शुक्रवार को अपना देसी नया साल शुरू हुआ। तो गरमी शबाब पर आ गई। चुनावी तापमान भी उसी तेजी से बढ़ा। कांग्रेसी आडवाणी की ललकार के जवाब में उलझे रहे। मनमोहन ने चौबीस अकबर रोड पर आनंद शर्मा को भेजा। वह बोले- 'भारतीय लोकतंत्र में सीधी बहस का कोई प्रावधान नहीं।' यानी मनमोहन सीधी बहस से बिदक गए। अपन संसदीय लोकतंत्र का संवैधानिक रूप देखें। तो उसमें पीएम प्रोजेक्ट करने का भी जिक्र नहीं। पर आडवाणी के सामने मनमोहन को कर ही दिया ना सोनिया ने। पीएम प्रोजेक्शन से लोकतंत्र का नया चेप्टर शुरू हो चुका। आनंद शर्मा आतंकवाद-सेक्युलरिज्म पर भी खूब बोले। पर जब वह सेक्युलरिज्म का झंडा उठा रहे थे। तभी तस्लीमा नसरीन ने अपने ब्लाग पर पोल खोल दी। लिखा है- 'मनमोहन सरकार ने मुझे कहा है- भारत में रहने का परमिट चाहिए। तो 31 मई तक भारत की तरफ मुंह न करो।' यह मुस्लिम कट्टरपंथियों के दबाव का सबूत।
अपने नरेंद्र मोदी तो गुजरात में सुरक्षा देने को तैयार। पर प्रणव दा ने भारत में आने पर रोक लगा दी। प्रणव दा चुनाव के मौके पर तस्लीमा को आने देते। तो लेफ्टिए प्रणव दा को ही हरा देते। लेफ्टियों का सेक्युलरिज्म भी नंगा हो चुका। बुध्ददेव ने आधी रात को हवाई जहाज पर बिठाकर जयपुर भेज दिया था। कांग्रेस-लेफ्टिए बाकी बांग्लादेशियों की घुसपैठ के पैरवीकार। पर तस्लीमा नसरीन के लिए नहीं। दोनों का सेक्युलरिज्म सिलेक्टिव। अब देखो ना मुरादाबाद की 30 फीसदी आबादी मुस्लिम। तो अजहरुद्दीन को हैदराबाद से उठा लाई। यूपी के मुस्लिम तो कांग्रेस पर भरोसा नहीं करते। जी हां, वही 'मैच फिक्सर' अजहरुद्दीन। जिसे क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने ताजिंदगी क्रिकेट से बाहर किया। अजहरुद्दीन को राजशेखर रेड्डी ने एकदम नकार दिया। सोनिया गांधी से कहा- 'उसे आंध्र प्रदेश में न भेजो। कांग्रेस को लेने के देने पड़ेंगे।' तब जाकर इधर-उधर देखा गया। वरना तो हैदराबाद सीट मांगी थी अजहरुद्दीन ने। बात आंध्र की चली। तो बताते जाएं- आंध्र में एसेंबली चुनाव भी साथ। इस बार फिल्मी हीरो-हीरोइनें भी थोक में उतर आए। टीडीपी के लिए प्रचार करने वाले देखिए। एनटीआर जूनियर, बालाकृष्णन, मुरली मोहन, कविता, रोजा। बात एनटीआर जूनियर की। वह चिरंजीवी से ज्यादा भीड़ खींच रहे। गुरुवार को चंद्रबाबू से खफा हो गए। वजह थी- दोस्त को टिकट न मिलना। बाबू ने बातचीत के लिए हैदराबाद बुलाया था। खुद ड्राईव कर रहे थे। शुक्रवार को सीरियस एक्सीडेंट हो गया। यों डाक्टरों की सलाह- महीनाभर आराम की। पर पट्टियां बांधकर मैदान में उतरेंगे। तो कांग्रेस की नींद हराम होगी। जूनियर एनटीआर के हाव-भाव भी दादा नंदमूरी तारक रामाराव जैसे। रामाराव ने 1981 में कांग्रेस को उखाड़ फेंका था। अबके तो उखाड़ने वाले दो-दो हीरो। चिरंजीवी तो कई महीनों से ताल ठोक ही रहे थे। पर चुनाव आयोग का तरीका देखिए। एनटीआर पहली बार चुनाव में कूदे। तो एक चुनाव निशान दिया। पर चिरंजीवी को इनकार कर दिया। आखिर सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा। बात सुप्रीम कोर्ट की चली। तो बताते जाएं- कोर्ट ने जयप्रकाश नारायण को भी एक निशान दे दिया। जयप्रकाश नारायण आंध्र के आईएएस अफसर। उनने नई पार्टी बनाई है- लोकसत्ता। लोकसत्ता में दलबदलुओं के लिए कोई जगह नहीं। सिर्फ नए और ईमानदार लोगों की नई पार्टी। पढ़े-लिखे लोगों का आकर्षण बने हैं जयप्रकाश नारायण। पर अपन बात कर रहे थे- हीरो-हीरोइनों की। तीनों चिरंजीवी भाई प्रचार में कूद चुके। चिरंजीवी के साथ पवन कल्याण और नागबाबू भी। चिरंजीवी का साला अल्लू अरविंद तो लोकसभा का उम्मीदवार। आपने आमिर खान की गजनी तो देखी होगी। अल्लू अरविंद ने ही बनाई है गजनी। वही हैं गजनी के प्रोडयूसर। चमकते सितारों में कांग्रेस भी कम नहीं। जब राजनेता हार रहे हों। तो क्रिकेटरों-हीरो-हीरोइनों का सहारा। सो कांग्रेस के स्टार प्रचारक हैं- नागार्जुन, टी नागेश्वर, सुब्रह्मण्यम, जीविता और जय सुधा। बता दें- नागेश्वर को दादा साहेब फाल्के मिल चुका।
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