जमीनी हकीकत से नावाकिफ नहीं राहुल

Publsihed: 06.May.2009, 07:19

अपन ने कल कांग्रेस की रणनीति का खुलासा किया ही था। उसी रणनीति के तहत राहुल मीडिया से रू-ब-रू हुए। दो मकसद भी अपन  ने बताए थे। पहला- राहुल को वरुण से ज्यादा राजनीतिक समझ वाला बताना। दूसरा- प्रियंका-दिग्गी राजा के बयानों से मची खलबली रोकना। आखिर अभी एक तिहाई सीटों में चुनाव बाकी। अभी हथियार क्यों डालें। दोनों मकसद पूरे हुए। राहुल ने अपनी राजनीतिक समझ दिखा दी। अब वरुण अपनी समझ दिखाएं। पर जैसी हैसियत राहुल की कांग्रेस में। वैसी वरुण की बीजेपी में नहीं। राहुल ने बेझिझक माना- 'मेरी हैसियत पारिवारिक बैकग्राउंड के कारण। यह सब जगह है, कहां नहीं। पर मैं इसे खत्म करना चाहता हूं।' पर बात राहुल के उन दो मकसदों की। राहुल का नया रूप दिखाई दिया।

बात सालभर पहले की। राहुल सेंट्रल हाल में अपनी मां के बगलगीर थे। सोनिया डोसा खाने रुक गई थी। करीब आधा घंटे अपन लोगों से बतियाई। राहुल जवाब कम, सवाल ज्यादा करते रहे। जैसे पत्रकारों से सीख रहे हों। पर अब एक साल बाद। सेंट्रल हाल की जगह फाइव स्टार अशोका होटल का हाल। राहुल ने पत्रकारों के छोटे सवालों के बड़े जवाब दिए। मकसद था- अपनी राजनीतिक समझ का अहसास कराना। उनने लेफ्ट और बीजेपी पर अपनी समझ बाखूबी समझाई। जेटली-येचुरी लाख नानुकर करें। पर राहुल की समझ में खोट नहीं। उनने कहा- 'बीजेपी की विकास संबंधी सोच में कमी नहीं। पर कंधमाल, गोधरा, मेंगलूर कांग्रेस-बीजेपी में बुनियादी फर्क।' हां, बीजेपी को गरीबों के प्रति लापरवाह भी कहा। तो लेफ्ट को विकास विरोधी बताया। उनने कहा- 'लेफ्ट की सोच बीस-तीस साल पुरानी।' राहुल राजनीतिक तौर पर मैच्योर दिखाई दिए। कोई सवाल टाला नहीं। अपन को बार-बार राजीव की याद आई। बात चौबीस साल पुरानी। राजीव न्यूयार्क में इसी तरह प्रेस कांफ्रेंस में छा गए थे। यों राजीव की तरह राहुल भी कुछ सवालों पर उलझे। क्वात्रोची का बचाव तो खूब किया। पर स्विस खातों में काले धन पर आडवाणी की बात कबूल कर गए। सीबीआई के दुरुपयोग की बात भी कबूल कर गए। अरुण जेटली इन तीनों बातों पर तो खुश हुए ही। राहुल के मुंह से नीतिश की तारीफ पर भी खुश हुए। यों राहुल का इरादा तारीफ करके नीतिश को पटाने का। ताकि यूपीए सरकार बन सके। अपन ने कल इस मकसद का जिक्र किया ही था। याद दिला दें- प्रियंका ने कहा था- 'सरकार बन भी सकती है, नहीं भी।' दिग्गी राजा ने कहा था- 'सरकार नहीं बनी, तो आसमान नहीं टूट पड़ेगा।' सो राहुल का मकसद था- 'प्रियंका-दिग्गी के बयानों से फैली निराशा को खत्म करना।' यों यह अब कांग्रेस में भी साफ- 'बहुमत की उम्मीद दूर-दूर तक नहीं।' सो पहला सवाल मनमोहन सिंह पर हुआ। मनमोहन पर अड़े तो दिखे। पर राहुल की बॉडी लेंग्वेज बहुत कुछ कह गई। उनने कहा- 'मेरी पर्सनल राय है- मनमोहन ही हों। सोनिया की भी यही राय।' पर जब यही सवाल फिर दोहराया गया। तो राहुल ने ज्यादा मजबूती से कहा- 'मनमोहन, और कोई नहीं।' बहुमत को लेकर जितना दावा किया। उतना बॉडी लेंग्वेज ने डांवाडोल कर दिया। जब बहुमत को लेकर इतने ही कांफिडेंट। तो लेफ्ट को नसीहत क्यों। नीतिश और जयललिता को न्योता क्यों। अब लालू और करुणानिधि क्या रुख अपनाएंगे। अपन को उसी का इंतजार। राहुल ने जैसे नतीजे के बाद सारे विकल्प खुले होने की बात कही। तो कांफिडेंस डांवाडोल साफ झलका। यों उनने दावा तो बीजेपी के विपक्ष में बैठने का किया। पर बिना नीतिश-जयललिता लाचारी भी दिखाई। नीतिश ने तो फौरन टका सा जवाब दे दिया। अरुण जेटली भी नीतिश को लेकर भरोसेमंद दिखे। उनने राहुल को जमीनी हकीकत से दूर बताया। पर अपन ऐसा नहीं मानते। राहुल प्रेस कांफ्रेंस में जैसे लापरवाह दिखाई दिए। जैसे उनने लेफ्ट और पवार पर फब्ती कसी- 'पीएम बनना है, तो 180-190 सीटें लाओ।' उससे अपन को कांग्रेस सरकार बनाने की उम्मीद छोड़ती भी दिखी।

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