यह गांधी-गोडसे नहीं , गांधी-सुभाष है

Publsihed: 04.Feb.2020, 22:46

अजय सेतिया / आज़ादी के बाद से एक तरफ़ा इतिहास पढाया जाता रहा | हालांकि शुरू में जनमत के दबाव में स्कूली पाठ्यक्रम की किताबो में सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह ,राज गुरु, सुखदेव , चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे लोकप्रिय क्रान्तिकारियों का गांधी के बराबर ही जिक्र होता था | इतिहास की पाठ्य पुस्तकों में  गैंदा लाल दीक्षित , राम प्रशाद बिस्मिल , रास बिहारी बोस , शचीन्द्र नाथ सन्याल , सन्यासी विद्रोह , सन्याल विद्रोह , कूका विद्रोह का विस्तार से उल्लेख होता था | 1857 के रणनीतिकार तात्या टोपे और मंगल पाण्डेय सहित 84 क्रांतिकारियों का भी जिक्र होता था | यहाँ तक कि वीर सावरकर भी पाठ्य पुस्तकों में शामिल थे , लेकिन धीरे धीरे क्रांतिकारियों की भूमिका को पाठ्य पुस्तकों से निकाल दिया गया |

इंदिरा गांधी की सोवियत संघ से दोस्ती के बाद इतिहास लिखने का काम वामपंथी इतिहासकारों को दे दिया गया | वामपंथी इतिहासकारों को मान्यता देने और उन के लिखे इतिहास को पढाने और प्रचारित करने के मूक आदेश दे दिए गए | जेएनयू की स्थापना की गई ताकि वामपंथी अपनी मनमर्जी से लिखे इतिहास को ही सच बताने की मशीन के तौर पर इस्तेमाल किया जा सके | आज़ादी की लड़ाई में सुभाष चन्द्र बोस और वीर सावरकर की भूमिका गांधी के बाराबर या ज्यादा थी , लेकिन इन दोनों को बदनाम करने की रणनीति अपनाई गई | सुभाष चन्द्र बोस को तोजो का कुत्ता तक कहा गया और वीर सावरकर की चिठ्ठियों को आधार बना कर उन्हें माफी मांगने वाला बता कर अपमानित किया गया | जब कि सच यह है कि उन्होंने जेल में पड़े रहने की बजाए जेल से बाहर निकल कर कुछ करने की रणनीति बनाई थी , फिर भी अंग्रेज नहीं माने थे ,क्योंकि वे सावरकार का दिमाग जानते थे |

वीर सावरकर दस साल तक सेलुलर जेल मे रहने के बावजूद कांतिकारियों में पापुलर थे , इस लिए 1920 में सरदार वल्लभ भाई पटेल और बाल गंगाधर तिलक के कहने पर ब्रिटिश कानून ना तोड़ने और विद्रोह ना करने की शर्त पर उन्हें सेलुलर जेल से महाराष्ट्र की जेल में ट्रांसफर किया गया था | अंग्रजों को इस के बावजूद सावरकर पर विशवास नहीं था , अगर उन्हें सावरकर पर विशवास होता तो वे 1920 में उन्हें रिहा कर देते | सावरकर जानते थे कि सालों जेल में रहने से बेहतर भूमिगत रह करके उन्हें काम करने का जितना मौका मिले, उतना अच्छा है | उनकी सोच थी कि अगर वह जेल के बाहर रहेंगे तो वह जो करना चाहेंगे, कर सकेंगे जोकि अंडमान निकोबार की जेल से संभव नहीं था |

वामपंथी साजिश कामयाब रही , पाठ्य पुस्तकों और इतिहास की किताबों में उन सभी क्रांतिकारियों की जगह गांधी और नेहरु ने ले ली | और बच्चों को सिखाया जाने लगा कि बिना खड्ग और भाल दिला कर आज़ादी , बापू तूने कर दिया कमाल | सारे क्रांतिकारियों का बलिदान मिट्टी में मिला दिया गया | आभार जताना चाहिए इंटरनेट क्रान्ति का , जिस ने क्रांतिकारियों की भूमिका को फिर से भारत के युवाओं से परिचय करवाया | युवाओं के दिमाग के दरवाजे खुल रहे हैं  | मोदी सरकार की ओर से सुभाष चन्द्र बोस से जुड़े दस्तावेजों को डी-क्लासीफाईड करने के बाद आज़ादी के आन्दोलन में क्रांतिकारियों की भूमिका को लेकर भारतीय युवायों की जिज्ञासा बढ़ रही है | इसी लिए मांग हो रही है कि आज़ादी के इतिहास को उस के सही परिपेक्ष में दुबारा लिखा जाना चाहिए , जिस में गांधी के साथ क्रांतिकारियों की भूमिका भी बताई जाए | जेएनयू में वामपंथियों को चुनौती कोई वैसे ही नहीं मिल रही , इस के पीछे इंटरनेट में उपलब्ध आज़ादी के आन्दोलन की सही तस्वीर सामने आना भी है |

कांग्रेस ने इतिहास के साथ किस तरह का खिलवाड़ करवाया , इस का उदाहरण आज़ादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों की भूमिका को छुपाना ही नहीं है , अलबता वामपंथी इतिहासकारों से  राम जन्म भूमि के इतिहास के साथ भी खिलवाड़ करवाया गया | इलाहाबाद हाईकोर्ट अगर खुदाई न करवाती तो वामपंथी इतिहासकारों का इतिहास ही सच आना जाता कि कोई मंदिर तोड़ कर मस्जिद नहीं बनाई गई थी | अब बारी इस भ्रम को तोड़ने की है कि गांधी तूने कर दिया कमाल , आज़ादी दिला दी , बिना खड्ग और भाल | अनंत हेगड़े जैसे कुछ लोग जब समय बेसमय कांतिकारियों की भूमिका को याद दिलाने की कोशिश करते हैं तो नेहरूवादी उन पर झपट पड़ते हैं | उन्हें रावण की औलाद कहा जाने लगता है | लेकिन एक दिन ऐसा जरुर आएगा , जब रामजन्मभूमि की तरह यह भ्रम भी टूट जाएगा कि आज़ादी की लड़ाई सिर्फ कांग्रेस ने लडी थी और सिर्फ गांधी का कमाल था | यह तथ्य भी सामने आएगा कि अंग्रेज गांधी और नेहरु के प्रति इतने नर्म क्यों थे |

जीडी  बख्शी की किताब- “बोस: एन इंडियन समुराई” इस धुंध को मिटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है | जिस में लिखा है कि आज़ादी के दस्तावेजों पर दस्तखत करने वाले ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने 1956 में बंगाल के गवर्नर पी.बी.चक्रवर्ती को बताया था कि भारत को आज़ादी दिलाने में सुभाष चन्द्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी की प्रमुख भूमिका थी |

 

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