सवाल यह है कि गांधी कितने संतुष्ट थे 

Publsihed: 03.Oct.2019, 01:02

अजय सेतिया / गांधी का डेढ़ सौवां जन्मदिन धूम धाम से मनाया गया | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात से हैं , सो उन्होंने गांधी को वैसे ही अपना लिया है , जैसे कांग्रेस ने अपनाया हुआ था | हालांकि कांग्रेस अब किसी दृष्टिकोण से गांधी के आदर्शों पर चलती नहीं दिखती | इंदिरा गांधी के जमाने तक गांधी जयंती पर कांग्रेस के नेता दलित बस्तियों में झाडू ले कर निकलते थे | अब गांधी के नाम पर मोदी के लोग झाडू ले कर चलते हैं | कई बार लुटियन दिल्ली की चमचमाती सडकों पर भी झाडू मारने के फोटो खिंचवाए जाते हैं | पर सवाल यह है कि क्या साफ़-सफाई, झाडू-शौचालय ही गांधीवाद है | और उस से भी बड़ा सवाल यह है कि क्या अपने आख़िरी दिनों में गांधी खुद अपने गांधीवाद से संतुष्ट थे | हम इस का विश्लेष्ण कभी क्यों नहीं करते | 
कुछ सवालों का जवाब खुद गांधी भी अधूरे छोड़ गए | जैसे पहला सवाल तो यह उठता है कि गांधी ने जब खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया तो उन के दिमाग में कैसा भारत बनाने की कल्पना थी, खासकर तब वह सेक्यूलरिज्म के बारे में क्या सोचते थे | खिलाफत आन्दोलन का उन के जीवन पर क्या असर पड़ा , क्या वह मानते थे कि खिलाफत आन्दोलन का समर्थन उन के सत्य के सिद्धांत पर खरा उतरता था | क्या बाद में वह इस नतीजे पर पहुंचे थे कि उन का “सत्य” का साथ देने और सह-अस्तित्व का सिद्धांत फेल हो गया था | क्या वह इस नतीजे पर पहुंचे थे कि खिलाफत आन्दोलन मुस्लिम समुदाय में अलगाववाद भडकाने का हथियार था | अगर यही गांधी का गांधीवाद था , तो क्या खिलाफत आन्दोलन के बाद से वह खुद को विफल मानने लगे थे , इसी लिए उन्होंने भारत के विभाजन को चुप्पी साध कर कबूल कर लिया था |  
क्या गांधी एक राजनीतिज्ञ के तौर पर संतुष्ट थे , आज की पीढी के ज्यादातर लोगों का मानना है कि गांधी एक राजनीतिज्ञ के तौर पर विफल थे | खिलाफत आन्दोलन का समर्थन उन की राजनीतिक अदूरदर्शिता का एक मात्र उदाहरण नहीं है , देश का बंटवारा उन के जीवन की सब से बड़ी राजनीतिक विफलता थी | आज की पीढी का मानना है कि वह अव्यवहारिक बातें करते थे , इस लिए आख़िरी दिनों में उन के चेलों नेहरु और पटेल ने उन्हें बिलकुल वैसे ही अकेले छोड़ दिया था , जैसे लाल कृष्ण आडवानी के चेलों ने उन्हें छोड़ा है | गांधी को महान समाज सुधारक माना जाता है , क्या वह समाज सुधारक के नाते संतुष्ट थे ? यंग इंडिया में गांधी ने लिखा था –“ मैं ऐसे भारत के लिए काम करूंगा , जिस में गरीब यह सोचेगा कि यह उस का देश है , जिस के निर्माण में उस की सक्रिय भूमिका होगी , ऐसे भारत में छूआछूत की कोई गुंजाईश नहीं होगी .... महिलाओं को भी पुरुषों के बराबर अधिकार होंगे | मेरे सपनों का भारत ऐसा होगा | “  उन्होंने हरिजन उद्धार , ग्रामोन्मुखी विकास , महिला सशक्तिकरण , स्वच्छता जैसे अभियान चलाए | ये सभी काम आज 70 साल बाद भी जस के तस हैं | मोदी स्वच्छता अभियान चला रहे हैं , घर घर शौचालय बनवा रहे हैं | अनुसूचित जाति के लोगों को आज भी अछूत माना जाता है , कांग्रेस के बड़े बड़े नेताओं के घरों में उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार होता है | 
गांधी के कंधों का सहारा लेती रही कांग्रेस सरकारों ने गाँवों का कैसा विकास किया है , उस का उदाहरण यह है कि बड़े बड़े किसान आत्महत्या कर रहे हैं , छोटे किसान शहरों में मजदूर बन कर रह गए हैं | महिलाओं को आज भी बराबरी का हक नहीं मिला , यहाँ तक कि राजनीति में 33 प्रतिशत भी नहीं मिला | यानी कुल मिला कर गांधी को सामाजिक सुधार पर भी संतोषजनक सफलता नहीं मिली |
गांधी महान विचारक , वक्ता , उपदेशक थे , लेकिन सवाल यह है कि जब हम लोकतांत्रिक परम्पराओं की बात करते हैं तो क्या गांधी एक लोकतांत्रिक नेता के तौर पर अपनी छाप छोड़ कर जा सके | कम से कम दो उदाहरण ऐसे मिलते हैं , जिन से पता चलता है कि उन्होंने लोकतंत्र और सत्य का सामना करने से परहेज किया | पहला चुने गए कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चन्द्र बोस की जगह पट्टाभि सीता रमैया को अध्यक्ष बनवाना और दूसरा प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस की ओर से चुने गए सरदार पटेल की जगह नेहरु को प्रधानमंत्री बनवाना |  
 

आपकी प्रतिक्रिया