इमरान ने इस्लामोफोबिया से क्या पाया 

Publsihed: 05.Oct.2019, 17:47

अजय सेतिया / अब जब गर्द बैठ गई है तो इस्लामिक दुनिया में इमरान खान के संयुक्त राष्ट्र में दिए गए भाषण की समीक्षा शुरू हो गई है | यह भी समीक्षा की जा रही है कि इमरान खान की भरसक कोशिश के बावजूद 58 मुस्लिम देशों में से सिर्फ दो टर्की और मलेशिया ही इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान के साथ क्यों खड़े हुए | असल में अब खुलासा यह हो रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की ओर से इस्लामिक आतंकवाद के साथ सीधे संघर्ष की घोषणा के बाद इस्लामिक मुल्क अमेरिका के साथ सीधे टकराव को टालना चाहते हैं | खबर तो यहाँ तक आई है कि इस्लामिक मुल्कों ने इमरान खान से कह दिया था कि वह मसला-ए-कश्मीर को इस्लाम के साथ न जोड़ें और ईरान के मुद्दे पर बिचौलिया बनने की पेशकश न करें , लेकिन इमरान खान ने अपनी घरेलू राजनीति की मजबूरी के चलते इस्लामी देशों की दोनों बातें नहीं मानी | इमरान को यह सलाह देने वालों में सऊदी अरब भी था , जिस ने इमरान को अपना ख़ास मेहमान बताते हुए प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के विशेष विमान से सयुंक्त राष्ट्र की बैठक में हिस्सा लेने के लिए अमेरिका रवाना किया था | सात दिन तक यह विमान उन की सेवा में था , लेकिन वापसी के समय विमान में तकनीकी खराबी आ गई  जिस कारण इमरान खान को कमर्शियल फ्लाईट से पाकिस्तान लौटना पड़ा | अब खबर यह आ रही है कि कोई तकनीकी खराबी नहीं आई थी , बल्कि इमरान की ओर से दोनों सलाहें नहीं माने जाने के कारण विमान छीन लिया गया था | 
इमरान खान के इस्लामीफोबिया के बावजूद मुस्लिम देश उन के साथ खड़े नहीं हुए , उन्होंने पाकिस्तान में भले ही वाहवाही करवा ली हो , सच यह है कि कश्मीर के मुद्दे पर उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ | क्योंकि यह बात दुनिया के किसी भी देश के पल्ले नहीं पड़ी कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव से चार साल बाद 1952 में भारत के संविधान में जोड़े गए अनुच्छेद 370 को बनाए रखने या हटाने से संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का क्या ताल्लुक है | संयुक्त राष्ट्र के 1948 के प्रस्ताव में जनमत संग्रह तक यथास्थिति कायम रखने की बात के बावजूद जब पाकिस्तान ने 1970 में लद्दाख का हिस्सा रहे गिलगित और बाल्टिस्तान को पीओके से अलग कर के पाकिस्तान का केंद्र शासित क्षेत्र बना लिया था , तो उसे क्या हक बनता है कि वह लद्दाख को केंद्र शासित क्षेत्र बनाने या जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित राज्य बनाने पर एतराज करे | इस लिए संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने ही चीन और पाकिस्तान की आपत्तियों को खारिज कर दिया था | 370 हटाने को इस्लाम पर हमला बताना और कश्मीर के 80 लाख मुसलमानों के अधिकारों का हनन बताना किसी के पल्ले नहीं पड़ा | दुनिया के देशों ने कश्मीर पर जो स्टेंड पहले लिया हुआ था वही जस की तस कायम है | 
संयुक्त राष्ट्र से निराश हो कर लौटे इमरान खान ने हवाई अड्डे पर ही एलान किया कि दुनिया का कोई देश पाकिस्तान का साथ दे या न दे , पाकिस्तान कश्मीर के लिए जेहाद करता रहेगा और पाकिस्तान के लिए यह खुदा का काम है | इमरान खान ने कश्मीर को पाकिस्तान का जेहाद बता कर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी और पाकिस्तान की छवि जेहादी प्रधानमंत्री और जेहादी मूलक की बना ली , जिस से अब तक पाकिस्तान बचता रहा था | पाकिस्तान के पढ़े लिखे मुसलमानों की नजर में यह किसी प्रधानमंत्री का बयान नहीं , बल्कि किसी मूल्ला का फतवा है , इस तरह के फतवे मुल्ला देते रहते हैं कि क्या काम करना जेहाद है और क्या करना जेहाद नहीं है | कुरआन में जेहाद का हक सिर्फ उसे है , जिन के खिलाफ लड़ाई लडी गई, जिन पर जुल्म हुआ और जिन्हें उन के घरों से बेघर किया गया | इस लिए इमरान के इस्लामोफोबिया के बावजूद उन का जेहाद कुरआन के मुताबिक़ नाजायज है | कश्मीरी मुसलमानों के खिलाफ जेहाद का हक तो कश्मीरी पंडितों को है , जिन पर जुल्म हुए और उन्हें घरों से बेघर किया गया | कुरआन में जेहाद आतंकवाद नहीं है , लेकिन मुसलमान जानते हैं कि पाकिस्तान कश्मीर में पिछले तीन दशक से जेहाद के नाम पर आतंकवाद का समर्थन करता रहा है | इमरान खान के इस्लामोफोबिया में शायद आतंकवाद ही जेहाद है , इसलिए उन्होंने कहा कि जेहाद जारी रहेगा |

 

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