बच्चे का फैलाया रायता मां ही तो पोंछेगी

Publsihed: 08.May.2009, 20:36

कांग्रेस में तो मिनिस्ट्रियां बंटने लगी। कपिल सिब्बल ने कहा है- 'साईंस एंड टेक्नोलॉजी तो लूंगा ही। कुछ और भी मिलने की उम्मीद।' अपन को अच्छी तरह याद। सिब्बल पिछली बार लॉ मिनिस्ट्री मांग रहे थे। पर सोनिया ने हंसराज भारद्वाज को दी। भारद्वाज ने रिजल्ट भी दिखाया। खासकर क्वात्रोची के मामले में। सिब्बल इतना बाखूबी नहीं निपटा पाते। सो सिब्बल की निगाह अब लॉ पर नहीं। अलबत्ता आई एंड बी और अर्बन डेवलपमेंट पर। पर मंत्री तो तब बनेंगे। जब सरकार बनेगी। यों अपन को कांग्रेस के दूसरे नंबर पर आने की उम्मीद। बात पहले और दूसरे नंबर की चली। तो बताते चलें। अरुण जेटली और अभिषेक मनु में एक सहमति तो हो गई। दोनों ने राजदीप सरदेसाई के सामने कह दिया- 'राष्ट्रपति को सिंगल लारजेस्ट को ही न्योता देना चाहिए।' यानी दोनों को सबसे बड़ी पार्टी उभरने का भरोसा।

वैसे अपन याद दिला दें। इसी भरोसे में पिछली बार मारी गई थी बीजेपी। अपन नहीं जानते- दोनों ने सबसे बड़े गठबंधन की बात क्यों नहीं कही। शायद दोनों को सहयोगियों पर ज्यादा उम्मीद नहीं। चलो अपन सहयोगियों की बात करें। तो कांग्रेस के पास ममता, पवार, करुणानिधि, शिबू। ममता-पवार बीस-बाईस लाएंगे। करुणानिधि-शिबू दस-बारह। सो कांग्रेस की मजबूरी तो समझ में आई। पर बीजेपी के सहयोगी इतने कमजोर नहीं। माना चौटाला और बादल कमजोर। पर शरद यादव, उध्दव ठाकरे, अजित सिंह, प्रफुल्ल महंत कमजोर नहीं। शरद-नीतिश ज्यादा नहीं। तो बिहार की आधी सीटें हड़पेंगे। यानी बीसेक। उध्दव ठाकरे भी महाराष्ट्र की पच्चीस फीसदी सीटें लेंगे ही। यानी दर्जनभर। आधा-आधा दर्जन के करीब महंत और अजित भी। सो कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी के सहयोगी मजबूत। अरुण ने सबसे बड़े गठबंधन की क्यों नहीं कही। यह अपने पल्ले नहीं पड़ा। सुबह सैर करते जब राजदीप ने अपन को बताया। तो अपन को हैरानी हुई। राहुल गांधी को अपनी बात कहने का पूरा हक। पर एनडीए मरा नहीं। जैसा उनने कहा था। अलबत्ता यूपीए डेथ बैड पर। लालू-मुलायम-पासवान चुनाव पहले के सहयोगी नहीं। पर यूपीए में अभी भी। यूपीए सरकार का हाल देखिए। लालू-पासवान-पवार मंत्री। पर केबिनेट मीटिंग में नहीं आए। लालू-पवार तो मनमोहन की रहनुमाई नकार चुके। सो केबिनेट में आते ही क्यों। यों रघुवंश बाबू लीपापोती करते दिखे। पर लालू-पासवान-पवार से ही पूछिए। मनमोहन की रहनुमाई कबूल नहीं। तो इस्तीफा क्यों नहीं। पर सिब्बल ने कहा- 'तीनों हमारे साथ।' बात सिब्बल के गणित की। तो उनने कुछ यों समझाया- 'कांग्रेस की 180 सीटें आएंगी।' इससे अपन को याद आया। बीजेपी में आ चुके सेफोलोजिस्ट का दावा भी 180 का। यह अलग बात जो इसे आडवाणी भी नहीं मानते। यों बीजेपी का अपना फीडबैक 160 का। लगते हाथों बता दें- दोनों 150 से नीचे ही निपटेंगे। पर बात सिब्बल के दावे की। उनने सरकार बनाने का गणित समझाया। तो माया-जयललिता का जिक्र नहीं किया। वह जिक्र करते। तो अपन मुलायम-करुणानिधि के बारे में पूछते। सो उनने नीतिश का नाम लिया। यों नीतिश सौ बार मना कर चुके। परसों लुधियाना में एनडीए रैली में भी दिखेंगे। पर सिब्बल का दावा- 'जेडीयू रेल और होम मांग रहा है।' अपन नहीं जानते सिब्बल की नीतिश से बात हुई या शरद से। पर कहने वाले कह रहे- कांग्रेस की जयललिता से बात हो चुकी। वैसे सोनिया परसों करुणानिधि के साथ रैली करेंगी। ताकि राहुल का फैलाया रायता पोछा जा सके। आखिर मां का यही काम। बच्चे तो रायता फैलाते ही हैं। जयललिता से बात बनती। तो सोनिया बच्चे का फैलाया रायता पोछने का न सोचती। बच्चों की बात चल निकली। तो दूसरे बच्चे की बात। वरुण गांधी पर एनएसए हट गया। यों तो यह बोर्ड का फैसला। पर देखा आडवाणी के बयान का असर। उनने मुलायम की शर्त पर कहा- 'माया को किसी हालत में बर्खास्त नहीं करेंगे।' अपन को तो माया-जयललिता आडवाणी के करीब आते दिखने लगीं।

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