गुजरात का पहला दौर निपटा। कोई छप्पन फीसदी वोटिंग हुई। पचास फीसदी से कम होती। तो बीजेपी के तम्बू उखड़ते। छप्पन फीसदी से मोदी की बल्ले-बल्ले। पर जितने खुश बीजेपी महासचिव ओम माथुर। उतने ही कांग्रेस महासचिव बी के हरिप्रसाद। दोनों का डेरा गुजरात में। बी के हरिप्रसाद बोले- 'मंगलवार को सौराष्ट्र-कच्छ ने मोदी को नकार दिया।' अपन ने माथुर से पूछा, तो बोले- 'जिन 87 सीटों पर चुनाव हुआ। उनमें 54 बीजेपी के पास थी। ज्यादा नहीं, तो 54 बरकरार रहेंगी।'
स्टार टीवी के एक्जिट पोल ने 54 तो नहीं। पर बीजेपी को 48 दीं। यानी छह का नुकसान। कांग्रेस को सात के फायदे से सैंतीस। अन्य तीन से घटकर दो रह जाएंगे। मंगलवार को कच्छ की छह। सौराष्ट्र की बावन। दक्षिण गुजरात की 29 सीटों पर वोटिंग हुई। खतरा तो सिर्फ केशुभाई-सुरेशभाई के कच्छ-सौराष्ट्र से था। केशुभाई-सुरेशभाई की बात चली। तो अपन 1995 के चुनाव याद करा दें। चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने चिमनभाई पटेल को पटाया। उनने अपनी जनता दल का कांग्रेस में विसर्जन किया। कांग्रेस की काफी टिकटें हड़पी। सो बड़ी तादाद में कांग्रेसी विद्रोही हो गए। बीजेपी की हवा थी। सो टिकार्थियों की भीड़ लग गई। हू-ब-हू वैसे ही। जैसे इस बार हिमाचल में लगी। सो तब बीजेपी के भी बहुतेरे बागी उतरे। पर जीता एक भी नहीं। अलबत्ता कांग्रेस के दर्जनभर बागी जीते। इस बार बगावत बीजेपी में ज्यादा हुई। ताकि सनद रहे सो बता दें। मंगलवार के चुनाव में बीजेपी के नौ एमएलए बागी खड़े हुए। इनमें सात तो कांग्रेस टिकट पर। एक्जिट पोल के मुताबिक कांग्रेस की सिर्फ सात सीटें बढ़ीं। यानी कांग्रेस की अपनी कमाई धेला भी नहीं होगी। माथुर का दावा न सही। स्टार का एक्जिट पोल ही सही हो। तब भी मोदी की पौ बारह। नतीजे का अंदाज लगा होगा। तभी तो केशुभाई वोट डालने नहीं गए। मोदी कच्छ-सौराष्ट्र जीत गए। तो बहुमत से कोई नहीं रोक सकता। स्टार का प्रोजेक्शन- यही टें्रड रहा। तो बीजेपी को मिलेंगी 115 सीटें। कांग्रेस को 64 सीटें। बाकी तीन छुटपुटिए। यों बहुमत के लिए सिर्फ 92 की दरकार। यानी सोनिया-राहुल के रोड शो का जैसा नतीजा यूपी में निकला। वैसा गुजरात का होगा। यूपी के चुनाव में राहुल ने कहा- 'इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए।' अच्छा-खासा बवाल हुआ। विदेश मंत्रालय मुंह छुपाता रहा। अब सोनिया ने कहा- 'गुजरात में सरकार चलाने वाले मौत के सौदागर।' कांग्रेस पहले भी दंगों का ठीकरा मोदी के सिर फोड़ती रही। इशारा अब भी वही था। यानी मोदी के खिलाफ नफरत भड़काकर वोटों की कोशिश। आचार संहिता में यह जुर्म। पर चुनाव आयोग तब तक लंबी तानकर सोया। जब तक मोदी ने पलटवार नहीं किया। आयोग को मजबूरी में नोटिस देना पड़ा। नोटिस देख कांग्रेस के जैसे हाथ-पांव फूले। वह अपन सबने देखे। मंगल को जवाब देकर अभिषेक मनु ने मोबाइल बंद कर लिया। मतलब आप खुद निकाल लो। माफी नहीं मांगी होगी, तो खेद जताया होगा। पर सिंघवी से ज्यादा तो मनमोहन डरे हुए थे। आडवाणी को बीजेपी ने पीएम क्या प्रोजेक्ट किया। कांग्रेस में दहशत फैल गई। शकील अहमद बोले- 'मोदी हार रहे थे। आडवाणी को इसीलिए प्रोजेक्ट किया। यह वोटरों को ब्लैकमेल करने की कोशिश।' अब कोई अनाड़ी भी इसका मतलब निकाले। तो मतलब होगा- 'आडवाणी के प्रोजेक्शन से बीजेपी जीतेगी।' पर मनमोहन उलटा बोले। बोले- 'मोदी से खतरा था। इसलिए बीजेपी ने आडवाणी की ताजपोशी की।' अब इसके दो मतलब निकले। पहला मतलब- 'मोदी जीत रहे हैं। जीतकर मोदी का कद बढ़ा हो जाएगा।' दूसरे मतलब में तो उनने आडवाणी की ताजपोशी ही कर दी।
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