लोकतंत्र में किसी की दादागिरी क्यों चले

Publsihed: 03.Apr.2020, 16:21

अजय सेतिया / आखिरकार मोदी सरकार ने 960 विदेशी तबलिगियों का वीजा रद्द कर के उन्हें ब्लैक लिस्ट भी कर दिया है | ये सभी टूरिस्ट वीजा पर भारत आए थे और टूरिज्म के नाम पर पहले निजामुद्दीन में ट्रेनिंग और बाद में इस्लाम के प्रचार में निकल पड़े थे | ये तबलीगी देश की छोटी छोटी जगहों की छोटी छोटी मस्जिदों से मिल रहे हैं | पिछले सत्तर साल से टूरिस्ट वीजा का दुरूपयोग हो रहा था , हर साल कोई दस हजार तबलीगी टूरिस्ट वीजा पर भारत आ रहे हैं | वे पहले निजामुद्दीन के तबलीगी सेंटर में रहते हैं फिर देश के किसी कोने में इस्लाम का प्रचार करने के लिए भेज दिए जाते हैं | एक नहीं कई कानूनों का उलंघन हो रहा था , भारत में विदेशियों की ओर से धर्म प्रचार पर भी प्रतिबंध है, वे उस का भी उलंघन कर रहे थे | अब तो उन्होंने सरकार के लाकआउट आदेश का भी उलंघन किया और भारत के महामारी एक्ट 1897 का भी उलंघन किया |

सवाल यह पैदा होता है कि हर साल हजारों की तादाद में मुस्लिमों को टूरिस्ट वीजा क्यों मिल रहा था ,  कोई एजेंसी उन पर निगाह क्यों नहीं रख रही थी कि वे टूरिस्ट वीजा के नाम पर तबलीगी जमात के मुख्यालय में और फिर देश की ऐसी छोटी छोटी जगहों पर चले जाते थे जहां पर्यटन का दूर दूर तक कुछ लेना देना नहीं है | यहाँ यह बताना भी जरूरी है कि तबलीगी इस्लाम में सूफीज्म के घोर विरोधी हैं , इस लिए इन के निजामुद्दीन दरगाह या अजमेर शरीफ जाने का भी सवाल नहीं | वैसे भी वे धार्मिक यात्रा के वीजा पर नहीं आते थे , जैसे पाकिस्तान के हिन्दू हरिद्वार, मथुरा , काशी , चार धाम , सोमनाथ या तिरुपति यात्रा का वीजा ले कर आते हैं, सिख दरबार साहिब, पटना साहिब ,सरहिंद की यात्रा का वीजा ले कर आते हैं  | या पकिस्तान के मुस्लिम अजमेर शरीफ का वीजा ले कर आते हैं |

यानी दुनिया भर के मुसलमान भारत से धोखा कर रहे थे और तबलीगी जमात इस धोखे में भागीदार थी | सवाल उन के भागीदार होने का नहीं है , सवाल यह है कि भारत के विदेश और गृह मंत्रालय क्यों आँख मुंदे  हुए थे, खासकर तब जब पहले 9/11 और बाद में गोधरा में ट्रेन के डिब्बे जलाए जाने की घटनाओं में तबलीगी जमात का जिक्र आ चुका था | विकीलिक्स के मुताबिक़ 9/11 की जांच में तो यहाँ तक खुलासा हो चुका था कि पकड़े गए दोषी भारत के निजामुद्दीन स्थित तबलीगी जमात की इमारत में ठहरे थे | क्या अमेरिका ने यह बात भारत से साझा नहीं की होगी | कांग्रेस राज में तो चलो अधिकारी मजबूर रहे होंगे क्योंकि कांग्रेस का रवैया तो हमेशा मुस्लिम कट्टरपंथ के सामने घुटने टेकने का रहा है , लेकिन वाजपेयी के छह सालों और मोदी के छह सालों में इन दोनों मंत्रालयों के अधिकारी क्यों देश को धोखा दे रहे थे |

देश की जनता ने कांग्रेस को उस की तुष्टिकरण नीति के कारण ही सत्ता से बाहर किया है , क्या देश की ब्यूरोक्रेसी लोकतंत्र में जनादेश का इतना मतलब भी नहीं समझती | शाहीन बाग़ के धरने के समय देश देख चुका है कि ब्यूरोक्रेसी इस एक समुदाय के सामने कितनी लाचार बन कर खडी रहती है | सुप्रीमकोर्ट की डांट के बावजूद पुलिस शाहीन बाग़ खाली नहीं करवा पाया था | अब जिस तरह तबलीगी जमात के अनेक विदेशी देश भर की मस्जिदों में पाए जा रहे हैं , तो आशंका यह भी पैदा होती है कि नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ जो देश भर में विरोध शुरू हुआ था , उस के पीछे भी तबीलीगी जमात का ही हाथ तो नहीं था |

शाहीन बाग़ के बाद निजामुद्दीन की घटना इस का दूसरा सबूत है , यह खबर भारत की क़ानून व्यवस्था के मुहं पर तमाचा है कि पुलिस कई दिन तक तबलीगी जमात के मुल्लाओं को बिल्डिंग खाली करने का आग्रह करती रही | दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सतेन्द्र जैन ने 31 मार्च को मीडिया के सामने कहा कि तबलीगी जमात के अधिकारियों ने डाक्टरों और पुलिस को अंदर नहीं जाने दिया , और यह बयान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार अजीत डोवल के तबलीगी बिल्डिंग में मोल्लाना साद से मुलाक़ात के 32 घंटे बाद का है | खबर तो यहाँ तक आई है , जिस का खंडन नहीं हुआ है कि मोल्लाना साद ने पुलिस को साथ ले कर पहुंचे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार से सीधे मुहं बात नहीं की और यहाँ तक कहा कि उन की इजाजत के बिना पुलिस अंदर कैसे आ गई, जबकि वह बिल्डिंग कोई धर्म स्थल नहीं है | अगर भारत को जेहाद का मुख्य केंन्द्र बनाने रोकना है तो अब समय आ गया है कि इस दादागिरी को यहीं पर रोका जाए | कोई भी लोकतांत्रिक देश किसी की दादागिरी से नहीं चल सकता |  

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