तो वरुण गांधी देश की सुरक्षा के लिए खतरा हो गये। पर अपन को लगता है - वरुण गांधी देश के लिए नहीं मायावती का राजनीतिक खतरा बने। सो मायावती ने वही किया। जो इंमरजेंसी में इंदिरा गांधी ने किया था। इंदिरा गांधी ने भी इंमरजेसी में एनएसए का खूब बेजा इस्तेमाल किया। जब खुद की सत्ता को खतरा लगे । तो देश को खतरा बता दो। मायावती ने वरुण गांधी की दादी याद दिला दी। वरुण गांधी को भी दादी याद दिला दी। अपन को इंमरजेंसी का एक और किस्सा याद आया। तभी देवकान्त बरुआ ने कहा था- "इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा।" अब जब मायावती को राजनीतिक खतरा दिखा। तो उनने खुद पर खतरे को देश पर खतरा बता दिया। जिनकी उम्र 50 साल होगी। उन्हें तो याद होगा- इंदिरा गांधी पर जब राजनीतिक खतरा मंडराया। तो उनने इंमरेजेंसी लगाकर हजारों पर एनएसए लगाया था। मायावती तो इंदिरा गांधी के मुकाबले तिनका भर।
बात वोट बैंक की चली। तो लालकृष्ण आडवाणी ने सोमवार को लोहरदगा में कहा - "वोट बैंक की राजनीति देश की सुरक्षा के लिए ठीक नहीं।" पर जब सत्ता ही लक्ष्य हो। तो क्या ठीक, क्या गलत। राजनीतिबाजो को राष्ट्रीय सुरक्षा की फिक्र होती। तो राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का ऐसा बेजा इस्तेमाल न होता। वरुण पर रासुका लगाकर मायावती ने तो राजनीति की ही। यों यह सिर्फ राजनीति नहीं। बकौल आडवाणी- यह राजनीतिक साजिश। पर सोनिया गांधी की कांग्रेस को भी वरुण से देश की सुरक्षा को खतरा दिखा। यह जानकर अपन को हैरानी हुई। सोनिया के दूत अभिषेक मनु सिंघवी बोले - वरुण के खिलाफ कड़ा कदम उठाया जाना जरुरी था। पर वह तब खिसियाते से भी लगे। जब बोले - लॉ एण्ड आर्डर स्टेट सब्जेक्ट। सीपीएम की वृंदा करात को तो खुश होना ही था। उत्तर प्रदेश के हालात खराब हों या देश के। वामपंथियों को क्या। उनका तो सीधा फार्मूला- विरोधी का महल जलना चाहिए, अपनी भले ही झोपड़ी खाक हो जाये। यों भी वामपंथियों को अपनी गलती का एहसास अरसे बाद होने की आदत। सुभाष चंद्र बोस को तोजो का कुत्ता कहा करते थे। साठ साल बाद गलती का एहसास हुआ। कांग्रेस को समर्थन देकर यूपीए सरकार बनाई। साढ़े चार साल बाद गलती का एहसास हुआ। यूएफ सरकार के समय ज्योति बाबू को पीएम नहीं बनने दिया। इस गलती का एहसास भी तेरह साल बाद हुआ। सिंगूर के गोली कांड की गलती भी अब जाकर मानी। इसे कहते हैं- दिया जब रंज बुतों ने, तो खुदा याद आया। पर अपन बात कर रहे थे इंमरजेंसी की। तो इतवार की रात इंमरजेंसी को हर उस किसी ने याद किया। जिसने वरुण गांधी पर एनएसए लगने की खबर सुनी। लालकृष्ण आडवाणी बोले- मायावती के कदम ने इंमरजेंसी की याद दिला दी। अपन को लगता है - चुनाव का बुखार अब पूरे शबाब पर। पहले दौर के चुनाव से पहले अफजल गुरु का मुद्दा उठ खड़ा हुआ। आडवाणी जब बोले- राष्ट्र की सुरक्षा को नजरंदाज कर वोट बैंक की राजनीति ठीक नहीं। तो उनका इशारा अफजल गुरु की ओर ही था। कोई माने, न माने। वोट बैंक की राजनीति हावी न होती। तो संसद पर हमले का रणनीतिकार अफजल गुरु फांसी पर चढ़ा दिया होता। समझदार को इशारा काफी। आडवाणी बोले- संसद पर हमले की साजिश रचने वाला कोई आनंद सिंह या आनंद मोहन होता। तो यूपीए सरकार फांसी पर चढ़ा चुकी होती। यों अपन को लगता था। शीला दीक्षित लोकसभा चुनाव से पहले अफजल गुरु की माफी की अर्जी ठुकरा देंगी। तो बीजेपी का अफजल एजेंडा पिट जायेगा। पर वोट बैंक की राजनीति में यह पैरों पर कुल्हाड़ी मारने वाला कदम होता। सो पूरे पांच साल से फाइल दबाकर बैठी है शीला दीक्षित। सोनिया को राष्ट्रीय सुरक्षा की फिक्र होती। तो अब तक शीला दीक्षित की रपट आ गई होती। पर बात फिलहाल वरुण गांधी की। बाईस दिन बाद रासुका लगाकर मायावती ने वोट बैंक राजनीति जाहिर कर दी। वरुण के खिलाफ सख्त कदम का मतलब - मुस्लिम वोट सुरक्षित करना। पर जब क्रिया होगी, तो प्रतिक्रिया भी होगी।
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