किसान आन्दोलन के बीच हैदराबाद में झटका

Publsihed: 04.Dec.2020, 21:39

अजय सेतिया / वोटरों की मार से पस्त हुआ देश का विपक्ष किसान आन्दोलन से उम्मींद लगा कर बैठा है | वैसे 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ऐसे कई आन्दोलन खड़े किए गए | सब से पहले तो मोदी सरकार को अल्पसंख्यक विरोधी करार देने के लिए दिल्ली की चर्चों में हुई छोटी मोटी चोरी चकारी की वारदातों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित किया गया | फिर जेएनयू के कम्युनिस्ट छात्रों ने भारत के टुकड़े करने का बीड़ा उठाया , तो समूचा विपक्ष वहां पहुंच गया था | हैदराबाद में ओबीसी छात्र रोहित वैमूला की आत्महत्या को मोदी सरकार की दलित विरोधी नीति बता कर समूचा विपक्ष वहां पहुंच गया था | माब लिंचिंग की एक घटना को अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाने के लिए वामपंथियों ने कांग्रेस सरकारों में मिले अवार्डों को लौटाने का ड्रामा शुरू किया | फिर भीमा कोरेगांव की साजिश हुई, जिस में विपक्ष समर्थक शहरी नक्सलियों ने दलित-गैर दलित हिंसक दंगे करवाने की साजिश रची थी |

लेकिन देश की जनता पर इन साजिशों का कोई असर नहीं हुआ | भाजपा एक एक कर विधानसभाओं का चुनाव जीतती चली गई | मोदी के दुबारा चुन कर आने के बाद मोदी ने तीन तलाक से ले कर 370 और 35 ए हटाने जैसे कई करिश्मे पहले ही दो सत्रों में कर डाले | विपक्ष ने इस दोनों मुद्दों के साथ नागरिकता संशोधन क़ानून और नागरिकता रजिस्टर को ले कर मुसलमानों से हिंसक आन्दोलन तक करवा दिया , लेकिन मोदी और मोदी सरकार टस से मस नहीं हुई | विपक्ष को इन्तजार था एक ऐसे मुद्दे का , जो किसानों से जुड़ा हो , क्योंकि प्रधानमंत्री बनने के छह महीने बाद ही जब मोदी जनवरी 2015 में भूमि अधिग्रहण बिल लाए थे , तो दश भर के किसानॉन ने सडकों पर आ कर मोदी को झुका दिया था | और किसानों के हित के नाम पर मोदी ने तीन कृषि अध्यादेश एक साथ जारी कर के वही गलती दुबारा कर ली , जो उन्होंने 2015 में की थी |

पंजाब के किसानों का आन्दोलन तो सितम्बर से चल रहा था , सरकार वक्त रहते बातचीत शुरू कर के बिलों की खामियां दूर कर देती तो दिल्ली घेरे जाने की नौबत नहीं आती | बातचीत के लिए एक बार बुलाया भी गया तो बातचीत का जिम्मा ब्यूरोक्रेट्स को दे कर राजनीतिक नेतृत्व अपने दफ्तरों में बैठा रहा | किसान अफसरों से क्यों बात करते , उन्होंने वाकआऊट कर दिया | किसानों के दिल्ली पहुंचने और सारे नेशनल हाईवे जाम कर देने के बाद बृहस्पतिवार 3 दिसम्बर को दिल्ली में हुई दूसरे दौर की बातचीत से सरकार झुकती हुई दिख रही है | किसानों ने अपनी आपत्तियां बता दी हैं, और सरकार ने तीनों कानूनों में संशोधन के संकेत दिए हैं | बात बनती देख अवार्ड वापसी गैंग , शाहीन बाग़ की दादियाँ , सिख के भेष में नजीर ,शाहीन बाग़ के रणनीतिकार वामपंथी डफली वाले , हाथरस वाली भाभी और शहरी नक्सली सक्रिय हो गए | मस्जिदों से बिरयानी पहुंचने लगी है और वही शाहीन बाग़ वाले योगेन्द्र यादवों , फर्जी चन्द्र शेखर आजादों , आतिशि मलेनाओं ने किसानों को घेर लिया है | नतीजतन शुक्रवार को किसान नेताओ ने फिर से तीनों कानूनों की वापसी के लिए 5 दिसम्बर को मोदी के पुतले जलाने और 8 दिसम्बर को भारत बंद का एलान कर दिया है |

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस संकट से निकलने के लिए हर वह कदम उठाने को तैयार हो जाएंगे , क्योंकि देश की आम जनता की हमदर्दी किसानों के साथ है , किसानों ने जो भी मुद्दे उठाए है , वे पहली नजर में जायज जान पड़ते हैं | संघ परिवार का किसान संगठन भारतीय किसान संघ भी इन कानूनों का समर्थन नहीं कर रहा , भाजपा का काडर भी सरकार का बचाव करने में असमर्थ है क्योंकि पहली नजर में ही कानून उद्धोगपतियों के हित में दिखाई दे रहे हैं | लेकिन ऐसा नहीं कि क़ानून पूरी तरह किसान विरोधी हैं , कुछ बातें किसानों के हित में भी हैं | मान लो मोदी भूमि अधिगृहण अध्यादेश की तरह तीनों क़ानून रद्द करने पर सहमत भी हो जाएं , तो क्या विपक्ष को कोई फायदा होगा ?  जब इतने आंदोलनों के बावजूद भाजपा विधानसभाओं के चुनाव जीतती रही और पांच साल बाद भी लोकसभा चुनाव में उस की सीटें बढ़ गईं , और अब तक के सब से बड़े किसान आन्दोलन के दौरान भी हैदराबाद म्‍युनिसिपल इलेक्‍शन में भाजपा ने चन्द्र शेखर राव (56 सीटें ) और ओवेसी (43 सीटें ) का गढ़ तोड़ते हुए उन के बराबर 49 सीटें हासिल कर ली और कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया , तो राहुल गांधी और वामपंथी किस उम्मींद में बैठे हैं |

 

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