कांग्रेस-सपा प्रेम विवाह टूटने के कगार पर

Publsihed: 11.Feb.2009, 06:55

यों पाकिस्तानी सरकार ने नहीं कहा। पर 'डान' अखबार ने अब तक जो छापा। बाद में वही पाक सरकार ने कहा। सो सबूतों को नाकाफी बताने के बाद अब पाक कहेगा- 'मुंबई का हमला बिना लोकल स्लीपिंग सेल नहीं हुआ। पाक एजेंसियों को भारत के उन तत्वों से पूछताछ करने दी जाए।' पर कांग्रेस लोकल आतंकियों के बचाव में। नरेंद्र मोदी ने स्लीपिंग सेल पर हमला बोला। तो कांग्रेस मोदी पर चढ़ दौड़ी थी। अपन पाकिस्तान सरकार का पक्ष नहीं ले रहे। पर मनमोहन ने मुशर्रफ से आतंकवाद पर साझा मकेनिज्म का समझौता किया था। अब मुंह चुराने की क्या जरूरत। जब एफबीआई को आतंकियों से पूछताछ की इजाजत। तो आईएसआई को भी इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकियों से मिलने दो। आतंकवाद पर दोहरा मापदंड तो नहीं चल सकता। जो सरकार लोकल आतंकियों को पनाह दे। आतंकियों के लिए बने कानून ढीले करे। अदालत फांसी की सजा सुनाए। तो फच्चर फंसा कर बैठ जाए। वह सरकार आतंकवाद से लड़ने में कितनी सक्षम। पर बात कांग्रेस के दोहरे मापदंड की चल रही थी।

तो अपन दिल्ली के राजनीतिक गलियारों की ताजा हलचल बताएं। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मुलायम का मक्कू कसा। तो अमर सिंह आपे से बाहर हो गए। पहले बात कोर्ट की। सोनिया-मायावती करीब हुई। तो अदालत ने मायावती के भ्रष्टाचार को दबाते रंगे हाथों पकड़ा। सीबीआई की जमकर धुनाई हुई थी। जो हंसराज भारद्वाज के इशारे पर चल पड़ी थी। अब वही हथकंडा मुलायम के साथ। सोनिया जब मुलायम से खार खाए बैठी थी। तब सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी- 'हमें मुलायम के खिलाफ रपट पेश करने की इजाजत दी जाए।' फिर जब सोनिया-मुलायम दोस्ती हो गई। तो सीबीआई ने नई अर्जी डाली- 'हमने लॉ मिनिस्ट्री से सलाह की। पुरानी अर्जी वापस लेने की इजाजत दीजिए।' सुप्रीम कोर्ट के कान खड़े हुए। विश्वनाथ चतुर्वेदी का कहा सही निकला। चतुर्वेदी पेशे से वकील। कांग्रेस टिकट पर एसेंबली चुनाव लड़ चुके। मुलायम के खिलाफ आमदनी से ज्यादा जायदाद की पीआईएल उन्हीं की। तो मुलायम ने अदालत से कहा था- 'चतुर्वेदी कांग्रेसी। उसके आरोप राजनीति से प्रेरित।' तब अदालत ने कहा था- 'यह हम देखेंगे।' पर मुलायम-सोनिया दोस्ती हुई। तो सीबीआई ने भी गिरगिट की तरह रंग बदल लिया। पर चतुर्वेदी काबू में नहीं आए। उसने अदालत में कहा- 'कांग्रेस मुलायम से मिल गई है। पहले कुछ कहती थी। अब उसके उलट कहती है। राजनीतिक रिश्ते बदलने से भ्रष्टाचार पर नजरिया कैसे बदलता है। यह इसका जीता जागता सबूत।' पर बात अदालत की। अदालत के रुख से जैसे मायावती का सोनिया से रिश्ता टूटा। वैसे सपा-कांग्रेस रिश्ता भी दोराहे पर। अमर सिंह की तिलमिलाहट साफ दिखी। जब बोले- 'कांग्रेस इस्तेमाल करके कूड़ेदान में फेंकने में माहिर। सरकार बचाने के लिए मेरा इस्तेमाल किया। अब मुझे पागल कर रहे हैं।' बात पागल की चली। तो याद कराते जाएं। सत्यव्रत चतुर्वेदी भले ही अमर सिंह को पागल कहकर पद गवां चुके। पर उनकी राय नहीं बदली। वह बोले- 'मुलायम-अमर सिंह ने तब बिना शर्त समर्थन दिया था। अब शर्तें क्यों लगा रहे हैं?' तो क्या है मुलायम-अमर की शर्त। समझना मुश्किल नहीं। भ्रष्टाचार के केस से पीछा छुड़वाने की शर्त। सत्यव्रत का सत्य अपन को पता नहीं। पर जब मुलायम ने समर्थन दिया, शर्त की बात तो हवा में तब भी थी। शर्त न होती, तो सीबीआई लॉ मिनिस्ट्री से राय क्यों लेती। जिस पर मंगलवार को कोर्ट से लताड़ पड़ी। बात कांग्रेसियों के रंग बदलने की। तो कोर्ट का रुख देख कांग्रेस भी रंग बदलने लगी। दिग्गी राजा बोले- 'अमर सिंह निजी मामलों को राजनीति में न घसीटें। जब वह कहते हैं- सांच को आंच नहीं। तो फिर सीबीआई या कोर्ट से डरने की क्या बात।' अब एक-दूसरे की इतनी फजीहत के बाद भी प्रेम विवाह बना रहे। तो अपन को सचमुच हैरानी होगी।

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