फडणविस को पच नहीं रही राजनीतक हार

Publsihed: 02.Dec.2019, 13:35

अजय सेतिया / क्या महाराष्ट्र विधानसभा का सचिवालय उद्धव ठाकरे को सहयोग नहीं कर रहा | वरना विशवास मत के समय नियमों की इतनी गलतियाँ नहीं होती | वैसे भाजपा के पास वाक आऊट के सिवा कोई विकल्प ही नहीं था ,क्योंकि सत्ता उन के दरवाजे से वापस चली गई है | वाक आऊट से पहले देवेन्द्र फडणविस ने उन नियमों का हवाला दिया , जिन की अवहेलना की गई है | बाहर निकल कर उन्होंने मीडिया के सामने वे सब गलतियाँ गिनाईं , फिर वे राज भवन में शिकायत करने भी गए | हालांकि इस शिकायत का कोई फायदा नहीं होना , क्योंकि एक गलती तो खुद राज्यपाल से भी हुई है | राज्यपाल से गलती यह हुई कि उन्होंने नए मुख्यमंत्री की सिफारिश पर प्रोतेम स्पीकर ही बदल दिया , जब कि संसदीय इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था | राज्यपाल प्रोटेम स्पीकर बदलने से इनकार कर सकते थे | अमूमन प्रोटेम स्पीकर में राजनीतिक दल की भूमिका नहीं होती | विधानसभा सचिवालय वरीयता के हिसाब से तीन चार वरिष्ठ विधायकों की सूची राज्यपाल को सौंपता है , जिन में से प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करने का अधिकार राज्यपाल का होता है |

बाकी चार गलतियाँ सचिवालय की ओर से उद्धव ठाकरे को उचित सलाह नहीं दिए जाने के कारण हुई है | जैसे शपथ लेने वालों को सचिवालय की ओर से गाईड किया जाता है कि शपथ ग्रहण कैसे होता है , नियमानुसार शपथ राज्यपाल की ओर से कहे गए “ मैं ” शब्द दोहराए जाने से शुरू होती है | जब राज्यपाल ने मैं बोल दिया हो , तो उस के बाद शपथ लेने वाला राज्यपाल को ही फालो करता है , लेकिन राज्यपाल की ओर से “मैं” का उच्चारण कर देने के बाद उद्धव ठाकरे ने छत्रपति शिवाजी महाराज को वंदन करने के बाद राज्यपाल को फालो किया | कांग्रेस के मंत्रियों ने सोनिया गांधी की वंदना करने से और राष्ट्रवादी कांग्रेस के मंत्रियों ने शरद पवार की वन्दना से शपथ ग्रहण की , जो संवैधानिक विधान का उलंघन था | इसी तरह सुप्रीमकोर्ट ने देवेन्द्र फडणविस को 27 नवम्बर को चार बजे तक विशवास मत लेने के निर्देश दिए थे , जब देवेन्द्र फडणविस ने 26 नवम्बर शाम को ही इस्तीफा दे दिया तो सुप्रीमकोर्ट के फैसले का कोई मतलब ही नही रह गया था | 27 और 28 नवम्बर को नवनिर्वाचित विधायकों का शपथ ग्रहण हुआ और 28 नवम्बर शाम को उद्धव ठाकरे मंत्रिमडल सदस्यों की शपथ से नई सरकार का गठन हुआ | अत 30 नवम्बर को जन गन मन से नए सत्र की शुरआत होनी चाहिए थी , जो नहीं हुई |

सुप्रीमकोर्ट का आदेश अर्थहीन हो चुका था इस लिए नई सरकार को विधानसभा की परम्पराओं का निर्वहन करना चाहिए था | पहले स्पीकर का चुनाव होता , फिर विशवास मत लिया जाता , हालांकि यह किसी नियम का उलंघन नही है कि विश्वासमत पहले लिया जाए , लेकिन पता नहीं क्यों नए प्रोटेम स्पीकर सुप्रीमकोर्ट का जजमेंट पढ़ कर उस का पालन करवा रहे थे , जबकि यह जजमेंट देवेन्द्र फडणविस सरकार के लिए था , जो स्वत: ही गिर चुकी थी | लेकिन सुप्रीमकोर्ट के डर से परम्पराओं का पालन न करना हास्यस्पद और अनाडीपन लगा , अगर सचिवालय सही समय पर सही सलाह देता तो इन गलतियों से बचा जा सकता था | पर इन गलतियों को सामने रख कर फडणविस का राजनीतिक ड्रामा भी समझ से परे है , उन्हें विनम्र हो कर अपनी राजनीतिक हार स्वीकार करनी चाहिए | सत्ता की भूख में राजनीतिक अनाड़ीपन तो उन्होंने किया , जब बिना बहुमत के ही अजित पवार के साथ मिल कर जुगाड़ से मुख्यमंत्री बन बैठे थे | क्या वह सब नियमों के अनुसार था जो अब राज्यपाल के सामने नियमों की दुहाई देने गए | नियमों की दुहाई का मतलब तो राजभवन भी अच्छी तरह जानता है |

अगर बहुमत न हो तो बिना लेनदेन के सरकारें नहीं बना करती | इस बात को भाजपा नहीं समझी , लेकिन शिवसेना बेहतर समझती है , इसलिए उस ने मुख्यमंत्री पद के बदले वित्त,राजस्व,होम,स्पीकर सब कुछ कुर्बान करना मंजूर कर लिया | राजनीति करना कोई शरद पवार से सीखे , उन्होंने अपने भतीजे के उपमुख्यमंत्री बनने को भी राजनीतिक तौर पर बाखूबी भुनाया | एक तरफ भाजपा से केंद्र में कृषि मंत्रालय और देवेन्द्र फडणविस की जगह पर मराठा मुख्यमंत्री की शर्त रखी जा रही थी , तो दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे के सामने मंत्रालयों की शर्तें रखी जा रही थी | सारे मोटे मोटे मंत्रालय गवां कर भले ही उद्धव ठाकरे खाली हाथ होंगे, पर सवाल तो मुख्यमंत्री पद का था , जो उन्होंने फडणविस से हथिया लिया | मोदी-शाह का देवेन्द्र फडणविस मोह भी समझ से प्रे है और महाराष्ट्र में सत्ता के बदले कृषि मंत्रालय का त्याग भी बहुत छोटा होता | अब सरकार बनवाने गए भूपेन्द्र यादव की भी तो फजीहत हो रही है |

 

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