछ दिन पहले तक कन्हैया और उमर खालिद की गिरफ्तारी पर तो सवाल उठा रहे थे , लेकिन अर्नब की गिरफ्तारी पर मुहं पर पट्टी बाँध ली |  पत्रकारिता को नुक्सान पहुँचाने वाले उन पत्रकारों के अलावा न्यायपालिका के माध्यम से कांग्रेसी और वामपंथी विचारधारा के हितों की रक्षा करने वाले वकील की बेनकाब हुए | सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने सुप्रीमकोर्ट को चिठ्ठी लिख कर दरख्वास्त की कि अर्नब गोस्वामी की जमानत याचिका पर सुनवाई न की जाए | तो सुप्रीमकोर्ट के वरिष्ट वकील महेश जेठमलानी ने उन्हें बेनकाब करते हुए कहा कि दुष्यंत दवे बताए कि वह असल में किसके लिए काम कर रहे हैं |”

 

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