अपन को लगता था- अल बरदई भारत आएंगे। तो लेफ्ट आपे से बाहर होगा। पर लेफ्ट के नेता लालू से गलबहियां डाले बाहर निकले। प्रणव दा के माथे पर कोई शिकन नहीं दिखी। अलबत्ता बुढ़ापे में जैसे जोश आ गया हो। वैसे भागते हुए मीटिंग से बाहर निकले। ऐसे, जैसे कोई मोर्चा फतह कर लिया हो। बाहर तो हंसते हुए चेहरे दिखे। पर अंदर ऐसी बात नहीं थी। कुमारस्वामी ने साबित किया।
राजनीति और मक्कारी में ज्यादा फर्क नहीं। सो घाग राजनीतिज्ञ इस बात के माहिर। नकली सूरत सामने आए, असली चेहरा छिपा रहे। जब कुमारस्वामी की बात चल ही पड़ी। तो पहले कर्नाटक का लेखा-जोखा हो जाए। जैसा अपन ने शुरू में कहा था। आखिर वही हुआ। कांग्रेस ने राष्ट्रपति राज चाहा। गवर्नर ने वही रिपोर्ट भेज दी। मनमोहन कैबिनेट ने न आगा देखा न पीछा। न कानूनी नुक्ता देखा। न सुप्रीम कोर्ट की जजमेंट देखी। न संवैधानिक मर्यादा। जैसी रामेश्वर ठाकुर ने सिफारिश भेजी। उसी पर मक्खी मार दी। प्रतिभा पाटील ने गवर्नर राज पर पहले दस्तखत मारे। यों कर्नाटक की राजनीतिक हालत खस्ता थी। पर अपन कानूनी स्थिति बता दें। गवर्नर का पहला काम था- वैकल्पिक सरकार की गुंजाइश टटोलना। बोमई केस में सुप्रीम कोर्ट का शीशे की तरह साफ यही फैसला। पर रामेश्वर ठाकुर ने वही किया। जो दो साल पहले बूटा सिंह ने किया। बूटा सिंह का किस्सा तो याद होगा। उनने एसेंबली चुनाव के बाद कोई राजनीतिक राज मशविरा नहीं किया। सरकार बनाने की कोई संभावना नहीं टटोली। जैसा कांग्रेस चाहती थी। वैसा कर दिया। राष्ट्रपति राज की सिफारिश भेज दी। मनमोहन सिंह ने उसी पर मक्खी मार दी। अब्दुल कलाम तब रूस में थे। आधी रात को जगाकर दस्तखत कराए गए। पर सुप्रीम कोर्ट ने गवर्नर, पीएम, कैबिनेट और राष्ट्रपति को भी कटघरे में खड़ा किया। बूटा सिंह को तो इस्तीफा देना पड़ा। राष्ट्रपति को अजीब स्थिति झेलनी पड़ी। केंद्र सरकार बेशर्म बनी रही। सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट अगर गवर्नर के खिलाफ था। तो केंद्र के खिलाफ भी था। पर केंद्र ने बूटा सिंह को बलि का बकरा बनाया। मुंह छुपा लिया। बूटा सिंह को कुछ दिन का वनवास जरूर हुआ। अब एससी आयोग के मुखिया। अब वही रामेश्वर ठाकुर ने किया। यों बीजेपी कोर्ट में चुनौती नहीं देगी। पर कोई और भी चुनौती दे। तो कर्नाटक का गवर्नर भी बूटा सिंह बनेगा। बात बीजेपी की चली। तो अपन कल की बात याद करा दें। अपन ने लिखा था- 'येदुरप्पा के लिए अंगूर खट्टे।' आखिर वही हुआ। रैलियां बीच में छोड़कर बेंगलूर आए थे। वापस दौरे पर लौट गए। मेंगलूर में बोले- 'कुमारस्वामी धोखेबाज। अब कहते हैं- देवगौड़ा और जेडीएस विधायकों की राय नहीं थी। पर जब खुद सीएम बने। तो न जेडीएस की राय ली। न पिता देवगौड़ा की।' पर पते की बात तो अपने अनंत कुमार ने कही। हरदनहल्ली डोडे गौड़ा देवगौड़ा को आधुनिक भस्मासुर बताया। भस्मासुर सिर्फ इसलिए नहीं- 'देवगौड़ा ने बीजेपी-कांग्रेस दोनों को धोखा दिया। अलबत्ता उनने इतिहास खोलकर रख दिया। वीरेंद्र पाटील को धोखा दिया। रामकृष्ण हेगड़े को दिया। एसआर बोमई को धोखा दिया। जेएच पाटील को धोखा दिया। धोखा तो उनने बैरो गौड़ा, वाईके रामैय्या, नंजेय गौड़ा को भी दिया। इतने उदाहरण देवगौड़ा को भस्मासुर बताने को काफी। खैर कर्नाटक का नाटक फिलहाल खत्म, दिल्ली का शुरू। यूपीए-लेफ्ट की मीटिंग बेनतीजा रही। आईएईए के चेयरमैन अल बरदई दिल्ली में। लेफ्ट ने दो टूक कहा- 'एटमी ठिकानों के निरीक्षण की बात न करो।' पर मनमोहन सरकार भले ही ऊपर से चुप्पी रखे। बात तो होगी ही। अब अगली मीटिंग बाईस अक्टूबर को होगी। अपन को लगता है- तब तक बातचीत हो चुकी होगी। लेफ्ट या तो खुद ठगा सा रहेगा। या देश को ठग रहा है। जैसे प्रणव चहकते हुए निकले। जैसे कांग्रेस के नए-नए मीडिया चेयरमैन वीरप्पा मोइली खुश दिखे। अपन को समझने में कोई भूल नहीं। होगा वही- जो सोनिया ने हरियाणा में कहा।
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