अपने भैरों बाबा चुनावों में अलग-थलग नहीं। चुनावों में धनबल के इस्तेमाल से बेहद खफा। कांग्रेस-बीजेपी धन जुटाने में जुटी है। पर शेखावत ऐसे रास्ते खोजने में लगे हैं। जिनसे लोकतंत्र बच सके। बुधवार को उनने रिटायर्ड सीईसी कृष्णामूर्ति से सलाह-मशविरा किया। इसी इतवार को अपन ने कृष्णामूर्ति को वेद मंदिर में सुना। कृष्णामूर्ति वहां महात्मा वेदभिक्षु की जयंति पर बोले। खैर बात चुनाव में धन बल की। चुनावों में धनबल का महत्व पूछना हो। तो उमा भारती से पूछो। खुद के पास लोकसभा चुनाव लड़ने का जुगाड़ नहीं। अपनी जनशक्ति को कैसे मैदान में उतारती। सो लालकृष्ण आडवाणी के सामने घुटने टेक दिए। आडवाणी को चिट्ठी में कहा- 'चुनाव लड़ने के लिए पैसा ही नहीं। देश को अच्छा पीएम देने के लिए आपकी मदद करना चाहती हूं।' चलो बीजेपी के करीब आने का मौका तो मिला। अब उमा यूपी, महाराष्ट्र, आंध्र, उड़ीसा जाएगी। मध्यप्रदेश बिल्कुल नहीं। अलग-थलग पड़ी उमा फिर सुर्खियों में आई। तो बुधवार को सबको सलाह देती दिखी।
जेतली से बोली- 'आडवाणी को पीएम बनवाने के लिए मैने अपमान की घूंट पी लिया। आप भी मतभेद भुला दें।' वैसे वह अरुण ही थे। जिनके खिलाफ मोर्चा खोलकर उमा पार्टी से निकाली थी। दोहरा इशारा किया। खुद से मतभेद खत्म करने का भी। राजनाथ सिंह से भी। यों बात अरुण-राजनाथ की चल निकली। तो बताते जाएं- कोशिश बुधवार को भी हुई। फार्मूला असम से सुधांशु मित्तल को हटाने का। प्रचार अभियान कमेटी से स्वप्न दासगुप्त को हटाने का। आखिर स्वप्नदास ने भी गाहे-ब-गाहे राजनाथ के खिलाफ खूब लिखा। शायद कमेटी भंग ही हो जाए। पर बात हो रही थी उमा की। नसीहत देने लगी। तो कल्याण सिंह को भी दी। बोली- 'बुढ़ापे में वक्त पोते के साथ बिताते, तो अच्छा होता। कहां मुलायम के साथ चले गए।' अब यूपी में कल्याण की भरपाई ही तो करेगी उमा। नसीहत तो अपने वरुण गांधी को भी दे डाली। बोली- 'अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखें।' वैसे पते की बात बताते जाएं। वरुण गांधी के तेवरों से बीजेपी में बड़े-बड़े हिल गए। लोग उमा भारती, कल्याण सिंह को भूल जाएंगे। नरेंद्र मोदी की टक्कर का नेता आ गया। यों वरुण गांधी ने बुधवार को सफाई दी। पर सफाई से ज्यादा तेवर दिखाए। अपन ने वरुण को साफगोई से बात करते देखा। तो राहुल से मुकाबला करने का दिल किया। आप भी दोनों को मीडिया से बात करते देखना। फर्क साफ दिखेगा। नेचुरल लीडरशिप साफ दिखेगी। आखिर नेहरू के बाद परिवार में पहले ग्रेजुएट हैं वरुण। नेहरू की तरह ही पढ़ने-लिखने का भी खूब शौक। नेहरू की डिस्कवरी ऑफ इंडिया से लेकर वीर सावरकर तक। पूरी हिंदू फिलासफी भी पढ़ डाली। गांधी हत्याकांड को हर एंगल से पढ़ा। आरएसएस से लेकर मार्क्स तक। इंग्लिश लिटरेचर भी पढ़ डाला। संघ के नेताओं से मिलकर शंकाओं पर चर्चा भी की। फिर संजय गांधी की विरासत। बात संजय गांधी की चली। तो बताते जाएं- संजय गांधी के ही तो करीब थे नवीन चावला। शाह आयोग ने यही तो लिखा था- 'चावला लेफ्टिनेंट गवर्नर नहीं। संजय गांधी के इशारों पर चलते थे।' अब वरुण का केस नवीन चावला के सामने। लाख टके का सवाल- चावला का रुख क्या होगा। सोनियावादी या संजयवादी। पर सवाल वरुण के उकसाऊ भाषण का। जो अपन ने टीवी चैनलों पर सुना। भाषण आज-कल का नहीं। अलबत्ता पांच मार्च का। पहला सवाल- 'बारह दिन बाद भाषण की सीडी कैसे सामने आई। बारह दिन कहां थी। चैनलों को सीडी किसने दी।' यही सवाल वरुण ने उठाए। वह कहते हैं- 'सीडी टैंपर। मैंने कहा था- वोट कटुआ, सीडी में है कटुआ। सीडी में सोलह जगह कांट-छांट हुई। न मेरा असली भाषण, न मेरी आवाज।' उनने देशवासियों से अपील भी की- 'मेरे खिलाफ राजनीतिक साजिश।' पर कौन है इस साजिश के पीछे। उनने कुछ इशारा भी किया। जब कहा- 'मैं भारतीय हूं। मैं हिंदू हूं। मुझे हिंदू होने का गर्व। हिंदु अपने ही देश में खतरे में।' वरुण के हिंदुवादी तेवरों से भाजपाई शरमाने लगे। पर शिवसेना ने पीठ ठोक दी।
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