सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Publsihed: 07.Apr.2020, 14:44

अजय सेतिया / दुनिया का सर्वश्रेष्ट देश मानने वाला अमेरिका अब जल्द ही कोरोना वायरस से मौतों में भी दुनिया का अव्वल देश बनने जा रहा है | अभी तक 16000 मौतों के साथ इटली नम्बर वन पर है | जो गलती इटली ने की थी , वही अमेरिका दोहरा रहा है , लाक डाउन पूरी तरह सख्ती से लागू नहीं हुआ है | जापान सहित दुनिया के कई देश कोरोना वायरस की वेक्सीन बना लेने का दावा कर रहे हैं , घोषणा कर रहे हैं कि बस आख़िरी टेस्ट चल रहा है | अमेरिका ने अभी तक किसी दवाई के आविष्कार का दावा नहीं किया है , अमेरिका के राष्ट्रपति भारत की तरफ देख रहे हैं | राष्ट्रपति ट्रम्प ने पिछले रविवार को नरेंद्र मोदी से बात की तो उन्होंने राजस्थान के डाक्टरों की और से किए गए सफल प्रयोग वाली दवाई हाइड्रोक्सी क्लोरोक्यून माँगी | राजस्थान के डाक्टरों ने कोरोना वायरस के पहले मरीज का सफल इलाज हाइड्रोक्सीक्लोरोक्यून और एल्थ्रोमाईसीन के साथ किया था |

भारत ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्यून, क्लोरोक्यून और क्रोसिन जैसी दवाईयों के निर्यात पर कुछ दिन पहले ही प्रतिबंध लगा दिया था , क्योंकि कहीं ऐसा न हो , कि जब भारत को इस की बड़ी मात्रा में जरूरत हो तो इन की उपलब्धता ही न हो | अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर से जब भारत के प्रधानमंत्री से गुहार लगाई गई तो स्वाभाविक था कि भारत मानवता के आधार पर सकारात्मक जवाब देगा क्योंकि भारत की पहचान सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत् ॥ की रही है  | गरुड पुराण से लिए गए इस श्लोक का भावार्थ है- "सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।" ऐसी संस्कृति वाला देश अमेरिका को दवाई देने से इनकार कैसे कर सकता था |

इस से पहले कि भारत की ओर से पाबंदी के छूट का एलान किया जाता , मीडिया में एक विवाद शुरू हो गया कि राष्ट्रपति ट्रम्प ने मोदी को धमकी दी थी कि अगर भारत ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्यून के निर्यात पर लगी पाबंदी नहीं हटाई तो अमेरिका देख लेगा | हालांकि ट्रम्प ने ऐसी कोई धमकी नहीं दी थी , उन्होंने कूटनीतिक भाषा का इस्तेमाल किया था | जिस का मतलब सिर्फ इतना था कि आज आप हमारी मदद करोगे , तो हम भी आप के साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे और अगर आज आप हमारी मदद नहीं करेंगे , तो हम भी आप के साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे | यह लाचारी दर्शाने वाली भाषा है , न कि धमकी देने वाली भाषा |

जरूरी है कि ट्रम्प की ओर से कहे गए वाक्य को समझ लें , उन्होंने कहा था- "मैंने रविवार सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की थी और मैंने कहा था कि अगर आप हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन की आपूर्ति को मंजूरी देते हैं तो हम आपके इस कदम की सराहना करेंगे | यदि वह दवा की आपूर्ति की अनुमति नहीं देते हैं तो भी ठीक है, लेकिन हां, वे हमसे भी इसी तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद रखें |" यही कूटनीतिक आदान प्रदान की भाषा है |

भारत सरकार ने मंगलवार को जब पाबंदी में ढील देने का फैसला किया तो आधिकारिक प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने इस बात पर अफ़सोस जाहिर किया कि मीडिया का एक वर्ग जानबूझ कर दवा को लेकर अवांच्छित विवाद खड़ा कर रहा है | उन्होंने कहा कि एक जिम्मेदार सरकार के नाते हमारा कर्तव्य था कि हम भारत के लिए पर्याप्त स्टाक रखें, इस बात को ध्यान में रखते हुए कुछ दवाईयों के निर्यात पर अस्थाई पाबंदी लगाई गई थी | अब जब यह आकलन कर लिया गया कि किस तरह के हालात में कितनी दवा की जरूरत पड़ेगी और पर्याप्त स्टाक जमा कर लिया गया है तो निर्यात पर लगी पाबंदी हटा ली गई है | इस तरह की 14 दवाईयों से सोमवार को पाबंदी हटाई गई है लेकिन हाइड्रोक्सीक्लोरोक्यून और पेरासिटामोल को अभी भी लाईसेंस केटागिरी में रखा गया है , यानी जब भी भारत को जरूरत महसूस होगी इन के निर्यात पर पाबंदी लगा दी जाएगी , लेकिन फिलहाल निर्यात की छूट दी गई है |

सरकार के बयान का अंतिम पैराग्राफ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः की भारतीय  संस्कृति और भारतीय परम्परा से ज्यादा मेल खाता है , जिस में कहा गया है कि संकट की घड़ी में एकजुटता की जरूरत है , जैसे हम ने दूसरे देशों के नागरिकों को चीन आदि देशों से निकालने में मदद की थी , उसी तरह भारत अपने पडौसी देशों और उन देशों को इन दोनों लाईसेंसी दवाओं की आपूर्ति जारी रखेगा जो भारत पर निर्भर हैं | और उन देशों को भी दवा की सप्लाई जारी रहेगी , जो देश कोरोना वायरस से सर्वाधिक प्रभावित हैं |

 

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