कहीं राजनीतिक संकट न बन जाए

Publsihed: 01.Dec.2020, 21:10

अजय सेतिया / अपन ने मंगलवार को लिखा था –“ कहीं शाहीन बाग़ न बन जाए बुराड़ी “ सुबह सुबह एक टीवी पत्रकार का मेसेज आया कि मीडिया के कुछ लोग तो कह रहे हैं कि शाहीन बाग़ बन चुका है , क्योंकि पंजाब के किसान छह महीनों का राशन तो साथ लाए है और शाहीन बाग़ वालों ने सोमवार से ब्रियानी बांटना शुरू कर दिया है | तभी शाम होते होते खबर आ गई कि शाहीन बाग में धरना देने वाली बिलकिस दादी भी धरना देने पहुंच गई हैं | हालांकि पुलिस ने दादी को सिंधू बॉर्डर पर हिरासत में ले लिया | दादी ने कहा कि हम किसानों की बेटियां हैं, हम किसानों के विरोध का समर्थन करेंगे | शाहीन बाग धरने की आयोजक कनीज फातिमा दोपहर को ही सिंघु बॉर्डर में किसानों को संबोधित कर गई थी | जेएनयू के भारत तोड़ो गैंग की नेता शेहला रशीद भी आती ही होंगी , जिस पर उन्हीं के पिता अब्दुल रशेद ने आरोप लगाया है कि वह विदेशी हाथों में खेल रही हैं |  

किसानों की तैयारिया समझने में सरकार से बड़ी भूल हुई है | या तो सरकार को पल पल की खबर देने के लिए बनी आईबी पूरी तरह फेल हो गई, या फिर सरकार ने आईबी की सूचना को गम्भीरता से नहीं लिया | वरना जब पंजाब के किसान संगठनों ने 14 नवम्बर को अमरेन्द्र सिंह से बातचीत के दौरान उन्हें बता दिया था कि वे 26 नवम्बर को दिल्ली कूच करेंगे तो केंद्र सरकार क्यों सोई रही | सरकार ने 3 दिसम्बर की बजाए 25 नवम्बर को ही उन्हें बातचीत के लिए क्यों नहीं बुला लिया | गलतफहमी तो इतनी कि जब किसान हरियाणा के सारे बेरियर तोड़ते हुए दिल्ली पहुंच गए , तब भी सरकार पहले से तय 3 दिसम्बर को बातचीत करने पर अड़ी रही | जब खालिस्तान समर्थक नारों के वीडियो और खालिस्तान आन्दोलन का केंद्र बने कनाडा के प्रधानमन्त्री जस्टिन त्रुडी का पंजाब के किसानों के समर्थन में बयान आ गया , तब सरकार के हाथ पाँव फूले | अमित शाह ने चार दिन बाद 30 नवम्बर को अगले ही दिन बातचीत का एलान किया |

पंजाब के किसानों से अलग बात हुई और यूपी,उतराखंड, हरियाणा, राजस्थान , दिल्ली के किसानों से अलग बात हुई | बातचीत का कोई नतीजा निकलने की उम्मींद न तो किसानों को थी , न सरकार को | अगर नतीजे निकलने की कोई उम्मींद होती तो राजनाथ सिंह और अमित शाह भी बातचीत में शामिल होते , नरेंद्र सिंह तोमर और पीयूष गोयल तो सिर्फ किसानों से हुई बातचीत इन दोनों को बताएंगे | सरकार थोड़ा झुकी है , तीनों बिलों पर विचार करने के लिए एक कमेटी बनाने को तैयार हुई , सरकार ने प्रस्ताव रखा कि किसान अपने में से चार पांच प्रतिनिधी चुन ले , जो सरकार के प्रतिनिधियों और कृषि विशेषज्ञों के साथ बैठ कर बात करें , लेकिन किसानों ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया | किसान दो टूक चाहते है कि सरकार तीनों क़ानून वापस ले और एमएसपी को कानूनीजामा पहनाए |

बातचीत बेनतीजा रहनी थी और बेनतीजा रही | हालांकि नरेंद्र सिंह तोमर और ऑल इंडिया किसान फेडरेशन के अध्यक्ष प्रेम सिंह दोनों ने ही बाद में कहा कि आज की बैठक अच्छी रही | प्रेम सिंह ने यह भी कहा कि सरकार अपने स्टैंड से थोड़ा पीछे हटी है ,  हम इन क़ानूनों को रद्द करा के जाएंगे | अगले दौर की बैठक अब 3 दिसम्बर को होगी , यानी आज बुधवार का दिन बैकडोर बातचीत और दोनों तरफ से आपसी विचार विमर्श का रहेगा | किसान कमेटी कमेटी खेलने को तैयार नहीं , ब्यूरोक्रेसी से तो बात करने को बिलकुल ही तैयार नहीं | पिछली बैठक से किसानों ने इस लिए वाकआउट कर दिया था क्योंकि बैठक में सिर्फ अधिकारी बात करने आए थे | मोदी सरकार शायद अभी भी नहीं समझ रही कि ब्यूरोक्रेसी उस की सब से बड़ी मुसीबत है | लोकतांत्रिक तरीके से होने वाली बातचीत से ब्यूरोक्रेसी को दूर रखा जाना चाहिए , उन्हें सिर्फ सरकारी फैसलों पर अमल की जिम्मेदारी देनी चाहिए |

मोदी सरकार ने नहीं समझा था कि कृषि क़ानून उस के लिए इतनी बड़ी मुसीबत ले कर आएँगे | एपीएमए संशोधन को कारपोरेट घरानों के पक्ष में , मंडियां खत्म करने और और धीरे धीरे एमएसपी बंद करने वाला माना जा रहा है | इस आशंका को दूर करने के लिए अब सरकार को एमएसपी की गारंटी देनी होगी , और वह 5 एकड़ जमीन के मालिकों को गारंटी दे कर इस संकट से निकल सकती है , वरना यह राजनीतिक संकट भी बनेगा | अकाली दल के बाद हरियाणा के उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की पार्टी जननायक जनता पार्टी के अध्यक्ष और उनके पिता अजय चौटाला ने चेतावनी वाले लहजे में कहा है कि एमएसपी को क़ानून में शामिल किया जाना चाहिए | खट्टर सरकार को समर्थन देने वाले निर्दलीय विधायक सोमवीर सांगवान ने गठबंधन तोड़ लिया है | राजस्थान में भाजपा के सहयोगी आरएलपी के सांसद हनुमान बेनीवाल ने भी तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग करते हुए राजग से अलग होने और दिल्ली कूच करने की चेतावनी दे दी है |

 

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