अपन को इस ब्रेकिंग न्यूज का इंतजार था। न्यूज है- चीफ इलेक्शन कमिश्नर गोपालस्वामी की सिफारिश। इलेक्शन कमिश्नर नवीन चावला को बर्खास्त करने की सिफारिश। सिफारिश करके गोपालस्वामी तो चुप्पी साधकर बैठ गए। अपनी राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील ने सिफारिश मनमोहन सरकार को भेज दी। अब मनमोहन सरकार की नींद हराम। सिफारिश पर विवाद खड़ा करते हुए खबर लीक हुई। ब्रेकिंग न्यूज में सवाल उठाए गए। कहा गया- खुद-ब-खुद की गई सिफारिश संविधान के खिलाफ। गोपालस्वामी ने इलेक्शन कमिशन की मीटिंग भी नहीं बुलाई। कानून के पंडित फाली एस. नरिमन गोपालस्वामी के खिलाफ बोले। दिग्विजय सिंह ने कहा- 'दूसरे आयुक्तों के खिलाफ भी कई मामले। नवीन चावला तो एकदम निष्पक्ष।' अभिषेक मनु सिंघवी बोले- 'देखना होगा, सीईसी को सिफारिश का हक है या नहीं।' होम मिनिस्टर पी. चिदंबरम भी चुप नहीं रहे। बोले- 'बीजेपी चुनाव आयोग पर राजनीति कर रही है।' चिदंबरम ने बिलकुल सही कहा।
जब चावला पर कांग्रेस के हाथों का खिलौना होने का आरोप। तो उसे हटाने की मांग राजनीति से प्रेरित तो होगी ही। बात फाली एस. नरिमन की। तो बताते जाएं- मामला जब कोर्ट में गया था। तो नरिमन अदालत में नवीन के वकील थे। बात अदालत की चल ही पड़ी। तो जरा इतिहास बता दें। इमरजेंसी में चावला ने संजय गांधी के इशारों पर काम किया। शाह कमिशन ने यह अपनी रपट में लिखा है। इमरजेंसी से ही चावला की गांधी परिवार से नजदीकी। चावला को इलेक्शन कमिश्नर रणनीति के तहत ही बनाया गया। कांग्रेस के सांसद चावला की पत्नी के ट्रस्ट को सांसदनिधि से धन लुटाने लगे। यह कांग्रेस-कमिश्नर सांठगांठ का सबूत। फिर कुछ और उदाहरण सामने आए। पहले करुणाकरण का उदाहरण। वह कांग्रेस से अलग हुए। तो अपनी पार्टी के नाम में राजीव जोड़ना चाहते थे। कांग्रेस ने एतराज किया। आयोग में सुनवाई हुई। करुणाकरण की दलीलें हावी थी। फैसला नहीं हुआ, मीटिंग टल गई। तो कांग्रेस ने करुणाकरण की दलीलों को काटने वाली चिट्ठी लिखी। सवाल खडा हुआ- आयोग की मीटिंग लीक कैसे हुई। दूसरा उदाहरण पंजाब का। पंजाब के चुनावों की तारीखें तय हुई। एलान दो दिन बाद होना था। अमरेंद्र सिंह ने अगले ही दिन रेवड़ियां बांटने का एलान कर दिया। खबर कैसे लीक हुई। कांग्रेस कुछ दिन राष्ट्रपति राज के लिए यूपी में चुनाव टालना चाहती थी। आयोग में यही स्टेंड चावला का था। केजी राव बिहार में निष्पक्ष चुनाव करवा रहे थे। राव की दहशत से कांग्रेस आरजेडी के होश फाख्ता थे। तभी चावला ने केजी राव पर ऐसा आरोप लगाया। जो बेबुनियाद निकला। इसीलिए कोर्ट में एनडीए के साथ सपा भी गई थी। पर कोर्ट जाने की नौबत क्यों आई। पहले तो सोलह मार्च 2006 को 204 सांसद राष्ट्रपति के दरवाजे पर गए थे। तब अब्दुल कलाम थे। उनने याचिका गोपालस्वामी को नहीं भेजी। मनमोहन सिंह को भेज दी। जिस के साथ सांठगांठ का आरोप था। उसी को याचिका मिली। तो उसने वहीं निपटा दी। तब जसवंत सिंह को कोर्ट जाना पड़ा। कोर्ट में बात हुई। तो सीईसी गोपालस्वामी भी तलब हुए। उनने अदालत में कहा- 'एनडीए की याचिका सीईसी के नाम नहीं थी। संविधान में सीईसी को कमिश्नर के खिलाफ कार्रवाई का हक।' तभी जस्टिस अशोक भान और जस्टिस सरपुरका ने सात अगस्त 2007 को कहा- 'आप सीईसी को याचिका क्यों नहीं देते। वह कानून के मुताबिक अपने सहयोगी के खिलाफ कार्रवाई को स्वतंत्र होंगे।' उसी दिन बीजेपी-एसपी ने अपनी याचिकाएं वापस ले ली। अदालत की सलाह पर बीजेपी ने सीईसी को दरख्वास्त लगाई। अब साल भर बाद फैसला। तो सवाल खड़ा है- 'बीस अप्रेल को गोपालस्वामी रिटायर होने को। नवीन चावला सीनियर के नाते सीईसी बनने वाले हैं। तो फैसला अब चुनावों के करीब क्यों?' यों सोनिया का इरादा ही नवीन की रहनुमाई में चुनाव का। पर देरी का कारण बता दें। नवीन चावला नोटिस का जवाब टालते रहे। गोपालस्वामी ने तीन बार चिट्ठी लिखकर जवाब मांगा। चावला सरकार से सलाह ले रहे थे। इसीलिए हुई देरी। पर फैसला देर आयद, दुरुस्त आयद।
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