रेडिकल इस्लाम का खतरा बढ़ेगा

Publsihed: 02.Mar.2020, 20:59

अजय सेतिया / भारत की सेक्यूलर जमात इस शब्द से बिदक जाती है , लेकिन सारी दुनिया में यह शब्द आने वाले खतरे के रूप में देखा-समझा जा रहा है | यह शब्द है रेडिकल इस्लाम यानी कट्टर इस्लाम | भारत की तरह दुनिया इस वास्तविकता से मुहं नहीं चुरा रही | इस लिए अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प बेझिझक इस्लामिक आतंकवाद के खतरों का जिक्र करते हैं | पूरी दुनिया रेडिकल इस्लाम से दहशत के साये में जी रही है | कभी उन की संख्या मुठ्ठी भर हुआ करती थी , लेकिन आज उन की संख्या करोड़ों में पहुंच गई है |

भारत के एक मुस्लिम नेता वारिस पठान ने तो सभी भारतीय मुसलमानों के बारे में दावे से कह दिया है कि वे सब रेडिकल इस्लाम में विशवास रखते हैं | क्योंकि उन्होंने कहा है कि 15 करोड़ मुसलमान 100 करोड़ हिन्दुओं पर भारी पड़ेंगे | भारत के सभी भाजपा विरोधी सेक्यूलर दल भाजपा को रेडिकल हिंदूवादी पार्टी मानते हैं तो भी उन्हें रेडिकल इस्लाम के खतरों से तो मुहं नहीं चुराना चाहिए | वे वास्तविक सेक्युलर दल तो तभी बन सकते हैं , जब दोनों तरह के कट्टरवाद का खुल कर विरोध करें , लेकिन जब मुस्लिम आतंकवाद या हिन्दुओं के खिलाफ नफरत के सबूत या कोई घटना सामने आती है तो वे आँखे और कान बंद कर लेते हैं , साथ ही अपनी जुबान पर भी ताला लगा लेते हैं | इस तरह वे रेडिकल इस्लाम का समर्थन कर रहे होते हैं |

भारत के सेक्यूलर दलों ने अपने वोट के स्वार्थ में रेडिकल इस्लाम के आगे घटने टेक लिए हैं | किसी बड़े सेक्यूलर नेता ने वारिस पठान के बयान का विरोध नहीं किया | विरोध सिर्फ हिंदूवादी दलों और संगठनों ने किया | क्या सेक्यूलर हिन्दुओं को यह बात भी समझ नहीं आई कि सौ करोड़ हिन्दुओं में वे भी आते हैं | और यह सब को समझ लेना चाहिए कि रेडिकल इस्लाम हिन्दुओं को सेक्यूलर , उदारवादी या कट्टरवादी में विभाजित नहीं करता , उन की नजर में जो मुसलमान नहीं है , वह काफिर है | सेक्यूलर नाम से कोई अलग जमात उन की नजर में नहीं है , यही रेडिकल इस्लाम है |

सत्ता के मोह में सिर्फ भारत के नेता ही सच्चाई से मुहं नहीं चुरा रहे , कल तक इस्लामिक आतंकवाद को खत्म करने का बीड़ा उठा रहे डोनाल्ड ट्रम्प को ही देख लो | जो चार दिन पहले अमेरिका में बसे हिन्दुओं के वोट पाने के लिए भारत में तीन मंचों पर इस्लामिक आतंकवाद की बात कह कर भारत को दंगों की आग में झोंक गया , वही अमेरिकियों के वोट पाने के लिए तालिबान के सामने घुटने टेक रहा है | दुनिया को बड़ा भरोसा था कि अमेरिका रेडिकल इस्लाम के खिलाफ लड़ाई में उस की अगवाई करेगा | लेकिन ट्रम्प ने तालिबान के सामने घुटने टेक कर साबित कर दिया कि भारत के सेक्यूलर दलों के नेताओं और उस में कोई फर्क नही है |

ट्रम्प ने पिछले चुनाव में कहा था कि अमरीका ने दुनिया को सुधारने का ठेका नहीं ले रखा , इस लिए वह अफगानिस्तान से अपनी फोजें हटा लेगा | पिछले 18 महीनों से तालिबान अमरीका शांति वार्ता चल रही थी | इस वार्ता में रेडिकल इस्लाम की ओर तेजी से बढ़ रहे और पूर्व की तालिबान सरकार को मान्यता देने वाले पाकिस्तान की तो अहम भूमिका थी , लेकिन निर्वाचित अफगानिस्तान सरकार को किनारे कर दिया गया था | एक तरह से अमेरिका ने उसी तालिबान को सत्ता सौपने का फैसला कर लिया है , जिस के खिलाफ युद्ध का बिगुल बजा कर उस की फौजें अफगानिस्तान में घुसी थीं |

पता नहीं अमेरिका-तालिबान समझौते पर भारत के सेक्यूलर दलों की क्या प्रतिक्रिया है , लेकिन भाजपा और मोदी सरकार को तो चिंता करनी चाहिए क्योंकि अफगानिस्तान की लड़ाई से मुक्ति पा कर तालिबान का रेडिकल इस्लाम भारत के रेडिकल मुसलमानों की लड़ाई में शामिल होगा | यह खतरा पहले भी था जब पाकिस्तान ने तालिबान सरकार को मान्यता दी थी , और अब तो और ज्यादा होगा क्योंकि यह तालिबान की जीत है | ऐसा माना जाता है कि भारत की मोदी सरकार रेडिकल इस्लाम के बढ़ते खतरे से वाकिफ है , इस के बावजूद वह तालिबान–अमेरिका समझौता वार्ता की गवाह बनने गई |

 

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