समर्थन मूल्य को जरूरी मूल्य करिए

Publsihed: 03.Dec.2020, 21:05

अजय सेतिया / अपन ने पहले भी लिखा था कि लोकतंत्र में सरकारों को क़ानून बनाते समय उन लोगों के साथ मिल कर ड्राफ्ट बनाना चाहिए , जिन के हित में क़ानून बनाए जाते हैं | कृषि को ले कर जिन लोगों ने नीति आयोग में बैठ कर कानूनों के ड्राफ्ट तैयार किए थे , उन का किसान या किसानी से कोई वास्ता नहीं था | कानूनों में इतनी खामियां इस लिए रह गई , क्योंकि नीति आयोग में बैठे ब्यूरोक्रेट्स ने उद्धोगपतियों के हित में क़ानून बनाए | ब्यूरोक्रेट्स ने इन्ही उद्धोगपतियों के हितों को सामने रख कर कानूनों के ड्राफ्ट तैयार किए , जो उन के बच्चों की विदेशों में पढाई और उन की विदेश यात्राओं को प्रायोजित करते हैं |  

मोदी सरकार अगर ब्यूरोक्रेट्स के बनाए ड्राफ्टों को अपनी पार्टी के किसान मोर्चे और आरएसएस के किसान संघ को भेज कर उन से सलाह ले लेती तो इतनी बड़ी मुसीबत में नहीं फंसती , जितनी मुसीबत में फंस गई है | बुधवार को सात घंटे की बातचीत में जब किसानों ने हर क़ानून की खामियां और कानूनों को खरीददार उद्धोगपतियों के पक्ष में होने के सबूत दिए तो कृषि मंत्री और वाणिज्य मंत्री की आँखें फटी की फटी रह गई | बातचीत के बाद कृषिमंत्री रक्षात्मक मुद्रा में थे , हालांकि उन के हाथ में कुछ नहीं है , वह तो राजनाथ सिंह , अमित शाह और नरेंद्र मोदी को रिपोर्ट देंगे , फिर उन से दिशानिर्देश ले कर शनिवार की बातचीत को आगे बढ़ाएंगे ,  एक एक दिन छोड़ कर किसानों से वार्ता इसी लिए हो रही है |

कृषि मंत्री ने मोटे तौर पर मीडिया के सामने मान लिया है किसानों की कई शिकायतें गौर करने लायक हैं | जैसे कांट्रेक्ट फार्मिंग में विवाद के निपटारे का अधिकार एसडीएम और डीएम को दिया जाना | किसान अच्छी तरह जानते हैं कि एसडीएम किस के पक्ष में फैसला करेंगे | किसानों को तो बेचारों को यह भी नहीं पता कि एसडीएम और डीएम को दिवाली होली आदि त्योहारों पर मोटे मोटे गिफ्ट देने होते हैं | इस लिए उन की यह आपत्ति जायज है कि सरकारी अधिकारी क्यों , अदालत क्यों नहीं | मोदी सरकार में ही जब मेनका गांधी ने जुवेनाईल जस्टिस एक्ट में जिला बाल कल्याण समितियों के फैसलों पर आपति सुनने और समीक्षा करने का अधिकार डीएम यानी जिलाधिकारी को दिया था , तब भी अपन ने इस प्रावधान पर आपत्ति जताई थी | अटल बिहारी वाजपेयी बच्चों के सम्बन्ध में अंतिम निर्णय का अधिकार सामाजिक कार्यकर्ताओं को दे गए थे , अंग्रेजों के जमाने से जिलों पर तानाशाहों की तरह शाषण कर रहे जिलाधिकारी खार खाए बैठे थे , जैसे ही उन्हें मनमाना क़ानून बनवाने का मौक़ा मिला उन्होंने देश भर के सामाजिक संगठनों के विरोध को दरकिनार कर केंद्र की ब्यूरोक्रेसी से अपनी मर्जी का क़ानून बनवा लिया |

किसानों की आशंका यह भी है कि कांट्रेक्ट फार्मिंग करवाने वाले उद्धोगपति उन की जमीने हडप लेंगे , हालांकि कांट्रेक्ट जमीन का नहीं फसल का होगा , फिर भी गांरटी देने वाला संशोधन करना होगा | सवाल यह भी पैदा होता है कि अगर एक पूरे गाँव के किसानों से कांट्रेक फार्मिंग का कांट्रेक्ट साइन हो जाता है और उद्धोगपति सारे गाँव या अगल बगल के गावों में भी एक ही फसल उगवा देता है तो किसानों को अपने घर की जरूरतों के लिए भी उस आलू को बीस रुपए किलो खरीदना पड़ेगा , जिसे दूसरे इलाके में उसी उद्धोगपति ने एक रुपए किलो खरीदा होगा , यानी दोनों तरफ से फायदा उद्धोगपतियों का ही | इसी तरह भंडारण की खुली छूट भी व्यापारियों और उद्धोगपतियों के पक्ष में है, हमेशा आढती का कर्जदार रहने वाला किसान क्या तो भंडारण करेगा और क्या उस के पास भंडारण की क्षमता |

सरकार को अब यह भी समझ आ गया है कि एपीएमसी एक्ट भी किसानों के हित में नहीं अलबत्ता बड़े व्यापारियों और उद्धोगपतियों के पक्ष में है | एमएसपी तो पहले ही सिर्फ कागजों में रहती है क्योंकि सरकारी एजेंसियां सीएफ 6-7 प्रतिशत गेंहूं और धान ही खरीदती है , बाकी तो किसानों को मार्केट में औने पौने भाव में ही बेचना पड़ता है | मंडियों को मजबूत करने की बजाए इस क़ानून से मंडी व्यवस्था ही तहस नहश हो जाएगी , किसानों की यह आशंका भी तो जायज ही है सरकार पहले मंडियों को तबाह करेगी , फिर एमएसपी खत्म कर देगी | अब सरकार के पास कोई चारा ही नहीं बचा कि वह मंडियों को मजबूत करने और एमएसपी को क़ानून में शामिल करने के लिए क़ानून में संशोधन करे , ताकि एमएसपी समर्थन मूल्य नहीं बल्कि अनिवार्य मूल्य बन सके | पर सवाल यह है कि किसान मौजूदा तीनों कानूनों में संशोधन से संतुष्ट होंगे क्या , फिलहाल तो नहीं लगता , आखिर आप ने किसान विरोधी कानूनों की लाईन लगा कर उन का विशवास ही खत्म कर दिया है | अगर आप किसान के हितैषी हैं तो  पराली जलाने पर किसान का खून चूसना वाला ऑर्डिनेंस क्यों जारी किया , भले ही सुप्रीमकोर्ट ने कहा था और किसान विरोधी विद्युत एक्ट को भी संशोधित करना ही पड़ेगा |

 

आपकी प्रतिक्रिया