अजय सेतिया / महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी के लिए भाजपा विधायक दल के नेता देवेन्द्र फडनवीस को बुलाना मजबूरी होगी | भाजपा को 288 के सदन में सब से ज्यादा 105 सीटें मिली हैं | भाजपा विधायक फडनवीस को अपना नेता चुन चुके हैं | कायदे से फडनवीस को उद्धव ठाकरे से समर्थन की चिठ्ठी ले कर सरकार बनाने का दावा पेश करना चाहिए | फडनवीस ने न तो अभी उद्धव ठाकरे से मुलाक़ात कर के समर्थन की चिठ्ठी माँगी है , न सरकार बनाने का दावा पेश किया है |
अपन को 1996 याद आता है | 1996 में जब लोकसभा में किसी को बहुमत नहीं मिला था , तब राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने भाजपा संसदीय दल के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को खुद बुला कर सरकार बनाने का न्योता दिया था , क्योंकि भाजपा सब से बड़ा दल था | हालांकि राष्ट्रपति ने परम्परा का निर्वहन किया था , लेकिन सभी विपक्षी दलों ने डा. शंकर दयाल शर्मा की आलोचना की थी | वामपंथी दलों ने जंतर मंतर से राष्ट्रपति भवन तक प्रदर्शन किया था , जिस में कई अन्य विपक्षी दल भी शामिल हुए थे | खैर वाजपेयी ने सदन का सामना किया और मार्मिक भाषण दे कर इस्तीफा देने का एलान कर दिया था | वाजपेयी का यह मार्मिक भाषण आज भी यूट्यूब पर लोकप्रिय है | अनेक लोगों का कहना है कि 1998 के मध्यवधि चुनाव में भाजपा को सत्ता के नजदीक पहुँचाने में वाजपेयी के उस भाषण की अहम भूमिका थी |
भाजपा और शिवसेना ने महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव मिल कर लडा है | भाजपा 150 सीटें लड़ कर 105 जीती है , पिछली बार वह सारी सीटें लड़ कर 122 जीती थी | शिवसेना ने शायद इस बार भाजपा का रथ रोकने के इरादे से चुनाव गठबंधन किया था , आखिर 150 सीटें लड़ कर भाजपा 122 सीटें तो जीत नहीं सकती थी | भले ही खुद शिवसेना की सीटें घट गई , पर उस ने भाजपा की भी17 सीटें घटाने में सफलता पा ली | इस के बाद अब शिवसेना ने अपनी शर्तों पर समर्थन की बात कर भाजपा की नींद हराम कर दी है | चुनाव पूर्व गठबंधन के सिद्धांत की कोई अहमियत नहीं रही , अब भाजपा पछता रही होगी कि इस से अच्छा तो वह अकेले लड कर अपने विकल्प खुले रखती | अगर ऐसा होता तो भाजपा घमंड में आ कर चुनावों के दौरान शरद पवार पर हाथ डालने की गलती भी नहीं करती और आज पवार के समर्थन का विकल्प खुला होता |
खैर 1996 की तरह सब से बड़े दल के नाते भाजपा विधायक दल के नेता देवेन्द्र फडनवीस को बुलाना राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी की मजबूरी होगी | अब यह भाजपा नेता फडनवीस पर निर्भर करता है कि वह शिवसेना के सामने घुटने टेकती है या वाजपेयी की तरह सदन में भाषण दे कर राज्यपाल को इस्तीफा देने का एलान करते हैं | अपन को भाजपाईयों के इस दावे में कोई दम नहीं लगता कि कांग्रेस , एनसीपी और शिवसेना के सांसद उन के सम्पर्क में हैं | सभी विधायक इन चुनावों में दलबदलुओं का हश्र देख चुके हैं | भाजपा के लिए अब कोई विधायक राजनीतिक आत्महत्या नहीं करेगा |
हाँ राज्यपाल के लिए मुश्किल की घड़ी तब आएगी , अगर शिवसेना और एनसीपी गठबंधन कर के 110 का आंकडा पेश कर दें , क्योंकि तब इस गठबंधन के पास भाजपा से 5 विधायक ज्यादा होंगे | मुकाबले के लिए भाजपा 25 निर्दलीय विधायकों की चिठ्ठिया नत्थी कर के अपना नम्बर बढा कर दिखा सकती है | तब राज्यपाल के लिए सब से बड़े दल के सिद्धांत को लागू करने का बेहतर विकल्प रहेगा और वह फडनवीस को बुलाएंगे | लेकिन अगर शिवसेना और एनसीपी का गठबंधन बन गया और कांग्रेस ने भी उन्हें समर्थन की चिठ्ठी दे दी , तो कर्नाटक वाली स्थिति पैदा हो जाएगी , जब कांग्रेस और जनता दल सेक्यूलर ने चुनाव बाद का गठबंधन कर के राज्यपाल को न्योता देने के लिए मजबूर कर दिया था | तब भगत सिंह कोशियारी मजबूर होंगे | फिर भी उन्होंने फडनवीस को शपथ दिला दी तो विवाद में फंस जाएंगे |
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