चौथा फ्रंट बनते ही कांग्रेस खिसकी चौथे नंबर पर

Publsihed: 26.Mar.2009, 20:39

इसे कहते हैं सिर मुड़ाते ही ओले पड़ना। मनमोहन की उम्मीदवारी का एलान हुआ। पीएमके भी कांग्रेस को छोड़ गई। तो अपना बीस फरवरी को लिखा सही हो गया। पर बात मनमोहन की। अमेरिका की तरह आमने-सामने का मुकाबला हो गया। तो गुरुवार को आडवाणी ने मनमोहन को लोकसभा चुनाव लड़ने को ललकारा। सिर्फ इतना नहीं, अमेरिका की तरह टीवी पर सीधी बहस को भी ललकारा। चुनाव का रंग जैसे-जैसे चढ़ेगा। कांग्रेस की मुसीबतें और बढ़ेंगी। पर पहले ताजा मुसीबत की बात। कांग्रेस ने पीएमके को रोकने की कम कोशिश नहीं की। अहमद पटेल ने दिन-रात एक किया। पर अंबूमणि रामदौस की भी एक नहीं चली। गुरुवार को पीएमके की काऊंसिल में वोटिंग हुई। तो करुणानिधि-सोनिया से गठबंधन लाईन वाले सिर्फ 117 निकले।

जयललिता से गठबंधन के हिमायती 2453 थे। अब अंबूमणि-आर वेलू मंत्रिमंडल से इस्तीफा देंगे। अंबरीश समेत तीन मंत्री खिसक चुके। चार सहयोगी दल किनारा कर चुके। लालू-पासवान ने गच्चा भी दिया। मंत्री पद भी नहीं छोड़ा। पासवान तो हर गठबंधन में मंत्री रहने के माहिर। वैसे यही हाल पीएमके का भी। पीएमके वाजपेयी सरकार में भी शामिल थी। इसीलिए कपिल सिब्बल लापरवाह दिखे। बोले- 'पीएमके लौट आएगी। लालू-पासवान और मुलायम भी साथ रहेंगे।' पहले बात पीएमके की। तो पीएमके का इतिहास देखने लायक। कुछ-कुछ मायावती जैसा ही। हर चुनाव में गठबंधन बदलने का रिकार्ड। एस रामदौस ने 1989 में बनाई थी पार्टी। दो साल बाद पहले एसेंबली चुनाव में सिर्फ एक सीट जीती। पीएमके की किस्मत तब खुली। जब 1998 में जयललिता से मिलकर चुनाव लड़ा। तब बीजेपी भी साथ थी। चार सीटें जीतकर एनडीए सरकार में शामिल हो गई। जयललिता ने वाजपेयी का साथ छोड़ा। तो पीएमके ने जयललिता का साथ छोड़ दिया था। करुणानिधि ने वाजपेयी का हाथ थामा। तो रामदौस भी साथ थे। वाजपेयी सरकार में फिर मंत्री बन गए। पर 2001 का एसेंबली चुनाव आया। तो रामदौस फिर जयललिता से जा मिले। पर जयललिता ने करुणानिधि को गिरफ्तार किया। तो रामदौस खफा हो गए। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस-पीएमके-डीएमके-एमडीएमके साथ थे। सो तमिलनाडु की सारी 39 सीटें जीत ली। अब आठ साल बाद रामदौस फिर जयललिता के साथ। एमडीएमके और वाइको भी जयललिता के साथ। लेफ्ट पार्टियां भी जयललिता-रामदौस-वाइको के साथ। सो तमिलनाडु में कांग्रेस-डीएमके की हालत विधवा सी। यूपी-बिहार में दोनों यादव कांग्रेस को पहले ही अनाथ कर चुके। बात यूपी की चली। तो बताते जाएं- वरुण गांधी कांग्रेस के गले की हड्डी बन गए। कांग्रेस की शिकायत पर आयोग ने कार्रवाई की। अब शुक्रवार को वरुण ने गिरफ्तारी दी। तो हीरो बन जाएंगे। कांग्रेस ने एक गलती और की। गुरुवार को वरुण की घेराबंदी के लिए तौकीर-रजा खान को उठा लाए। जांच पड़ताल हुई। तो वह वही रजा खान निकला। जिसने पेंगम्बर मोहम्मद का कार्टून बनाने वाले के सिर की कीमत पच्चीस करोड़ रखी थी। कांग्रेस ने तब मुलायम की नाक में दम कर दिया था। बात खुली, तो मीडिया के सामने पेश करने वाले दिग्गी राजा ठगे से रह गए। पर बात हो रही थी लालू-मुलायम की। तो दोनों यादवों ने पासवान को साथ लेकर चौथा फ्रंट बना लिया। तीसरे फ्रंट का नामकरण तो अभी हुआ नहीं। पर लालू-पासवान-मुलायम के फ्रंट का नाम- सेक्युलर गठबंधन। यों नेता ना थर्ड फ्रंट का तय। न सेक्युलर फ्रंट का। नेता के नाम की जंग बाद में होगी। अपने कपिल सिब्बल लाख दावा करें। पर चुनाव बाद सेक्युलर गठबंधन जमकर मोल-भाव करेगा। तीसरे मोर्चे की सरकार बनती दिखी। तो तीसरे मोर्चे से। यूपीए की बनती दिखी। तो यूपीए से। आप मानो न मानो। आज की तारीख में कांग्रेस चौथे नंबर पर। अब सिर्फ शिबू, ममता, पवार और करुणानिधि ही साथ। बकौल अमर सिंह- पवार भी कांग्रेस से दुखी आत्मा। अपने अरुण जेतली ने सही कहा- 'कांग्रेस की हालत चौथे फ्रंट की हो गई।' जेतली को तो शक- 'कांग्रेस की सीटें सौ से कम होंगी।'

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