अपन को इसी टकराव की आशंका थी। नवीन चावला अभी तो सीईसी भी नहीं बने। सोचो, चीफ इलेक्शन कमीशनर होंगे। तो ऊंगलियां कैसे नहीं उठेंगी। अपन बात कर रहे हैं आयोग के वरुण गांधी संबंधी फैसले की। आपको याद होगा। अपन ने 19 मार्च को लिखा था- 'संजय गांधी के ही तो करीब थे नवीन चावला। शाह आयोग ने यही तो लिखा था- चावला लेफ्टिनेंट गवर्नर की नहीं। संजय गांधी के इशारों पर चलते थे। अब वरुण का केस नवीन चावला के सामने। लाख टके का सवाल- चावला का रुख क्या होगा।' इतवार को आयोग का फैसला आ गया। आयोग ने बैठकर वही सीडी बार-बार देखी। जिसे अपने वरुण गांधी छेड़छाड़ की हुई बता रहे थे। वही सीडी देखकर आयोग ने फैसला कर लिया। फोरेंसिक जांच भी नहीं करवाई।
आयोग ने सीडी से छेड़छाड़ का आरोप ठुकरा दिया। अपन नहीं जानते- सीडी सही या गलत। आयोग को भी बिना फोरेंसिक जांच कैसे पता चला। आयोग का फरमान भी बड़ा अजीब। बीजेपी से कहा है- वरुण को उम्मीदवार न बनाए। अपने प्रकाश जावड़ेकर ने सही पूछा- 'आयोग ने यह सुझाव किस कानून के तहत दिया।' रिटायर्ड सीईसी कृष्णामूर्ति की बात भी सुन लें। उनने कहा- 'आयोग को सलाह देने का कोई कानूनी हक नहीं। यों भी अभी तो नोटिफिकेशन भी जारी नहीं हुआ। जब तक नोटिफिकेशन न हो। आयोग को वैसे भी वरुण के खिलाफ कार्रवाई का हक नहीं। आखिर कानून की नजर में अभी वरुण उम्मीदवार नहीं।' खैर सोमवार को बीजेपी ने आयोग का सुझाव ठुकरा दिया। बीजेपी सुझाव मंजूर कर लेती। तो अपन को हैरानी होती। सो सोमवार को नवीन चावला घेरे में आ गए। वरुण गांधी ने आयोग को चिट्ठी लिख मारी। अपन वरुण की चिट्ठी बताएं। उससे पहले बता दें- वरुण को भिड़ने की ताकत विरासत में मिली। सो वह आयोग से भिड़ लिए। उनने कहा- 'चुनाव मैदान से नहीं हटूंगा। मेरी असली अपीली अदालत जनता। आयोग की जल्दबाजी राजनीतिक दबाव का सबूत। आयोग आर्टिकल 324 की ताकत के उल्लंघन पर उतारू।' वरुण ने जब राजनीतिक दबाव की बात कही। तो साफ है- वह नवीन की बात कर रहे थे। जरूर वह सोनिया परिवार की भी बात कर रहे होंगे। वरुण का तीर निशाने पर लगा। प्रियंका गांधी चुप नहीं रह सकी। उनने वरुण पर निशाना साधते कहा- 'वरुण गीता की बात करते घूमते हैं। पहले गीता पढ़ तो लें।' अपन नहीं जानते। प्रियंका गीता पढ़ भी सकती हैं या नहीं। पर वरुण में गीता पढ़ने की पूरी क्षमता। उनने पढ़ी न हो, तो पढ़ भी लेंगे। आखिर नेहरू के बाद इस परिवार के पहले ग्रेजुएट वरुण ही निकले। पर बात 'गीता' के उपदेशों की नहीं। बात गांधी-नेहरू परिवार की विरासत की। यह जंग अब शुरू हो चुकी। वरुण पहली ही नजर में प्रियंका-राहुल पर भारी। वरुण ने किसी पर कोई हमला नहीं किया। कोई टिप्पणीं नहीं की। पर उनके तीर निशाने पर लगे। अपन जयंति नटराजन- अभिषेक मनु की टिप्पणियों को गंभीरता से नहीं लेते। कई गवाह मुद्दई से ज्यादा चुस्त होते हैं। अपन ने दिग्गी राजा की नीतिश कुमार को गुहार राजनीति ही समझा। जब वरुण के मुद्दे पर वह बोले- 'नीतिश को तय करना चाहिए। वह कब तक ऐसी संगत में रहेंगे।' यों वरुण पर एनडीए दोफाड़ होने लगा। सोमवार को शरद यादव भी वरुण पर तिलमिलाए। पर अपने कान तब खड़े हुए। जब प्रियंका गांधी बोली। उनने गांधी परिवार की परंपरा का हवाला दिया। तो अपन को लगा- जैसे परिवार की विरासत पर दावा ठोक रही हों। अपन प्रियंका के दावे पर टिप्पणीं नहीं करेंगे। न राहुल की क्षमता का वरुण की क्षमता से मुकाबला करेंगे। विरासत की जंग तो शुरू हो गई। फैसला तो आप सब करेंगे।
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