पर हॉकी को राष्ट्रीय खेल का रूतबा तो दो

Publsihed: 06.Aug.2021, 20:53

अजय सेतिया / टोक्‍यो ओलिंपिक में भारतीय पुरुष और महिला हॉकी टीम के शानदार प्रदर्शन ने एक बार फिर इस खेल के प्रति लोगों का ध्‍यान आकर्षित किया है | मनप्रीत सिंह के नेतृत्‍व वाली पुरुष हॉकी टीम ने कांस्‍य पदक जीता | रानी रामपाल की कप्‍तानी वाली भारतीय महिला हॉकी टीम कांस्‍य पदक के मुकाबले में ब्रिटेन से 3-4 के अंतर से हार गई | महिला हॉकी टीम अपना मुकाबला आज हारी जरूर लेकिन वह अपने जुझारू प्रदर्शन से खेलप्रेमियों का दिल जीतने में कामयाब रही | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिला हॉकी टीम से फोन पर बात कर के उन की हौंसला अफजाई की | यह पहला मौक़ा है जब देश के प्रधानमंत्री ने सिर्फ पीआईबी से बयान जारी करवा कर बधाई नहीं दी | बल्कि हारी हुई अपनी टीम की भी हौंसला अफजाई की |

मोदी पहले ही एलान कर चुके थे कि राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदला जाएगा | मोदी ने इस मौके पर इस सर्वोच्च पुरस्कार का नाम भी बदल दिया | अब खेल रत्न पुरस्कार का नाम “ मेजर ध्यान चंद खेल रत्न पुरस्कार होगा | हालांकि मोदी गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं | पर शुक्रवार की घटना से साबित हुआ कि मोदी का प्रिय खेल क्रिकेट नहीं हॉकी है | हॉकी एसोसिएशन वह रूतबा कभी हासिल नहीं कर पाई , जो धन बल पर क्रिकेट एसोसिएशन ने हासिल किया | अपने अपने प्रदेश की क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष बनने के लिए मुख्यमंत्रियों का मोह अपन तीन दशकों से देख रहे हैं | लालू यादव भी बिहार प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं | नेताओं का यह मोह असल में शरद पवार ने पैदा किया था | जो बीसीसीआई के अध्यक्ष और फिर आईसीए के अध्यक्ष पद पर पहुंचे | खैर अपन बात क्रिकेट की नहीं हॉकी की कर रहे हैं |

हॉकी के जादूगर कहलाने वाले मेजर ध्यान सिंह का देहांत हुए भी 42 साल हो गए | मेजर ध्यान चंद की बदौलत भारत ने 1928 से 1936 तक लगातार तीन बार ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीता था | हॉकी स्टिक के साथ उन की कलाकारी को देख कर लोग दंग रह जाते थे | उन की स्टिक से गेंद इस तरह चिपकी रहती थी कि सामने वाली टीम को भरोसा नहीं होता था | एक बार उन की स्टिक को तोड़ कर जांच भी करवाई गई थी | उन की कलाकारी से प्रभावित हिटलर ने उन्हें जर्मनी की तरफ से खेलने का प्रस्ताव दिया था | लेकिन ध्यान चंद ने उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था | खेल रत्न पुरस्कार शुरू से ही ऐसे राष्ट्रभक्त खिलाड़ी के नाम पर होना चाहिए था | पर नरसिंह राव ने 1992 में सोनिया गांधी को खुश करने के लिए पुरस्कार का नाम राजीव गांधी के नाम पर रखा | हालांकि सोनिया गांधी फिर भी खुश नहीं हुई और जब उन का देहांत हुआ तो दिल्ली में दाह संस्कार तक नहीं करने दिया |

खेल प्रेमियों ने मोदी के इस एतिहासिक फैसले का स्वागत किया है | गुस्सा तो बहुत आया होगा , पर कांग्रेस के तीनों दिग्गज कुछ नहीं बोले | कुछ छुटभैये जरुर तिलमिलाए | भाजपा का पाला बदल कर कांग्रेस में जाने वाले मोदी के घोर विरोधी शंकर सिंह वाघेला ने हमला करने का मौक़ा नहीं चूका | उन ने ट्विट कर के कहा-“ नरेंद्र मोदी सरकार ने राजीव गांधी खेल रत्‍न अवार्ड का नामकरण मेजर ध्‍यानचंद खेल रत्‍न अवार्ड कर दिया है | मैं उनसे अनुरोध करना चाहता हूँ कि नरेंद्र मोदी स्‍टेडियम को भी वापस सरदार पटेल स्‍टेडियम कर दें |” हालांकि वह कांग्रेस छोड़ चुके हैं फिर भी उन ने नए नाम का स्वागत नहीं किया | वैसे अहमदाबाद के स्टेडियम का मोदी के नाम पर रखने से पहले उस स्टेडियम का नाम सरदार पटेल के नाम पर नहीं था | अलबत्ता मोटेर स्टेडियम था | पर जिस दलील पर मोदी ने खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदला है | उसी दलील पर स्टेडियमों के नाम भी नेताओं के नाम से हटाए जाने चाहिए | क्रिकेटर इरफान पठान ने पुरस्कार का नाम बदलने का स्वागत किया है, पर साथ ही कहा-“ उम्‍मीद है भविष्‍य में खेल स्‍टेडियमों के नाम भी प्‍लेयर्स पर रखे जाएंगे |” इशारा नेताओं के नाम पर क्रिकेट स्टेडियमों के नाम रखने की ओर ही है | पर अपना सवाल इस छोटी कटाक्ष राजनीति से बड़ा है | मोदी ने जो हॉकी प्रेम दिखाया है तो लगते हाथों हॉकी को “ राष्ट्रीय खेल “ घोषित कर हॉकी का वह साठ–सत्तर के दशक तक का रूतबा भी वापस लौटा देते |

 

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