क़ानून बाध्यकारी नहीं , तो विरोध क्यों

Publsihed: 11.Feb.2021, 09:32

अजय सेतिया  / अपन को मोदी की सब से अच्छी बात यह लगी कि ब्यूरोक्रेसी के बारे में उन की आँखे खुलने लगी है | उनके रूख में परिवर्तन होने लगा है | अपने मंत्रिमंडल सहयोगियों और पार्टी नेताओं के मुकाबले ब्यूरोक्रेसी को ज्यादा महत्व देने पर अपन हमेशा आलोचक रहे हैं | अपन इसी कालम में लिख चुके हैं कि सामान्य स्नातक की डिग्री ले कर आईएएस बनने वाले किसी भी विषय के विशेषग्य नहीं होते , लेकिन दुर्भाग्य यह है कि उन्हें ही सब विषयों का विशेषग्य माना जाता है | इतना ही नहीं , रिटायरमेंट के बाद भी उन्हें विशेषग्य के तौर पर मंत्रालयों में सलाहाकार नियुक्त कर दिया जाता है , यह परम्परा मोदी के राज में बढी है | मोदी ने ज्वाईट सेक्रेटरी लेवल पर सीधी भर्ती का एलान किया था , लेकिन एक नियुक्ति के बाद ही ब्यूरोक्रेसी के दबाव में आ गए थे | अपन सब जानते हैं कि देश के सारे पीएसयू का भठ्ठा बिठाने में उन्हीं ब्यूरोक्रेट्स की भूमिका है | मोदी ने जब ब्यूरोक्रेट्स को दूध देने वाले पीएसयू को बेचना शुरू किया तो ब्यूरोक्रेसी का सच उन के सामने आने लगा है , क्योंकि वे कांग्रेस और मीडिया के माध्यम से विरोध खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं |

लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर जवाब देते हुए मोदी ने पहली बार ब्यूरोक्रेसी को खरी खरी सुनाई | प्राईवेट सेक्टर को बढावा देने का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि सब कुछ बाबू करेंगे क्या | खाद का कारखाना भी वही चलाएंगे , होटल भी वही चलाएंगे , हवाई सेवा भी वही चलाएंगे , बाबुओं को ताकत दे कर हम क्या करेंगे | हम किसी भी प्राइवेटाईजेशन को नकार देंगे तो गलत होगा | पर मोदी अगर सिर्फ प्राइवेटाईजेशन के मुद्दे पर ब्यूरोक्रेसी को औकात दिखा कर चुप हो जाएंगे तो लोकतंत्र का भला नहीं होगा | मोदी ने यथास्थितिवाद पर हमला किया है , ब्यूरोक्रेसी का राज तो अंग्रेजों के समय से यथास्थितिवाद है , अंग्रेजों ने ब्यूरोक्रेसी का गठन जनता पर राज करने के लिए बनाया था | आज़ादी के बाद यह व्यवस्था बदलनी चाहिए थी , लेकिन जवाहर लाल नेहरु ने जनता पर शासन करने वाली अंगरेजी व्यवस्था को ही मजबूत किया |

मोदी को अब अंग्रेजों की बनाई शासन की नियमावली पर हमला करना चाहिए , जो लोकतंत्र को कमजोर और ब्यूरोक्रेसी को मजबूत बनाती है | अब अपन यथास्थितिवाद पर हमला करने वाले मोदी के उस मुद्दे पर आते हैं , जिस का उन ने जिक्र किया | कृषि कानूनों का विरोध कर रही कांग्रेस का कहना है कि कृषि क़ानून मांगे किस ने थे , तो वाकआउट कर रहे कांग्रेसियों पर हमला करते हुए मोदी ने कहा कि हम सामंतशाही नहीं , जो जनता को मांगने के लिए मजबूर करें | कांग्रेस ने लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर मोदी के भाषण में पहले अडंगे डाले और फिर वाकआउट कर दिया | मोदी ने भी अपना राज्यसभा वाला विपक्ष से झुक कर बात करने वाला मिजाज बदल कर कांग्रेस पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया | हालांकि इस की शुरुआत तो उन्होंने तभी कर दी थी जब मनीष तिवारी के उस जुमले का जिक्र करते हुए कि भगवान ने देश को कोरोना से बचा लिया , मोदी ने कहा डाक्टर, नर्सें , सफाई कर्मचारी और एम्बुलेंस ड्राईवर भगवान का रूप ले कर ही आए थे |

अपन एक बात कई बार लिख चुके हैं और टीवी चेनलों पर बहस में भी कहते रहे हैं कि तीनों क़ानून किसानों पर बाध्यकारी नहीं है | यह बात कृषि मंत्री से ले कर भाजपा का कोई नेता भी जोर दे कर नहीं कह रहा था | देश को यह बताया जाना जरूरी था कि जैसे नागरिकता संशोधन क़ानून मुसलमानों के खिलाफ नहीं थे , उसी तरह कोई भी कृषि क़ानून किसानों और कृषि के खिलाफ नहीं हैं | सिखों के खिलाफ होने का तो सवाल ही नहीं , जैसा कि खालिस्तानी दुनिया भर में गुमराह कर रहे हैं | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार यह बात जोर दे कर लोकसभा में कही कि कोई भी क़ानून बाध्यकारी नहीं है , तो विरोध किस बात का | क़ानून तो आप को विकल्प देते हैं , आप चाहें तो वैकल्पिक व्यवस्था को अपनाएं , नहीं चाहें , तो नहीं अपनाएं | असल में यह बात पंजाब के उन सामन्ती किसानों को शुरू से ही पता थी , इस लिए वे तो एम्एसपी की गारंटी मांग रहे थे , लेकिन आन्दोलन जब दिल्ली पहुँचा तो आन्दोलनजीवियों ने एजेंडा बदल दिया | खैर मोदी के भाषण से लगा कि वह कतई विचलित नहीं हैं , उन ने कह दिया कि बड़े बदलावों का शुरू में विरोध होता ही है |

 

 

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