दंगों पर बहस के लिए संसद में दंगा  

Publsihed: 03.Mar.2020, 16:25

अजय सेतिया / पांच साल की वाह-वाही के बाद नरेंद्र मोदी पहली बार गम्भीर मुश्किलों का सामना कर रहे हैं | जैसे ही वह भाजपा के कोर मुद्दों पर आए हैं 2002 से 2014 वाली नफरत की राजनीति फिर शूरू हो गई है | महाराष्ट्र और झारखंड में सत्ता से बाहर होने और हरियाणा में जोड़-तोड़ की सरकार बनने से मोदी पर शुरू हुआ राहु काल दिल्ली के दंगों तक आ पहुंचा है | दिल्ली के दंगों ने मुर्दा विपक्ष में इतनी जान फूंक दी है कि भारी बहुमत के बावजूद मोदी सरकार संसद नहीं चला पा रही | पहले लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा के सभापति शोर शराबे के बीच बिल पास करवा लिया करते थे ,लेकिन इस बार वह भी सम्भव होता नहीं दिख रहा |

सोमवार को कांग्रेस के सांसद काला बैनर ले कर सत्ता पक्ष के बेंचों पर पहुंच गए तो स्पीकर ओम बिडला ने क्षुब्ध हो कर सदन की कार्यवाही यह कहते हुए स्थगित की कि वह तब तक कार्यवाही नहीं चलाएंगे , जब तक नेता डेकोरम बनाए रखने पर सहमत नहीं होते | डेकोरम बनाए रखने की सहमति के लिए उन्होंने मंगलवार को सभी दलों के नेताओं की मीटिंग भी बुलाई , मीटिंग में एक दूसरे पक्ष के बेंचों की तरफ न जाने की सहमति भी हुई ,  लेकिन जब सदन शुरू हुआ तो लोकसभा स्पीकर उस समय फिर लाचार हो गए जब सस्पेंड कर देने की चेतावनी के बावजूद विपक्ष के सांसदों ने वित्तमंत्री से कागज छीन लिए |

वित्तमंत्री सीतारमन उस समय बैंकों के डूबने पर छोटे और मझौले खाताधारों के लिए कम से कम पांच लाख रूपए सुनिश्चित करने वाला बिल पास करवा रही थीं | यह लोकहित का मामला था , लोकसभा चुनावों के दौरान पंजाब एंव महाराष्ट्र बैंक डूबने से मुम्बई के सैंकड़ों परिवारों का पैसा डूब गया था | विपक्ष के नेताओं के सत्ताधारी पक्ष के बेंचों के सामने आने से हाथापाई भी हो जाती , अगर लोकसभा स्पीकर भाजपा सांसदों को आगे आने से रोकने के लिए अपना पूरा जोर न लगा देते | उन्होंने भाजपा सांसदों को तो आगे आने से रोक लिया ,लेकिन विपक्ष के सांसदों को छीना झपटी कर के बिल फाड़ने से नहीं रोक पाए |

विपक्ष चाहता है कि स्पाक्र सारा काम छोड़ कर पहले दिल्ली के दंगों पर बहस करवाएं , जबकि स्पीकर ने होली के बाद 11 मार्च तय की है | नागरिकता संशोधन क़ानून को मुस्लिम विरोधी बता कर कुछ राजनीतिक दलों ने ऐसा झूठ फैलाया कि नफरत की आग दिल्ली के दंगों के रूप में हमारे सामने है | जनसंख्या रजिस्टर और नागरिकता रजिस्टर का खौफ पैदा कर के मुसलमानों को भडकाया गया कि उन सब की नागरिकता छीन जाएगी | यह खोफ पैदा करने वालों में कांग्रेस भी शामिल है , जिस ने खुद 2004 में संशोधन कर के जनसंख्या रजिस्टर और नागरिकता रजिस्टर को क़ानून में जोड़ा था | अगर विपक्ष लोकसभा का प्रश्नकाल चलने देता तो मंगलवार को अमित शाह इन्हीं मुद्दों पर जवाब देने वाले थे |

झूठ पर आधारित प्रचार और खौफ के सामने मोदी की प्रचार क्षमता फेल हो गई | मोदी अब तक सब से बड़े कम्यूनिकेटर के तौर पर प्रसिद्धि पा चुके थे | लेकिन उन के विरोधी उन पर इस कद्र हावी हो गए कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद तक ने नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ भारत की सुप्रीमकोर्ट में याचिका दायर कर दी है | संयुक्त राष्ट्र की यह वही संस्था है कि जिस का भारत के वामपंथियों और उन से जुड़े एनजीओ ने 2002 से 2014 तक मोदी के खिलाफ इस्तेमाल कर के दुनिया भर में उन्हें बदनाम किया था | इसी वामपंथी जमात ने 370 की समाप्ति को भी अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश की थी |

नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ झूठी अफवाहें फैलाने में सोशल मीडिया के ट्विटर, फेसबुक और इन्स्ताग्राम ने अहम भूमिका निभाई है | दिल्ली के दंगों में भी इसी सोशल मीडिया की अहम भूमिका थी | सोशल मीडिया के दुरूपयोग को रोकने के लिए ही 370 हटाते समय जम्मू कश्मीर में सोशल मीडिया बंद किया गया था |  2 मार्च रात 8.52 पर जब नरेंद्र मोदी ने ट्विट जारी कर के कहा कि वह रविवार तक सभी सोशल मीडिया से हटने का मन बना रहे हैं तो देश भर में खलबली मच गई | लाखों लोगों ने उन का अनुसरण करने का ट्विट भी जारी किया | राहुल गांधी ने लिखा सोशल मीडिया नहीं , नफरत छोडिए | लेकिन मंगलवार को खबर आई कि मोदी रविवार 8 मार्च को महिला दिवस पर अपने सोशल मीडिया को प्रेरणादाई महिलाओं के सुपर्द कर देंगे | तो यह सिर्फ रविवार था , न कि रविवार से |

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