वे संघठन नहीं , सता के लिए दल बदलते हैं

Publsihed: 11.Jun.2021, 21:43

अजय सेतिया / कोई सीखना चाहे तो मुकुल राय की तृणमूल कांग्रेस में वापसी बहुत सबक देती है | तृणमूल कांग्रेस एक क्षेत्रीय पार्टी है , जिसे छोड़ कर वह देश पर शासन करने वाली भाजपा में शामिल हुए थे | यह कोई छोटी बात नहीं थी कि वह लगातार दूसरी बार विश्व की सब से बड़ी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद पर सुशोभित थे | फिर भी वह अपनी छोटी सी पार्टी में वापस लौट गए | भाजपा के लिए पहला सबक तो यह है कि वह इस बात की गाँठ बाँध ले कि वह दलबदलुओं से मजबूत नहीं होगी |

दूसरा सबक यह है कि कोई भी संगठन में काम करने के लिए दलबदल नहीं करता , दलबदल सत्ता के लिए किया जाता है | उसे उस की हैसियत के मुताबिक़ सत्ता में हिस्सेदारी नहीं मिलेगी तो वह देर सबेर वापस लौटेगा ही | कांग्रेस में मची भगदड़ इस का सब से बड़ा उदाहरण है | कांग्रेस में सत्ता के पदों की संभावनाएं खत्म हो रही हैं , तो सत्ता का स्वाद चख चुके कांग्रेसी भाजपा की तरफ मुहं कर रहे हैं | मुकुल राय सत्ता के छोटे कनवास को छोड़ कर बड़े कनवास पर सत्ता की बड़ी कुर्सी के लालच में आए थे , ममता बेनर्जी से चल रही धूपछांव दलबदल का तात्कालीन कारण रहा होगा | लेकिन भाजपा ने उसे राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद का झुनझुना थमा दिया | भाजपा का उपाध्यक्ष पद संगठन की दृष्टी से बड़ी जिम्मेदारी का पद है , लेकिन जो सत्ता के लिए पार्टी में आया हो , उस के लिए यह झुनझुना ही है |

भाजपा के लिए सीखने का तीसरा सबक यह है कि वह सांगठनिक नेताओं की उपेक्षा कर के दलबदलुओं को संगठन के पद न दिया करे | संघ की पाठशाला में तपे अविनाश राय खन्ना , श्याम जाजू , प्रभात झा और विनय सह्र्बुधे जैसे नेताओं को हटा कर दलबदलुओं को उपाध्यक्ष बनाया गया था | मुकुल राय की तरह बीजू जनता दल से आए उड़ीसा के बैजयंत पांडा, पहले माकपा और फिर कांग्रेस छोड़ के आए केरल के ए.पी.अब्दुलकुट्टी , कांग्रेस छोड़ कर आई तेलंगाना की के.अरुणा , राष्ट्रीय जनता दल छोड़ कर आई झारखंड की अनुपूरना देवी यादव भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं | इसी तरह महासचिवों और सचिवों में भी कई दलबदलू हैं | यह मुकुल राय को भी पता था कि राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिखावटी पद है , क्योंकि ज्यादातर उपाध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्रियों को बनाया जाता है |

मौजूदा उपाध्यक्ष रमन सिंह , वसुंधराराजे और रघुवर दास इस का उदाहरण है | भगत सिंह कोशियारी, रमेश पोखरियाल निशंक , शिवराज सिंह चौहान भी मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद उपाध्यक्ष पद पर सुशोभित हो चुके हैं | मुकुल राय के तृणमूल में लौटने से भाजपा को संगठन की रूपरेखा पर फिर से विचार करना चाहिए | भाजपा में किसी भी पद को जिम्मेदारी माना जाता है , पद नहीं | इसलिए भाजपा को संगठन के किसी भी पद की जिम्मेदारी को दिखावटी और एडजेस्ट करने वाला पद बनाने से बचना चाहिए | जैसे मुकुल राय चार साल सत्ता का पद नहीं मिलने पर तृणमूल में लौट गए , वैसे ही बाकी भी सत्ता का पद नहीं मिलने पर लौट जाएंगे | वे संगठन में काम करने नहीं आते , इसलिए भाजपा उन्हें संगठन की जिम्मेदारी दे कर संगठन को कमजोर करने का काम ही करती है |

भाजपा को चौथा सबक यह लेना चाहिए कि भ्रष्टाचार में फंसे नेताओं को पार्टी में शामिल नहीं करना चाहिए | मुकुल राय नारदा घोटाले के अभियुक्त थे | मुकुल राय चार साल के भाजपा के सफर में भले सत्ता हासिल नहीं कर पाए , लेकिन सत्ता का इस्तेमाल करने में तो सफल रहे | नारदा घोटाले से उन्होंने सीबीआई से क्लीन चिट ले ली थी | अब सीबीआई उन पर किस मुहं से कार्रवाई करेगी | भाजपा ने अगर मुकुल राय को पार्टी में ले ही लिया था , उन्हें सीबीआई से मुक्त करवा ही दिया था , तो उन्हें उन के कद के मुताबिक़ बंगाल में मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करना चाहिए था | उन्हें विधायक चुने जाने के बावजूद उन्हें विपक्ष के नेता पद की पेशकश भी नहीं की गई , जबकि वह बंगाल में शुभेंदू अधिकारी से निश्चित ही बड़े नेता हैं | वह तृणमूल कांग्रेस में नम्बर दो रहे थे , वही ओहदा वह फिर पा लेंगे | तृणमूल से आ कर भाजपा टिकट पर विधायक बने तीन दर्जन नेता भी मुकुल राय के पदचिन्हों पर ही वापस लौटने को बेताब लगते हैं |

 

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