अजय सेतिया / पाकिस्तान में सिधि विनायक मंदिर तोड़े जाने और अफगानिस्तान में गुरुद्र्वारे पर हमला किए जाने की ताजा घटनाओं ने एक बार फिर साबित का दिया कि मुस्लिम देशों में गैर मुस्लिमों का रहना कितना मुश्किल है | भारत में जब तीन इस्लामिक देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में सताए गए , हिन्दुओं, सिखों, बोद्धों , पारसियों और ईसाईयों को भारत की नागरिकता देने का क़ानून बना था तो भारत के कट्टरपंथी मुसलमानों ने कितना विरोध किया था | विपक्षी दलों , खासकर कम्युनिस्टों और कांग्रेसियों ने भी क़ानून का विरोध किया था , वे आज भी उस क़ानून का विरोध कर रहे हैं , जिस सिर्फ सताए गए गैर मुस्लिमों को नागरिकता देने में थोड़ी ढील दी गई है | इस क़ानून बनाए जाने के ठीक बाद जब काबुल के गुरूद्वारे में तालिबानों ने 25 सिखों को मार दिया था , तो भारत के उदारवादी मुसलमानों ने कहीं कोई विरोध प्रदर्शन नहीं किया |
अब जब 4 अगस्त को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के भोंग शरीफ इलाके में सिधि विनायक मंदिर तोड़ा गया और वहां मौजूद हिन्दू औरतों पर लोहे के गार्डरों से हमला किया गया तो कांग्रेस समेत भारत के किसी राजनीतिक दल ने जुबान नहीं खोली | शाहीन बाग़ में धरना देने वालों और उन का समर्थन करने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों से तो उम्मींद ही नहीं की जा सकती | कहाँ है वह बिलकिस बानों, शरजिल इमाम , आरफा खानम और स्वरा भास्कर , नंदिता दास , अनुराग कश्यप जो धार्मिक आधार पर उत्पीडित किए गए लोगों को शरण देने के खिलाफ धरने को मानवतावादी भीड़ बता रहे थे |
सिधि विनायक मंदिर की मूर्तियाँ इसलिए तोडी गई क्योंकि कि आठ साल के एक हिंदू बच्चे ने किसी मदरसे के पुस्तकालय के गलीचे पर पेशाब कर दिया था | कट्टरपंथियों को तो बहाना चाहिए था , उन्होंने कहा कि पुस्तकालय में इस्लामिक किताबें रखीं हुई थीं इस लिए बच्चे ने इस्लाम का अपमान किया है , उन के दबाव में पुलिस ने आठ साल के बच्चे को ईश निंदा के आरोप में गिरफ्तार कर लिया , लेकिन इन मवालियों के भडकने और मंदिर तोड़ने का कारण यह था कि अदालत ने बच्चे को जमानत पर रिहा कर दिया था | हिंसक मुसलमानों की भीड़ मंदिर में देवी देवताओं की मूर्तियाँ तोडती रही , वहां मौजूद हिन्दू महिलाओं पर हमले करती रही और वहां मौजूद पुलिस तमाशबीन बनी रही | पाकिस्तान में ऐसी घटनाए हर दूसरे महीनें होती हैं |
सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं इस्लामिक देश अफगानिस्तान में भी लगातार यही हो रहा है | अफगानिस्तान के पख्तिया प्रांत के एक गुरूद्वारे में भी उसी दिन 4 अगस्त को ही तालिबानों ने निशान साहिब को गिरा दिया | निशान साहिब हर गुरूद्वारे का मुख्य अंग होता है , जो गुरूद्वारे के आंगन में फहराया जाता है | अमेरिकी फौजों की वापसी के साथ ही तालिबानियों ने अफगानिस्तान के विभिन्न प्रान्तों पर कब्जा करना शुरू कर दिया है और गैर इस्लामिक धार्मिक संस्थानों खासकर मंदिरों और गुरुद्वारों पर हमले हो रहे हैं | हालांकि भारत सरकार के कड़े विरोध और अंतर्राष्ट्रीय दबाव में 24 घंटे बाद वहां की सरकार ने खुद निशान साबिब को दुबारा स्थापित करवा दिया है | लेकिन पिछले एक साल में ही सिखों पर कई हमले हो चुके हैं , जिन में सौ से ज्यादा सिख मारे जा चुके हैं | कुछ माह पहले उन्होंने एक सिख नेता का अपहरण कर लिया था और काबुल में 25 सिखों को मार डाला था | यह सब कुकर्म इस्लाम के नाम पर किया गया | ये कट्टरपंथी यश नहीं समझ रहे कि वे इन हरकतों से इस्लाम को ही बदनाम कर रहे हैं |
इस्लाम के नाम पर कितनी पशुता हो सकती है, इसके प्रमाण हमें अफगानिस्तान और पाकिस्तान ही नहीं पिछले हफ्ते सिडनी में भी मिले हैं, जहां प्रदर्शनकारी शरणार्थी मुसलमानों ने पुलिस पर हमला कर के उन्हें जख्मी कर दिया | इस घटना के बाद यह मांग जोर पकड़ रही है कि बाहर से आ रहे मुसलमानों को सिडनी की नागरिकता देना बंद किया जाए | यह मांग फ्रांस , जर्मनी और यूरोप के अन्य देशों में भी उठने लगी है | इन सभी देशों ने इस्लामिक देशों में चल रहे गृहयुद्ध के चलते मुसलमानों को शरण देने के दरवाजे खोल दिए थे , लेकिन अब पछता रहे हैं , क्योंकि वहां की नागरिकता लेने के बाद अब वे वहां की खुलेपन की संस्कृति बदलना चाहते हैं , जो ईसाईयों को मंजूर नहीं | इस्लाम अगर शान्ति का धर्म है तो दुनिया भर के इस्लामिक देश और दुनिया में फैले मुसलमान इसे साबित क्यों नहीं कर पाते |
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