ज्यूडिशरी ने लोकतंत्र को कलंकित होने से बचाया

Publsihed: 01.Apr.2009, 07:55

वरुण गांधी अब तीन हफ्ते तो अंदर समझिए। यूपी सरकार का सलाहकार बोर्ड तीन हफते में एनएसए का फैसला करेगा। जब से वरुण सुर्खियों में आए। तब से राहुल गांधी पहले पेज से गायब थे। पहले पेज की तो बात ही छोड़िए। अखबार से ही गायब थे। अब जब वरुण कम से कम तीन हफ्ते अंदर रहेंगे। तो राहुल गांधी ने महाराष्ट्र से अपना प्रचार शुरु किया। शुरुआत में ही उनने बिना नाम लिए अपने चचेरे भाई पर हमला किया। बोले- "समाज बांटने की बात करती है बीजेपी। कांग्रेस ही एक पार्टी जो समाज को जोड़ती है।" अपन ने किसी चैनल पर वरुण का इतना लंबा भाषण कभी नहीं सुना। जितना राहुल गांधी का लाइव सुनने को मिला। जिस भाषण पर विवाद खड़ा किया। वह भी छह मार्च का था। पर सोलह मार्च तक अपन ने किसी चैनल पर नहीं सुना। चैनलों को वह सीडी दस दिन बाद कहां से मिली। वह भी काई चैनल नहीं बता रहा। हां, अपन जानते हैं - चुनाव आयोग को यह सीडी कांग्रेस ने दी।

पर जब तक वरुण ने अदालत में सरेंडर किया। राष्ट्रीय सुरक्षा कानून नहीं लगा था। अपन को हैरानी तो तब हुई। जब मुलायमवादियों ने वरुण पर रासुका की आलोचना की। इसे कहते हैं वोट की राजनीति। वरुण का सारा केस ही वोट की राजनीति। वरुण के भड़काऊ भाषण की जांच होना अभी बाकी। अभी फोरेंसिक जांच नहीं हुई। इसी आधार पर सोमवार को वरुण की जमानत हुई। यह मायावती सरकार को भी पता था। इसीलिए सरेंडर होने के फौरन बाद रासुका लगाया। ताकि मुसलमान मायावती से खुश हो जायें। इसीलिए मुलायम की नाराजगी बढ़ी। मुलायम को डर-हिन्दू वोट बीजेपी की तरफ चले जायेंगे। मुस्लिम वोट मायावती की तरफ। घाटे में रहेंगे तो मुलायम। पर बात मुलायम को लगे ताजा झटके की। यों यह झटका लगना ही था। देर आयद, दुरुस्त आयद। सुप्रीम कोर्ट ने संजय दत्त को चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं दी। यह अच्छा ही हुआ। <--column-->संजय दत्त को जब छह साल की सजा हुई थी। तो अपन ने पहली अगस्त 2007 को यहीं पर लिखा था- "संजय दत्त को सजा से झंडा बुलंद हुआ ज्यूडिशरी का।" अब अगर अदालत संजय दत्त को चुनाव लड़ने की इजाजत देती। तो ज्यूडिशरी का झंडा तो नीचा होता ही। अपने लोकतंत्र का भी बाजा बजता। ताकि सनद रहे सो बताते जाएं। मौजूदा कानून के मुताबिक जिसे दो साल से ज्यादा सजा हो। वह चुनाव नहीं लड़ सकता। संजय दत्त चाहते थे- जब तक हाईकोर्ट में पेंडिंग अर्जी का फैसला न हो। तब तक सजा पर स्टे मिल जाये। पर अदालत ने स्टे नहीं दिया। सोचो, अदालत संजय दत्त को स्टे देती। तो मधुमक्खियों के छत्ते में हाथ न डाल लेती। सब सजा याफता चुनाव लड़ने की इजाजत लेने आ पहुचते। यों अपने अपनी राय कई बार बता चुके। सजा नहीं, अलबत्ता अदालत तीन मामलों में चार्जशीट का संज्ञान ले ले। तो चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराया जाना चाहिए। यों संजय दत्त ने ढाल नवजोत सिंह सिध्दू को बनाया था। जिसे गैर इरादतन हत्या में सजा मिली थी। संजय दत्त और नवजोत के मामलों में जमीन आसमान का फर्क। सो नवजोत को ढाल बनाना ही गलत था। संजय दत्त को सजा 1993 के मुंबई दंगे करवाने वालों का साथ देने में मिली। पर संजय दत्त को अभी भी समझ नहीं आई। वह ताल ठोककर कह रहे है- मैं कानून मानने वाला नागरिक। वह ऐसा होते। तो असलहे से भरा ट्रक अपने घर में नहीं छुपाते। वह कानून मानने वाले नागरिक होते। तो गैर कानूनी एके 47 न रखते। पर बात संजय दत्त को सर्टिफिकेट देने की नहीं। बात ज्यूडिशरी का आभार जताने की। जिसने लोकतंत्र को और कलंकित होने से बचाया।

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