अजय सेतिया / वामपंथी पत्रकारों की भाषा देखिए | यह मोदी सरकार विरोधी एक न्यूज चेनेल की वेबसाईट से लिया गया पैराग्राफ है –“ बहरामके (बलवंत सिंह) ने अपनी टेबल पर डायरी पर पंजाबी में लिख रखा था कि हम मरेंगे या जीतेंगे. किसान नेताओं की यह दृढ़ता दिखा रही है कि सरकार भले ही वार्ता को लंबा खींचकर उन्हें थकाने और आंदोलनकारियों को अलग-थलग करने का प्रयास करे, लेकिन वे डिगने वाले नहीं हैं.” लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है , 26 नवम्बर के मुकाबले अब आधे किसान भी नहीं रहे | किसानों के धरने के आसपास के ग्रामीणों ने उन का विरोध करना शुरू कर दिया है | इंडिया टीवी के एक रिपोर्टर ने इन गावों में जा कर खेत खलिहानों में किसानों से बात की | इन किसानों में से कोई एक भी आन्दोलन के पक्ष में नहीं मिला |
अपन को तो हैरानी हुई कि दिल्ली में बैठे पत्रकारों से ज्यादा तो गाँवों के लगभग अनपढ़ किसानों को तीनों कानूनों की बारीकियां और आन्दोलन के पीछे राजनीति की बात मालूम थी | एक किसान ने कहा कि जब पंजाब में पहले से कांट्रेक्ट फार्मिंग का क़ानून लागू है , कांट्रेक्ट फार्मिंग भी हो रही है , किसी किसान की जमीन पर कोई पूंजीपति कब्जा कर सका क्या ? तो फिर आशंका कैसी | एक किसान ने कहा कि कांट्रेक्ट फार्मिंग के क़ानून से किसानों का पक्ष मजबूत किया गया है , किसान चाहे तो कांट्रेक्ट बीच में तोड़ सकता है , पर कारपोरेट घराना नहीं तोड़ सकता | एक किसान ने कहा कि मंडियों से बाहर बिक्री होते ही दस रूपए क्विंटल तो रेट तुरंत बढ़ कर मिलेगा | मंडियों में गेहू को सीलन वाला बता कर आढती भाव गिरा देता है , जबकि कांट्रेक फार्मिंग में तो ऐसा हो ही नहीं सकता |
दो किसानों ने बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही | उन्होंने कहा कि हमे तो क़ानून किसानों के लिए फायदेमंद लगते हैं , आन्दोलनकारियों की कानूनों को वापस लेने की जिद्द के सामने कोई सरकार नहीं झुकेगी | इस तरह सरकार नहीं चला करती , इस तरह तो सरकार का अखलाक ही खत्म हो जाएगा | कल को 370 वापस लेने और तीन तलाक वापस लाने की मांग ले कर हाईवे पर बैठ जाएंगे | कुछ किसानों का कहना था कि वे भी बीच बीच में तफरी करने के लिए धरना स्थल पर चले जाते हैं , लेकिन उन्होंने पाया कि असली किसान तो 25-30 प्रतिशत ही हैं , आढती ज्यादा हैं , अगर किसान जागरूक हो गया और तीनों कानूनों का फायदा उठाने लगा तो आढतियों को ही नुक्सान होगा |
अब अपन चलते हैं दिल्ली चंडीगढ़ के रास्ते में करनाल के पास धरने पर बैठे पंजाब के ( और कुछ हरियाणा के भी ) किसानों के पास | इन किसानों ने 8 जनवरी को करनाल के पास कैमला गाँव में कूच किया था | कूच का मकसद यह था कि वहां होने वाला हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का दौरा रद्द करवाया जाए | खट्टर 10 जनवरी को किसान पंचायत करने जाने वाले हैं | किसान गाँव में अपना दबदबा और समर्थन दिखा कर मुख्यमंत्री को दहशत में डालना चाहते थे ताकि वह विरोध की आशंका को देखते हुए दौरा रद्द कर दे | लेकिन हुआ इस के उल्ट , गाँव के लोगों ने आंदोलनकारी किसानों को गाँव में घुसने नहीं दिया | पंजाब के किसान और स्थानीय किसान आमने सामने आ गए और उन्हें आन्दोलनकारियों को खदेड़ दिया गया | इस का वीडियो हाथों हाथ वायरल हो गया |
उम्मींद के मुताबिक़ ही आठवें दौर की बातचीत भी फेल हो गई है | सरकार की तरफ से कृषि मंत्री ने दो टूक कह दिया है कि क़ानून वापस नहीं होंगे , सरकार कानूनों के एक एक मुद्दे पर बात करने को तैयार हैं | जबकि कम्युनिस्टों के उकसावे में आए किसान तीनों कानूनों की वापसी वाली बेतुकी मांग पर अड़े हैं | हालांकि किसान नेता यह नहीं बता रहे हैं कि क़ानून कैसे किसान विरोधी हैं | बिजली अध्यादेश और पराली जलाने पर जुर्माने का नोटिफिकेशन सुधारने की मांग मान लिए जाने पर उन्हें एमएसपी पर बातचीत को आगे बढाना चाहिए था | तीनों में से किसानों से सबंधित दो कानूनों की उन खामियों को दूर करने के लिए सरकार पहले ही तैयार हो चुकी है , जिन पर उन्होंने आपति जताई थी | अब 15 जनवरी को बैठक होगी , होना उस बैठक में कुछ नहीं , जैसे शुक्रवार को किसान नेता एक घंटा चुप्पी साध कर बैठे रहे , वही नाटक 15 को भी दोहराया जाएगा |
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