भाजपा-शिवसेना तलाक में गुजराती-मराठी का एंगल

Publsihed: 11.Nov.2019, 18:12

अजय सेतिया / भाजपा–शिवसेना का तलाक हो गया है | भाजपा दीवार पर लिखी इबारत नहीं पढ़ सकी | वाजपेयी के जमाने में भाजपा कहा करती थी कि कांग्रेस अपने सहयोगियों को खा जाती है | इसलिए उस का कुनबा नहीं बढ़ता , जबकि भाजपा अपने सहयोगियों की कीमत पर अपना प्रभाव क्षेत्र बढाने की कोशिश नहीं करती | मोदी-अमित शाह के जमाने में भाजपा में कांग्रेस के गुण आ गए हैं | शिव सेना के भडकने के अनेक कारणों में से एक कारण यह भी है | इस की पृष्ठभूमि समझने के लिए अपन को जरा पीछे जाना पड़ेगा | भिवंडी के दंगों में अगर शिवसेना न होती तो मुम्बई में रहने वाले गुजराती व्यापारी समाज के जान माल नहीं बचते | श्रीकृष्णा आयोग की रिपोर्ट में बाला साहिब ठाकरे , नारायण राणे और छगन भुजबल के नामों का जिक्र है | शरद पवार ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में श्रीकृष्णा आयोग की रिपोर्ट को खारिज कर दिया था |

महाराष्ट्र की राजनीति के जानकार मानते हैं कि एक समय में बाला साहिब ठाकरे और शरद पवार के बहुत अच्छे सम्बन्ध रहे हैं | बाद में इन के साथ प्रमोद महाजन भी जुड़ गए थे | बाला साहिब का मुख्य प्रभाव क्षेत्र मुम्बई तक सीमित था और उन की ज्यादा दिलचस्पी मुम्बई , नवी मुम्बई , कल्याण-भिवंडी और ठाने महानगर पालिकाओं को लेकर थी | इन चारों महानगर पालिकाओं का बजट एक लाख करोड़ रूपए से भी ज्यादा है | प्रमोद महाजन और शरद पवार ने बाला साहिब ठाकरे को भरोसा दिलाया हुआ था कि वे इन क्षेत्रों में अपना प्रभाव बढाने की कोशिश नहीं करेंगे | नतीजतन बाला साहिब के ज़िंदा रहते और उस के बाद भी इन चारों महानगर पालिकाओं पर शिव सेना का कब्जा बना हुआ है | जिस में सब से ज्यादा भूमिका इन इलाकों में रहने वाले गुजराती समाज की है , जो भिवंडी दंगों के समय से बाला साहिब के कर्जदार बने हुए थे | इन चारों महानगर पालिकाओं की ढाई करोड़ आबादी में से 80 लाख गुजराती हैं |

चारों महानगर पालिकाओं में शिवसेना का प्रभुत्व बनाए रखने का अलिखित समझौता नितिन गडकरी के भाजपा अध्यक्ष रहने तक जारी रहा , लेकिन अमित शाह के भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद समीकरण बदल गए | मोदी और अमित शाह के गुजराती होने के कारण गुजराती व्यापारी भाजपा की तरफ जाने शुरू हो गए , जिस कारण शिव सेना का मूल आधार खिसकना शुरू हुआ | 2014 में शरद पवार के मूक समर्थन और ध्वनिमत से सरकार बन जाने के बाद शिवसेना इस शर्त पर सरकार में शामिल हुई थी कि इन चारों महानगर पालिकाओं पर उस का नियन्त्रण बना रहेगा | शिव सेना को सब से बड़ा गुस्सा इस बात का है कि इस विधानसभा चुनाव में गठबंधन के बावजूद शिवसेना के मुकाबले कम से कम 35 भाजपाई बागी खड़े हुए थे , जिन्होंने शिवसेना के गुजराती वोट बैंक में सेंध लगाई | उद्धव ठाकरे खुद इस के लिए अमित शाह को जिम्मेदार ठहराते हैं, इस लिए सामना में अमित शाह और मोदी पर हमले हो रहे हैं | उन का मानना है कि अगर शिवसेना ने भाजपा को सरकार बनाने के लिए समर्थन दे दिया तो भाजपा इन चारों महानगर पालिकाओं में उस को खा जाएगी |

शिवसेना का कहना है कि उद्धव ठाकरे सिर्फ ढाई ढाई साल का समझौता नहीं , बल्कि भाजपा शिवसेना सम्बन्धों की व्यापक व्याख्या चाहते थे , जिस के लिए अमित शाह बात करने को तैयार नहीं थे | शिवसेना को लगता है कि उस का अपना मुख्यमंत्री होगा तो 2021 में होने वाले चारों महानगर पालिकाओं के चुनावों तक भाजपा की तरफ गया उस का वोट बैंक लौट आएगा | इसलिए उद्धव ठाकरे ने ढाई-ढाई साल और बराबर की हिस्सेदारी की शर्त पर जिद्द पकड़ी हुई थी , जबकि भाजपा नेतृत्व ने उन्हें हल्के से लेते हुए गम्भीरता से बात तक नहीं की | एनसीपी और शिवसेना में तो किसी तरह के मतभेद थे ही नहीं , जबकि कांग्रेस- शिव सेना उतरी और दक्षिणी ध्रुव हैं क्योंकि जहां कांग्रेस सेक्यूलरिज्म के सिद्धांत पर समझौता नहीं कर सकती तो आज की तारीख तक शिवसेना हिंदुत्व की विचारधारा पर अडिग है | अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के पक्ष में फैसला आ जाने के बाद इस मुद्दे पर बाद में दोनों में टकराव होने की आशंका तो खत्म हो गई है , जबकि आने वाले समय में वीर सावरकर को भारत रत्न देने के मुद्दे पर टकराव की आशंका हो सकती है | इस लिए कांग्रेस स्पीकर का पद भले ही मांगे, सरकार में शामिल नहीं होगी |  

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