अजय सेतिया / दिल्ली की हिंसा थम गई है या तूफ़ान से पहले की शान्ति है | जिस तरह के वीडियो सामने आए हैं , उस से स्पष्ट है कि दंगों की तैयारी अगर बहुत लम्बे समय से नहीं , तो कम से कम 15 दिसम्बर से तो जरुर की जा रही थी | चौदह दिसम्बर को सोनिया गांधी ने रामलीला मैदान में नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ मुसलमानों को सडकों पर आने का आह्वान किया था | अगले दिन ही जामिया मिल्लिया के छात्र सडकों पर आ गए थे और जगह जगह पर हिंसा हुई थी | वह हिंसा का पहला दौर थी , और दूसरा दौर पूरी तैयारी के साथ 23 फरवरी को शुरू हुआ | जब 22 फरवरी की रात को भारी तादाद में मुस्लिम औरतें अचानक जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के पास जमा हो गई और शाहीन बाग़ के बाद जाफराबाद की सडक पर भी कब्जा कर लिया गया |
आम आदमी पार्टी के पूर्व विधायक और अभी भाजपा के मुखर वक्ता बन कर उभरे कपिल मिश्रा ने जाफराबाद पहुंच कर पुलिस को अल्टीमेटम दिया कि वह तीन दिन के अंदर जाफराबाद की सडक को खाली करवाए , नहीं तो लोग पुलिस की भी नहीं सुनेंगे | कहा जा रहा है कि कपिल मिश्रा के इस बयान के कारण हिंसा भडक गई | कितना हास्यस्पद है | कपिल मिश्रा ने अल्टीमेटम पुलिस को दिया था और एक नागरिक के नाते यह जनता का हक है कि वह पुलिस को क़ानून का पालन करवाने के लिए आग्रह करे | 26 फरवरी को ही सुप्रीमकोर्ट ने सोलिस्टर जनरल से कहा है कि उस ने पुलिस को अपना काम करने से नहीं रोका है | कोर्ट ने यहाँ तक कहा था कि इंग्लेंड की पुलिस को देखो वह कैसे काम करती है | यह एक तरह से दिल्ली पुलिस को फटकार है | वही बात , जो कपिल मिश्रा ने 23 फरवरी को कही थी |
दंगों की तैयारियों के जिस तरह के सबूत सामने आए हैं , उस से दावे के साथ कहा जा सकता है दंगे अचानक कपिल मिश्रा के बयान की प्रतिक्रिया में नहीं हुए | पूरी तैयारी के बावजूद दंगों में मरने वालों में मुसलमानों की तादाद ज्यादा है , यह इस लिए हुआ क्योंकि हिन्दुओं के सब्र का प्याला भर चुका है और वे पहली बार मुकाबला करने के लिए सडकों पर उतरे | मरने वालों में उन की संख्या काफी है , जो गोली लगने से मरे हैं | जब एक मुस्लिम युवक शाहरुख ने पुलिस के सामने पिस्तौल तान ली थी , तो स्पष्ट था कि दंगों में हथियारों का इस्तेमाल करने की भी तैयारी है | तो जवाबी कार्रवाई भी पिस्तौलों से हुई | हथियारों के साथ साथ अपनी ऊंची इमारतों की दीवारों पर लोहे का एंगल लगा कर दूर तक मार करने वाली गुलेलें बना रखीं थी | इन गुलेलों का इस्तेमाल फलस्तीन में इस्राईल पर हमले करने के लिए किया जाता है | पाकिस्तानियों ने भी पंजाब से लगती भारतीय सीमा में अपने तस्करों को नशीले पदार्थ भेजने के लिए गुलेलों का इस्तेमाल किया था | इस से अंदाज लगा सकते हैं कि दंगों की तयारियों के तार कहाँ से जुड़े थे |
15 दिसम्बर को जब जामिया मिल्लिया की छात्रा लादीदा ने खुल कर कहा था कि भारत सरकार और सुप्रीमकोर्ट उन के हितों की सुरक्षा नहीं कर रही इस लिए मुस्लिम सडकों पर उतरे हैं तो स्पष्ट था कि नागरिकता संशोधन क़ानून सिर्फ बहाना है | तैयारी मोदी सरकार की इस बेदाग़ छवि को धोने की थी कि साढ़े पांच साल से न कोई आतंकवादी वारदात हुई , न दंगे हुए और वह बेदाग़ छवि धुल गई | लेकिन इस की कुछ जिम्मेदारी तो दिल्ली पुलिस, गुप्तचर विभाग , आईबी और इस सब के बॉस ग्रहमंत्री अमित शाह की भी बनती है कि उन का सारा अमला निष्क्रिय क्यों बैठा था | 23 फरवरी को शाहीन बाग़ का धरना लगे 70 दिन हो चुके थे , दिल्ली पुलिस ने न तो कार्रवाई कर के सडकें खाली करवाई थी , न औरतों को धरने पर बिठा कर मर्दों की और से की जा रही तैयारियों पर निगाह रख रही थी |
शायद शाहीन बाग़ के धरने की दिल्ली विधानसभा चुनावों में दोनों पक्षों को जरूरत थी , इस लिए किसी ने धरना समाप्त करवाने की कोशिश नहीं की | अब उसी रथ पर सवार हो कर बंगाल के चुनावों की डुगडुगी बज गई है | ममता बेनर्जी भी केजरीवाल की तरह नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध कर रही हैं | अमित शाह ने नागरिकता संशोधन क़ानून पास करवाने का एलान भी बंगाल की धरती पर किया था | इस क़ानून का सब से ज्यादा असर भी बंगाल पर पड़ना है , क्योंकि बांग्लादेशी घुसपैठिये सब से ज्यादा बंगाल में ही हैं | जो हिन्दू भी हैं , मुसलमान भी | शरणार्थी भी हैं , घुसपैठिए भी |
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