लालू के बजट, प्रणव की धमकी के चुनावी मायने

Publsihed: 14.Feb.2009, 06:40

अब संसद क्या चले, क्या न चले। यों प्रेक्टिकली तो शुक्रवार को पहला ही दिन था। पहले ही दिन कोरम पूरा नहीं हुआ। सो दोपहर बाद लोकसभा नहीं चली। दोपहर से पहले का दिन चुनावी लिहाज से अहम रहा। लालू का रेल बजट हो या प्रणव दा की पाक को धमकी। दोनों का मकसद वोटरों को लुभाना था। चुनाव का वक्त न होता। तो प्रणव दा पाकिस्तान के खिलाफ इतने तीखे तेवर न दिखाते। लालू का पांचवां बजट भी 'चारा' छवि सुधारने वाला रहा। वैसे लालू के रेल बजट का कोई मतलब नहीं। रेल बजट नई सरकार आने के बाद शुरू होगा। जो भी नई सरकार आएगी, वह अपना बजट बनाएगी। सो यह नौटंकी क्यों हुई। लालू या सोनिया ही जाने। सोमवार को पेश होने वाले अंतरिम बजट का भी कोई मतलब नहीं। मौके का फायदा उठाने की कोशिश भर। लालू के बजट का तो क्या कहने। हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और। बात हाथी की चली। तो बताते जाएं। लालू ने बजट भाषण पढ़ते कहा- 'हाथी को चित्त कर चीता बना दिया।' सुषमा स्वराज ने लालू के डायलॉग पर माकूल टिप्पणी की। जब उनने कहा- 'यह एकदम सही। चीता आदमखोर होता है। लालू ने रेलवे को आदमखोर ही बना दिया है। जो सामने से नहीं, छिपकर वार करता है।'

लालू बड़ी सफाई से काट रहे हैं लोगों की जेब। अपन पांच साल से देख रहे- रेल बजट में कोई ऐलान नहीं होता। पर टिकट खरीदने जाओ। तो पहले से मंहगी। सारी दुनिया में कंप्यूटर से टिकट सस्ती। पर जब से लालू मंत्री बनें। तब से कंप्यूटर से टिकट मंहगी। वाजपेयी ने तत्काल सेवा शुरू की थी इमरजेंसी के लिए। लालू ने उसे धंधा बना दिया। अब आधी ट्रेन तत्काल में। उसका रिवजर्वेशन भी हफ्ताभर पहले खत्म। तत्काल का कोई मतलब ही नहीं रहा। मंहगी भी, तत्काल भी नहीं। लालू ने बड़ी चतुराई से जेब काटी। ऊपर से दावा- सफेद हाथी रेलवे को चीता बनाने का। लालू ने किराए में दो फीसदी कटौती की डींग तो हांकी। पर गेहूं-चावल का भाड़ा बढ़ाने की बात गोल। मीठा-मीठा घप्प, कड़वा-कड़वा थू। लालू ने जब कश्मीर में ट्रेन पहुंचाने पर अपनी पीठ ठोकी। और सेहरा सोनिया के सिर बांधा। तो आडवाणी मुस्कराने लगे। यों तो कश्मीर में ट्रेन पहुंचाने का ख्वाब 1994 में नरसिंह राव ने देखा था। पर उसे सरअंजाम पहुंचाने का काम किया वाजपेयी ने। वाजपेयी जब मई 2002 को कश्मीर गए। तो उनने जम्मू-उधमपुर-काजीगुंड-श्रीनगर-बारामूला को राष्ट्रीय प्राथमिकता परियोजना घोषित किया। केंद्र सरकार ने रेलवे को स्पेशल फंड मुहैया करवाया। अपने शाहनवाज हुसैन ने सही कहा- 'नीतीश के कामों पर नारियल फोड़ रहे हैं लालू।' रही बात प्रणव दा के पाक के बारे में सुओ-मोटो बयान की। भले ही अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के दबाव में ही। पर पाक ने मुंबई के आतंकी हमले में पाकिस्तानियों की साजिश कबूल कर ली। अगर चुनाव सिर पर न होता। तो प्रणव दा सिर्फ पाकिस्तान के सकारात्मक रुख का स्वागत करते। पर जनता का मूड भांपकर सोनिया कई दिन से पाक को आंखें दिखा रही है। अब अचानक पाक की तारीफ करते। तो चुनावी रणनीति ठुस्स होती। पाकिस्तान की नीयत पर अब भी कोई भारतीय भरोसा नहीं करता। सो जनता का मूड भांपकर ही प्रणव दा ने शुक्रवार को पाक को आंखें दिखाई। ऐलान कर दिया- 'पाकिस्तान के साथ तब तक कोई बातचीत नहीं होगी। जब तक पाक ट्रेनिंग कैंप नेस्तनाबूद नहीं करता। पाक ने 2004 में वादा किया था- वह अपनी जमीन को भारत में आतंकी वारदातों के लिए इस्तेमाल नहीं होने देगा। अब यह साबित हो गया- 2008 में भी आतंकियों ने पाक की जमीन को इस्तेमाल किया।' तो अपन याद दिला दें- यह सफलता वाजपेयी की ही थी। जिनने मुशर्रफ से यह वादा करवा लिया था।

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