अजय सेतिया /अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन बड़े कन्फयूजिंग सिग्नल दे रहे हैं | एक तरफ उन्होंने चीन की आक्रामकता को लगाम लगाने के लिए आस्ट्रेलिया के साथ परमाणु पनडुब्बी और टामहाक मिसाइलों का ऐतिहासिक आकस समझौता किया है | जिससे दक्षिण चीन सागर और हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन की दादागीरी पर अंकुश लगेगा | तो दूसरी तरह मंगलवार को उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा कि अमेरिका चीन के साथ "नया शीत युद्ध" नहीं चाहता | चीन के साथ टकराव टालने के संकेत उस समय भी मिले थे जब दो दिन पहले उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से फोन पर बात की थी | उसी संकेत को आगे बढाते हुए जोई बिडेन ने न्यूयॉर्क में विश्व नेताओं से कहा, "अमेरिका किसी भी राष्ट्र के साथ काम करने के लिए तैयार है | हम शांतिपूर्ण समाधान चाहते हैं | भले ही हमारे बीच अन्य क्षेत्रों में तीव्र असहमति हो |” दूसरी तरफ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पता नहीं क्यों चीन की बढ़ती चुनौती से निपटने के लिए जोई बिडेन से उम्मींद लगाए बैठे हैं |
मोदी 23 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र में भाषण के बाद अगले दिन जो बाइडन से मुलाकात करेंगे | उस दिन अमेरिका , भारत, आस्ट्रेलिया और जापान के प्रधानमंत्रियों शिखर वार्ता होगी | जिसे क्वाड कहा जाता है | मोदी सरकार ऐसा मान कर चल रही है कि क्वाड के इतिहास का एक अहम अध्याय होगा | कोरोना महामारी के दौरान क्वाड के सदस्य देशों की यह आमने-सामने की पहली मुलाकात होगी | क्वाड नेताओं की पिछली वर्चुअल बैठक मार्च में हुई थी | भारत इस उम्मींद में है कि क्वाड शिखर वार्ता में बाइडन और मोदी की यह मुलाकात आर्थिक और रक्षा संबंधों के लिहाज से बेहद उपयोगी साबित होगी | जोई बिडेन के चीन को लेकर कन्फयूजिंग सिग्नलों के बावजूद भारत यह उम्मींद लगा कर बैठा है कि क्वाड के नेता चीन के खिलाफ एकजुटता का प्रदर्शन करेंगे | अपन भारत की इस उम्मींद को फिजूल मानते हैं क्योंकि जोई बिडेन ने चीन के सामने हथियार डालने वाली बात की है | जोई बिडेन की रहनुमाई में अमेरिका बहुत डरा हुआ देश दिखाई देने लगा है | अफगानिस्तान में फेल हो कर लौटने से लेकर अब चीन से शीत युद्ध नहीं करने की सीधी और साफ़ बात | जबकि सारी दुनिया चीन के खिलाफ अमेरिका से उम्मींद लगाए बैठा था |
तालिबान से हार मान कर अफगानिस्तान से लौटने वाले बिडेन आतंकवाद के खिलाफ बोलते हुए हकलाने लगे हैं | उन की रहनुमाई में अमेरिका एक कमजोर राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बना रहा है | संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में उन का भाषण आतंकवाद से हार मानने वाला लगा | उन के भाषण को जरा गौर से समझिए | उनने कहा “ हमने अफगानिस्तान में 20 साल से चल रहे संघर्ष को समाप्त कर दिया है | अब हम उन के साथ कूटनीति के दरवाजे खोल रहे हैं | पीड़ा और असाधारण संभावनाओं के इस समय में हमने बहुत कुछ खोया है | हमने लाखों लोगों को खोया है | दुनिया में सब की सुरक्षा, समृद्धि, स्वतंत्रता आपस में जुड़ी हुई है | हमें पहले की तरह एक साथ काम करना चाहिए | हम एक नए शीत युद्ध की शुरुआत नहीं चाहते हैं, जिसमें दुनिया विभाजित हो |” उन्होंने अफगानिस्तान में हार स्वीकार करते हुए हुए यह कहने में हिचकिचाहट महसूस नहीं की कि हम सभी को हमारी विफलताओं का परिणाम भुगतना पड़ा है | ऐसा कहने के बाद जब उन्होंने अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की खोखली बातें की तो हैरानी हुई | अफगानिस्तान से लौटते हुए भी काबुल हवाई अड्डे पर 13 अमेरिकी फ़ौजी खो देने के बावजूद जब बिडेन ने कहा कि अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ अपनी और अपने सहयोगियों की रक्षा करता रहेगा | तो ऐसा लगा कि खुद को ही धोखा दे रहे हैं |
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