अजय सेतिया / जिस दिन नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ जामिया मिल्लिया में हिंसक आन्दोलन हुआ , उस से अगले दिन भाजपा विरोधी रहे एक पत्रकार ने एक सरकारी टीवी चेनल पर बहस में कहा था कि यह आन्दोलन जेपी आन्दोलन जैसा ही होगा और कोई सरकार छात्र आन्दोलन के सामने कभी नहीं टिकी | उन के कहने का मतलब था कि नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ देश भर के छात्र उठ खड़े होंगे और मोदी सरकार के परखचे उड़ जाएंगे | वामपंथियों की कोशिश यह है कि मोदी सरकार के खिलाफ छात्र आन्दोलन खड़ा किया जाए , इसलिए सारी कोशिशें इसी की हो रही हैं | वामपंथी पृष्ठभूमि के फ़िल्मी कलाकार मोहम्मद जीशान अयूब का ट्विट इसी ओर इशारा करता है –“ दोस्तों, इस सरकार कि सबसे बड़ी दिक़्क़त स्टूडेंट्स से है। अगली बार जब भी , जहाँ भी जमा हों, अपने हाथ में एक किताब रखिए, कोई भी, अगर किताब मुश्किल हो तो अपने पास एक पेन ही रख लीजिए | आइए, ये लड़ाई सब छात्र बन के लड़े |”
पर सच यह है कि नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ जामिया मिल्लिया से उठा आन्दोलन धार्मिक आधार पर विरोध का आन्दोलन था , यह छात्र आन्दोलन का मुद्दा भी नहीं है | अगर आन्दोलन जेएनयू , जाधवपुर यूनिवर्सिटी या जामिया मिल्लिया को छोड़ कर कहीं और से शुरू हुआ होता , तो भी इसे छात्र आन्दोलन समझा जा सकता था | लेकिन यह भी सच है कि जेएनयू के होस्टल की फीस बढाने के घटनाक्रम ने आग में घी डालने का काम किया | वामपंथी दलों ने इस मौके का फायदा उठा कर अपने वामपंथी छात्र संगठनों के माध्यम से छात्रों का गुस्सा नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ मोड़ दिया | फीस के खिलाफ आन्दोलन के बीच ही सीएए विरोधी प्ले कार्ड लहराए गए , जो सारे देश में छात्र आन्दोलन का हिस्सा बनने लगे | वामपंथी दलों के पास छात्रों की ठोस ताकत है, जिस का वे समय समय पर अपने राजनीतिक आंदोलनों के लिए इस्तेमाल करते हैं | इस बार भी वे छात्रों का इस्तेमाल अपने मुस्लिम गठजोड़ को मजबूत बनाने के लिए कर रहे हैं | सिमी जैसे मुस्लिम आतंकवादी संगठनों ने जामिया मिल्लिया से आन्दोलन की शुरुआत कर के इसे मुस्लिम आन्दोलन बना दिया |
जामिया मिल्लिया के आन्दोलन की बागडोर पहले दिन से ही कट्टरवादी मुस्लिमों और वामपंथी छात्रों के हाथ में थी | मुस्लिम वामपंथ गठजोड़ का प्रयोग पहले भी जेएनयूं में हो चुका है , जब वामपंथी छात्र संगठनों ने आतंकवादी याकूब मेमन की बरसी मनाई और उन का सहयोग करने आए मुस्लिम छात्रों ने हम शर्मिंदा हैं , तेरे कातिल ज़िंदा हैं के नारे लगाए थे | यह इस बात का सबूत है कि वामपंथी दल अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए मुस्लिम युवाओं में विद्रोह की भावना भडका रहे हैं और उन्हें भारत विरोधी अभिव्यक्ति के लिए मंच उपलब्ध करवा रहे हैं | दो साल पहले जेएनयू में भारत विरोधी नारेबाजी से वामपंथी दलों के छात्र संगठन इतने बदनाम हो गए थे कि उस आन्दोलन के हीरो कन्हैया लोकसभा चुनाव में तीसरे नम्बर पर आए |
कन्हैया को हीरों बनाने का प्रयोग फेल हो जाने के बावजूद वामपंथी अभी भी यह समझते हैं कि छात्रों का आन्दोलन ही मोदी सरकार के परखचे उड़ा सकता है | उन्हें यह समझ नहीं आ रहा कि उन के आज़ादी के नारे ने आम भारतीय के मन में उन के प्रति कितनी नफरत भर दी है | जेएनयू , जाधवपुर यूनिवर्सिटी और हैदराबाद यूनिवर्सिटी के आंदोलनों ने छात्र आंदोलनों की छवि इतनी खराब कर दी है कि वामपंथी छात्रों का आन्दोलन जेपी आन्दोलन का रूप नहीं ले सकता | जेपी आन्दोलन इस लिए राष्ट्रीय आन्दोलन बन गया था क्योंकि उस की पहली शर्त अहिंसा थी | कामयाबी की दूसरी वजह यह थी कि आन्दोलन की बागडोर एबीवीपी के हाथ में थी और वामपंथी छात्र संगठन इंदिरा गांधी के पक्ष में खड़ा था | नागरिकता संशोधन क़ानून पर तो किसी हालत में भी आन्दोलन खड़ा नहीं हो सकता , क्योंकि यह क़ानून जनभावनाओं के अनुरूप है | विपक्षी दलों में ऐसे अनेक नेता हैं , जो नागरिकता संशोधन क़ानून को उचित मानते हैं , लेकिन वोट बैंक की राजनीति के चलते आन्दोलन का समर्थन विपक्षी दलों की मजबूरी बन गया है , अब तक शांत बैठे शरद पवार भी आन्दोलन में कूद पड़े हैं और मोदी सरकार के हर कदम का विरोध करने वाले यशवंत सिन्हा भी आन्दोलनकारियों के साथ खड़े हैं |
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