सरकारों के हाथ बाँध देती हैं अदालतें

Publsihed: 08.Mar.2020, 17:52

अजय सेतिया / आम आदमी पार्टी के विधायक अमान्तुल्ला ने दिल्ली में हिन्दुओं को साम्प्रदायिक हिंसा का निशाना बनाने वाले ताहिर हुसैन के बारे में कहा है कि उन्हें मुसलमान होने के कारण फंसाया गया है | उन्हें यह भी तो कहना चाहिए था कि अरविन्द केजरीवाल ने ताहिर हुसैन को मुसलमान होने के कारण पार्टी से निलम्बित किया है | आखिर पुलिस ने उन्हीं सबूतों के मध्यनजर ताहिर हुसैन को गिरफ्तार किया है, जिन सबूतों के मध्यनजर अरविन्द केजरीवाल ने ताहिर हुसैन को गिरफ्तारी से पहले ही निलम्बित कर दिया था , अलबत्ता ताहिर के खिलाफ तब तक तो कोई केस भी दर्ज नहीं हुआ था , सिर्फ मीडिया ही उन के हिंसा में शामिल होने के सबूत सामने लाई थी |  

टीवी चेनलों पर बहस में शामिल होने वाले सभी मुस्लिम नेता बेशर्मी से अमान्तुल्ला , वारिस पठान , शरजिल इमाम के बाद अब ताहिर हुसैन और शाहरुख का भी बचाव करने लगे हैं | वे कपिल मिश्रा और अनुराग ठाकुर को गिरफ्तार करने की मांग करते हैं और हिंसा करते हुए सबूतों के साथ पकड़े गए ताहिर हुसैन और शाहरुख को मासूम बताते हैं | सिर्फ मुस्लिम ही नहीं सेक्यूलरिज्म का झंडा उठाने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों , वामपंथियों और कुछ पत्रकारों का तर्क शास्त्र भी डगमगा गया है | ये वही लोग हैं , जो बुरहान वानी और अफजल गुरु को भी बेकसूर मानते रहे हैं | जेएनयू में अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल ज़िंदा है के नारे लगाने वालों का समर्थन करते हैं |

ये वही लोग है जो 2001 के आतंकवादी हमले को आरएसएस की साजिश और जो ओखला की मुठभेड़ को फर्जी बताते रहे है , जिसमें हेड कांस्टेबल  मोहन लाल शहीद हुए | बाद में कोर्ट में मुठभेड़ असली साबित हुई और मुठभेड़ में शामिल आतंकवादियों को सजा हुई थी | अब शायद उन्हें लगता है कि अनुराग ठाकुर के गोली मारो वाले नारे से प्रभावित हो कर शाहरुख ने पुलिसकर्मी के सामने पिस्तौल तान ली थी | उन्हें लगता है कि शाहीन बाग़ के बाद जाफराबाद की सडक को रोकना मुस्लिमों का संवैधानिक अधिकार था , जबकि कपिल मिश्रा ने पुलिस को सडक खुलवाने की चेतावनी दे कर उन के सवैधानिक अधिकारों का उलंघन किया |

पिस्तौल , तेज़ाब , तलवारों और पत्थरों की बरसात किन सवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए की गई , जिस में 44 लोग मारे गए | हिंसा की शुरुआत 23 फरवरी को नहीं , अलबत्ता 15 दिसम्बर को ही हो गई थी जब दिल्ली से ले कर लखनऊ तक जम कर हिंसा की गई थी , फर्क सिर्फ इतना था कि दिसम्बर में आगजनी की घटनाएं ज्यादा हुई क्योंकि तब मार-काट की पूरी तैयारी नहीं थी | अब तो पूरे सबूत सामने आ गए हैं कि दंगों की तैयारी हफ्तों से की जा रही थी , तो फिर कपिल मिश्रा के 23 फरवरी के बयान को जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है |

15-16 दिसम्बर को दिल्ली के साथ साथ उत्तर प्रदेश में ज्यादा हिंसा हुई थी , जहां दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल ने दंगाईयों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की थी , वहीं योगी सरकार ने दंगाईयों से नुकसान की भरपाई के नोटिस दे कर खलबली मचा दी थी , इस कारण फरवरी में उतर प्रदेश में दंगे नहीं हुए | अलबत्ता उत्तर प्रदेश में सीसीटीवी से मिले सबूतों के आधार पर बाजारों में दंगाईयों के होर्डिंग लगा कर योगी सरकार ने नया उदाहरण पेश किया | हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने होर्डिंग को लेकर सुओ मोटो सुनवाई शुरू कर के सरकार के प्रसाशनिक अधिकार में दखल दिया है , संडे के दिन कोर्ट ने सुनवाई भी की , जिस पर फैसला सोमवार को आएगा | क्योंकि हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर ने सुओ मोटो केस अपने हाथ में लिया है इस लिए सरकार की खिंचाई होने के आसार हैं , लेकिन अदालतों का इसी तरह का दखल आतंकवादियों , दंगाईयों और दहशतगर्दों के खिलाफ कार्रवाई में सरकारों के हाथ बाँध देता है |

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