वामपंथियों को पहली बार चुनौती

Publsihed: 08.Jan.2020, 15:50

अजय सेतिया / वामपंथियों में एक खासियत हमेशा रही है | अब आप इसे खासियत समझें या क़ानून को चुनौती देना | वे अपने आंदोलनों में सारी ताकत झोंक देते हैं | सडकें लाल झंडों से पाट देते हैं और रेलमार्ग ठप्प कर देते हैं | उन का किसान आन्दोलन हो , मजदूर आन्दोलन हो. छात्र आन्दोलन हो , सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का मामला हो या शनि शिगनापुर का आन्दोलन | आंदोलनों के चेहरे अलग अलग होते हैं | पर आन्दोलन में हिस्सा लेने वाले सारे वही के वही |

मुद्दा कोई भी हो ,या कहें कि बहाना कोई भी हो , देश भर के उन के संगठन सीटू , इंटक , एटक , जनवादी महिला समिति , आल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा)', स्टूडेंट्स फेडरेशन आफ इंडिया (एसएफआई) और डेमोक्रेटिक स्टूड़ेंट्स फेडरेशन (डीएसएफ), लेखकों, नाटककारों, कलाकारों, फिल्मकारों के संगठन इप्टा के सदस्य सब एक साथ कूद पड़ते हैं | वामपंथी विचारधारा के अध्यापक टीवी चेनलों पर बहस करने और वामपंथी स्कूल के पत्रकार एक तरफा खबरें लिखने में सक्रिय हो जाते हैं | ऐसे लगता है जैसे सारा देश वामपंथी हो गया है |

लम्बे समय तक जातिवादी और मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के सहारे कांग्रेस और वामपंथियों की राजनीति चलती रही है | पहली बार  2014 में नरेंद्र मोदी अल्पसंख्यकवाद और जातिवाद को चुनौती देते हुए चुनाव मैदान में उतरे और जनता ने उन्हें स्पष्ट बहुमत दिया | कांग्रेस तो पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है , लेकिन कम्युनिस्ट समाज के सभी क्षेत्रों में व्याप्त अपने संगठनों के माध्यम से हिंदुत्व की एकता तोड़ने की रणनीति बनाते रहते हैं | वह कभी हिन्दुओं में विभाजन रेखा खींचने के लिए महिषासुर का शहादत दिवस के रूप में सामने आता है , कभी हैदराबाद में रोहित वेमूला की आत्महत्या मुद्दा बनता है | कभी भीमा कोरेगांव के कार्यक्रम को हिंसक बनाया जाता है |

नागरिकता संशोधन क़ानून , जनसंख्या रजिस्टर और नागरिकता रजिस्टर आन्दोलन के नए मुद्दे हैं | वामपंथी दलों के सारे घटक सडकों पर उतर आए हैं | देश भर छात्रों को अपने आन्दोलन में जोड़ने के लिए जेएनयूं की होस्टल फीस को राष्ट्रीय राजनीति का मुद्दा बना दिया गया | छात्र आन्दोलन तो करते हैं फीस वृद्धि के खिलाफ लेकिन उन के हाथों में प्ले कार्ड होते है कश्मीर की आज़ादी, नागरिकता रजिस्टर आदि राजनीतिक मुद्दों के | जेएनयू में तो पिछले कुछ अरसे से खुल कर भारत विरोधी राजनीति हो रही है | मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन की फांसी के खिलाफ जिस तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं , आप सोचिए क्या भारत के किसी अन्य हिस्से में इस तरह के सार्वजनिक कार्यक्रम किए जा सकते हैं |

आप याद करिए याकूब मेमन की फांसी रुकवाने के लिए जिन 40 हस्तियों ने राष्ट्रपति को चिठ्ठी लिखी थी , वे कौन लोग थे | तो उस सूची में आप सीता राम येचुरी और डी.राजा के साथ जावेद अख्तर , अनुराग कश्यप महेश भट्ट जैसों के नाम ही पाएंगे | याद करिए वे कौन लोग थे जिन्होंने नरेंद्र मोदी को अमेरिका का वीजा नहीं दिए जाने के लिए अमेरिकी प्रशासन को चिठ्ठी लिखी थी |

मीडिया के माध्यम से हवा बनाने वाले कम्युनिस्ट पार्टियों से जुड़े ज्यादातर लोग पढ़े लिखे हैं , खासकर जेएनयू के छात्र और फिल्म इंडस्ट्री के वामपंथी | और वे जानते हैं कि भारत में पहले भी हिन्दुओं को धर्म के आधार पर भारत की नागरिकता दी गई थी | वे जानते हैं कि बंटवारे के समय पाकिस्तान में रह गए अल्पसंख्यक हिन्दुओं को भारत का वायदा था , वे जानते हैं कि भारत ने उन की चिंता करते हुए पाकिस्तान से समझौता भी किया था | वे जानते हैं कि जिन तीनों देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता के नियम शिथल किए गए हैं , वे तीनों शरीयत के आधार पर चलने वाले इस्लामिक देश हैं , इस के बावजूद वामपंथी  आन्दोलन असल में मोदी सरकार को ध्वस्त करने की लड़ाई है | जिसे संघ परिवार एक चुनौती मानता है , क्योंकि 70 साल के इन्तजार के बाद जब पहली बार हिन्दुओं को गर्व से जीने का मौक़ा मिला है , तो वे इसे जाने नहीं देंगे , इसलिए संघ परिवार के घटक वामपंथियों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं |

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