नागपुर से बजेगा सुशासन, विकास, सुरक्षा का शंखनाद

Publsihed: 06.Feb.2009, 06:45

बीजेपी की वर्किंग कमेटी-नेशनल काउंसिल आज नागपुर में होगी। बात नागपुर की चली। तो अपन को दिसंबर 2006 की लखनऊ काउंसिल याद आ गई। यों काउंसिल तो उसके बाद भी दो और हुई। पर लखनऊ और कल्याण सिंह का महत्व। कल्याण सिंह बीजेपी में दुबारा लौटे थे। सत्ताईस दिसंबर 2006 का दिन था। सुषमा स्वराज ने राजनीतिक प्रस्ताव पेश किया। कल्याण सिंह ने प्रस्ताव को सेंकड किया। जरा उनके भाषण पर गौर करें। उनने कहा- 'जिस दिन हमने तय किया कि रामजन्म भूमि मंदिर बनाया जाएगा। उसी दिन तय हो गया था कि विवादास्पद ढांचा ढहेगा। और यह टूटना ही चाहिए था। जब यह टूटा। तो यह गर्व की बात थी, शर्म की नहीं। ठीक चार सौ चौंसठ साल पहले बाबर ने भी यही किया था। अपनी सेना के कमांडर को राममंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाने का हुक्म दिया था।' उनने आगे कहा- 'अयोध्या मंदिर भाजपा का राजनीतिक एजेंडा नहीं। यह राष्ट्रीय स्वाभिमान का एजेंडा है। मुझे कानूनी समाधान की कोई संभावना नहीं दिखती।' उनने नारा लगाया- 'हिंदुत्व पर हमें गर्व है। रामजन्म भूमि मंदिर हिंदुत्व का प्राण तत्व है।'

वही कल्याण सिंह अब फिर भाजपा छोड़ चुके। कल्याण के नए दोस्त वही मुलायम। जिसे वह कभी मौलाना मुलायम कहा करते थे। पर कल्याण से दोस्ती पर मुस्लिम मुलायम से खफा। सो कल्याण ने मंगल को ढांचा टूटने की नैतिक जिम्मेदारी कबूली। पर मुसलमानों की नाराजगी इतने से ही खत्म नहीं होगी। गुरुवार को मुलायम ने कल्याण को समझाया- 'पूरी तरह माफी मांग लो। संसद सत्र का माफी मांगने के लिए इस्तेमाल करो।' मुलायम से मिलकर निकले कल्याण बोले- 'मैं पूरी जिम्मेदारी लेता हूं।' पर उनने अभी साफ-साफ माफी शब्द नहीं उचारा। पर बात चली है तो बताते जाएं- कल्याण सिंह ने जब पहले बीजेपी छोड़ी थी। तब भी कुछ दिन ऐसी ही भाषा बोले थे। तब उनने चौदह जुलाई 2003 को बीबीसी से इंटरव्यू में कहा था- 'साजिश वाजपेयी, आडवाणी, जोशी ने रची थी। मुझे अंधेरे में रखा।' पर जब उनने सात दिसंबर 1992 में इस्तीफा दिया था। तो कहा था- 'मुझे मंदिर और कुर्सी में से एक चुनना हो। तो मैं कुर्सी को ठोकर मार दूंगा।' यह नेताओं का गिरगिट की तरह रंग बदलना। पर बात नागपुर की। अपन भारत का नक्शा गत्ते में लगा दें। उसे ऊंगली पर उठाना चाहें। तो ऊंगली नागपुर पर टिकानी पड़ेगी। यानी नागपुर देश का सेंटर। लोकसभा चुनावों का बिगुल नागपुर से ही बजेगा। नागपुर आरएसएस का हेड क्वार्टर भी। फिर भी नागपुर में बीजेपी सिर्फ दो बार जीती। वह भी तब। जब  बनवारी लाल पुरोहित कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आए। पुरोहित कांग्रेस में लौट गए। तो बीजेपी नहीं जीती। अब बनवारी लाल पुरोहित फिर लौट रहे हैं। तो नागपुर से बजेगा जीत का शंखनाद। पुरोहित के साथ-साथ टिपनिस भी शामिल हो जाएं। तो अपन को हैरानी नहीं होगी। वही टिपनिस, जो कारगिल के वक्त एयर चीफ थे। जिनने मुशर्रफ को सेल्यूट मारने से इंकार कर दिया था। गुरुवार को आडवाणी के हौंसले बुलंद दिखे। जिसका असर नागपुर में भी दिखेगा। उनने बताया- 'सुशासन, विकास और सुरक्षा चुनाव का मंत्र होगा।' यानी नागपुर में राजनाथ-आडवाणी एकता का मंत्र भी निकलेगा। नरेंद्र मोदी नागपुर में ही लक्ष्मण घोषित होंगे। मोदी के साथ शिवराज चौहान का भी कद बढ़ेगा। सुषमा का भोपाल से चुनाव लड़ना पहले से तय। मुख्तार अब्बास नकवी भी रामपुर में झंडा गाड चुके। जेटली के सामने अमृतसर-जम्मू-सूरत की च्वाइस। दिल्ली में लड़ते तो ज्यादा अच्छा रहता। पर अब चंदन मित्रा का नाम दिल्ली के पैनल में। मुरली मनोहर जोशी वाराणसी से लड़ेंगे ही। राजनाथ सिंह भी गाजियाबाद से लड़ेंगे। सभी छह राज्यसभा के मेंबर। यानी तैयारी धुंरधरों को मैदान में उतारने की। गोपीनाथ मुंडे भी बीड़ से लोकसभा चुनाव में उतरेंगे।

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