ताकि सनद रहे, सो याद कराएं। अपन ने बारह सितम्बर को लिखा था- 'आडवाणी ताकतवर होकर मुम्बई से लौटे।' दस दिसम्बर को बीजेपी पार्लियामेंट्री बोर्ड ने एलान किया- 'आडवाणी होंगे पीएम पद के दावेदार।' वैसे यह एलान सितम्बर में ही होता। पर कई आडवाणी विरोधी जल-भुन गए थे। जिसकी झलक अपन ने 25-26 सितम्बर को भोपाल में देखी। जब राजनाथ ने पहले ही दिन अटल की चिट्ठी का पैंतरा चल दिया। जिन्ना प्रकरण से कईयों के मुंह में पानी था।
पर जब बोर्ड ने एलान किया। तो जोशी, जसवंत, राजनाथ ने आडवाणी को लड्डू खिलाए। यों मंगलवार को गुजरात के चुनावों से कोई लिंक नहीं। पर बीजेपी वर्करों के हौंसले तो बुलंद होंगे ही। भोपाल के गुलगपाड़े का फैसले पर न असर होना था, न हुआ। मुम्बई की संघ परिवारी बैठक में सब थे। आडवाणी विरोधी विश्वहिंदू परिषदिए भी। आडवाणी-मोदी के घोर विरोधी तोगड़िया भी। संघ परिवार का फैसला सर्वसम्मति से हुआ। अपन जरा आपको याद दिला दें। अपन ने बारह सितम्बर को क्या लिखा था। अपन ने लिखा था- 'तीन दिन संघ परिवार का आत्ममंथन हुआ। सभी संगठनों के 180 बड़े नेता मौजूद थे। यूपी चुनाव के बाद संघ को गलती का अहसास हुआ। सो जैनियों की तरह तीन दिन क्षमा पर्व चला। जिन आडवाणी को धुतकारा था। उन्हीं से मार्गदर्शन मांगा गया। राजनाथ सिंह ने तो सिर्फ रिपोर्ट दी। पर आडवाणी का बाकायदा भाषण हुआ। मोहन भागवत ने दखल से तोबा का एलान किया। आडवाणी की रहनुमाई पर तारीफ के पुल बांधे।' सात-आठ-नौ सितम्बर को हुई थी मीटिंग। अपना यह कालम ब्रेकिंग न्यूज बना। संघ ने तभी तय किया था- प्रचारक हटाए-घटाए जाएंगे। दखल से तौबा का मतलब यही था। यह कोई भैरोंसिंह शेखावत की सलाह नहीं थी। जैसा अपने तेईस नवम्बर के कालम से गलतफहमी हुई। फैसला तो यूपी से सबक लेकर हुआ। ताकि सनद रहे सो अपन याद दिला दें। दो साल पहले जब जिन्ना मुद्दे पर बवाल हुआ। तो आडवाणी ने चेन्नई में कहा था- 'संघ रोजमर्रा के काम में दखल न दे।' अब उनकी उम्मीदों पर तो घड़ों पानी पड़ा होगा। जो जिन्ना मुद्दे पर संघ की नाराजगी से खुश थे। बीजेपी के पार्लियामेंट्री बोर्ड ने कोई अचानक फैसला नहीं लिया। एलान तो नवम्बर में ही होना था। पर संसद सत्र की वजह से टला। सत्र के आखिर में मध्यावधि चुनाव की आधारशिला भी रखी गई। जब लेफ्ट, यूएनपीए, एनडीए ने इकट्ठा वाकआउट किया। रही-सही कसर आठ दिसम्बर को प्रकाश करात ने पूरी की। जब कहा- 'इसी महीने आईएईए से बात खत्म करो। नहीं तो लोकसभा चुनाव का सामना करो।' करात की धमकी को अड़तालीस घंटे भी नहीं बीते। बीजेपी ने पार्लियामेंट्री बोर्ड की मीटिंग बुला ली। यों आडवाणी 1996 में भी सबसे आगे थे। तब आडवाणी ने ही एलान किया- 'सत्ता आई, तो अटल पीएम होंगे।' पार्लियामेंट्री बोर्ड ने तो बाद में मोहर लगाई। पर तब और अब में बहुत फर्क। जबसे मुम्बई में अटल ने रिटायरमेंट का एलान किया। तब से कईयों के मुंह में पानी दिखा। पर बात भैरोंसिंह शेखावत की। शेखावत की भूमिका क्या होगी? क्या वह राजनीति में लौटेंगे? क्या राजनीति में लौटे, तो बीजेपी में लौटेंगे? या जेपी की तरह रहनुमाई करेंगे? बोर्ड के फैसले से अटल पर एक निगाह तो खत्म हुई। अब अटल दूसरी जिम्मेदारी से कब मुक्त होंगे? सबकी निगाह उसी पर। क्या शेखावत होंगे एनडीए के चेयरमैन? अटल-आडवाणी की जोड़ी ने चार दशक सियासत की। अब अपन को मोर्चा शेखावत-आडवाणी जोड़ी के हवाले लगने लगा।
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