अजय सेतिया / महाराष्ट्र की राजनीति नेताओं के इर्द गिर्द घूमती रही है | पांच दशक तक शरद पवार और बाला साहिब ठाकरे दो ध्रुव बने रहे | सोनिया गांधी के नेतृत्व के खिलाफ शरद पवार जब 1999 में कांग्रेस छोड़ कर गए तो कांग्रेस में कोई भी नेता उन की बराबरी का नहीं बचा था | विलासराव देशमुख कुछ हद तक विकल्प जरुर बन रहे थे | भारतीय जनता पार्टी को जिस तरह प्रमोद महाजन ने खड़ा किया , वह काडर बेस पार्टी को खडा करने का पहला प्रयास था , जिसे बाद में गोपीनाथ मुंडे आगे बढ़ा रहे थे | प्रमोद महाजन ने इस बात को समझा था , तभी 1994 में भाजपा का शिवसेना से गठबंधन करवाया था ,ताकि बाला साहिब ठाकरे का नेतृत्व मिल सके , नतीजतन 1995 में पहली भाजपा-शिवसेना सरकार बनी | अब भारतीय जनता पार्टी की राजनीति महाराष्ट्र में न तो किसी नेता के इर्द गिर्द घूमती है , न ही काडर बेस्ड है | भाजपा बाहर से आए प्रवासी नेताओं की पार्टी बन गई है, जो सत्ता जाते ही बिखर जाएगी |
शरद पवार ने अपने वारिस के तौर पर अपने भतीजे अजित पवार को लांच किया था , जो अपने व्यवहार के कारण विफल होते दिखाई दिए तो उन्होंने अपनी बेटी सुप्रिय सुले को लांच किया | लेकिन सुप्रिय सुले के व्यवहार से परेशान हो कर इस बार एनसीपी के 42 विधायकों में से 31 पार्टी छोड़ चुके हैं , जिन्हें भाजपा और शिवसेना ने टिकट भी दे दिए हैं | बाकी बचे विधायकों की भी शिवसेना और भाजपा से बात चल रही थी , जिन में छगन भुजबल भी शामिल थे | पार्टी को खाली होता देख कर शरद पवार ने 20 सितम्बर को औरंगाबाद में बचे खुचे 11 विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों की तीन दिवसीय बैठक बुलाई , जिस में सभी ने कह दिया कि वे सुप्रिय सुले के नेतृत्व में काम नहीं करेंगे | पार्टी को बचाने के लिए शरद पवार ने अपने दूसरे भतीजे प्रताप पवार के बेटे यानी अपने पोते रोहित पवार के बारे में पूछा तो सभी ने हामी भर दी , असल में रोहित पवार के काम करने की शैली और उनका मृदभाषी होना उन की तरफ आकर्षित करता है |
शरद पवार की पार्टी का संकट यहीं पर खत्म नहीं होता है , इसी बैठक में शरद पवार ने यह भी घोषणा कर दी कि उन की पुरानी बारामती सीट पर रोहित पवार चुनाव लड़ेंगे और विधायक दल के नेता भी वही होंगे | इतना कहना था कि विधानसभा से इस्तीफा दे चुके अजित पवार रूठ गए , खबर तो यह है कि अजित पवार की शिव सेना से बात चल रही थी | ऐसी भनक मिलते ही पवार को सलाह दी गई कि वह रोहित को बारामती की बजाए बगल की जमखेड सीट पर चुनाव लड़वाएं , पवार ने अपने परिवार की फूट टालने के लिए तुरंत इस सुझाव पर अमल किया | नया नेतृत्व मिल जाने पर एनसीपी में नया उत्साह है और पार्टी कम से कम पिछ्ला 42 का आंकडा बनाए रखने की उम्मींद बनाए हुए है |
उधर जिस तरह शरद पवार का भतीजा अजित पवार राजनीतिक वारिस के तौर पर विफल रहा , वैसे ही बाला साहिब के भतीजे राज ठाकरे को किनारे कर पार्टी अध्यक्ष बने उद्धव ठाकरे अपने पिता बाला साहिब ठाकरे के वारिस के तौर पर विफल हो गए | वह मोदी-अमित शाह की नई भाजपा पर शिवसेना का वर्चस्व बनाए रखने में फेल हो गए | इस विधानसभा चुनाव में हालांकि शिवसेना का भाजपा के साथ चुनावी गठबंधन हो गया है , लेकिन कोई इस तरह की उम्मींद तो कतई नहीं कर रहा कि शिवसेना की सीटें भाजपा से ज्यादा आ जाएँगी | इसलिए शिवसेना के सामने भाजपा से आगे निकलने की चुनौती है | शिवसेना के सामने अलबत्ता दो चुनौतियां हैं , एक तो भाजपा से आगे निकल कर मुख्यमंत्री पद पर दावा ठोकने की चुनौती और दूसरे एनसीपी के नए आकर्षक चेहरे रोहित पवार की चुनौती |
इस दोहरी चुनौती से निपटने के लिए आदित्य ठाकरे ने खुद चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया , ताकि पिता उद्धव ठाकरे के मुरझाते नेतृत्व को वैसाखी दी जा सके | आदित्य के चुनाव मैदान में कूदते ही शिवसेना काडर में नया उत्साह आ गया है | वैसे तो चुनाव नतीजे तय करेंगे , लेकिन आदित्य और रोहित को महाराष्ट्र की राजनीति में भविष्य के चेहरों के तौर पर देखा जा रहा है , देखना यह होगा कि रोहित अपने दादा शरद पवार के वारिस साबित होंगे या नहीं और आदित्य अपने दादा बाला साहिब ठाकरे के राजनीतिक वारिस साबित होंगे या नहीं | क्या दो दशक के विराम के बाद महाराष्ट्र की राजनीति दादाओं के हाथ से पोतों के हाथ में आ कर उन के इर्द गिर्द घूमने लगेगी | शिवसेना कोई कसर नहीं छोड़ रही , उस ने शिवसेना से निकाले गए अनेकों को वापिस ले कर टिकट थमा दिया है , संजय निरुपम भी वापस आने को तैयार बैठे हैं , जिन्हें बाला साहिब ठाकरे ने खुद बाहर किया था | जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो उस के पास विलास राव देशमुख के बाद न नेता है , न काडर | भाजपा तो अब मोदी और अमित शाह के इर्दगिर्द घूम रही है और उन का करिश्मा तो अभी कायम है |
आपकी प्रतिक्रिया